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सोमवार, 29 जुलाई 2013

छहों ऋतुएं मोहे ना भायी सखी री




छहों ऋतुएं मोहे ना भायी सखी री 
जब तक ना हो पी से मिलन सखी री
विरही मौसम ने डाला है डेरा
कृष्ण बिना सब जग है सूना
जब हो प्रीतम का दर्शन
तब जानूं आया है सावन
ये कैसा छाया है अँधेरा
सजन बिना ना आये सवेरा
पी से मिलन को तरस रही हैं
अँखियाँ बिन सावन बरस रही हैं
किस विधि मिलना होए सांवरिया से
प्रीत की भाँवर डाली सांवरिया से
अब ना भाये कोई और जिया को 
विरहाग्नि दग्ध ह्रदय में 
कैसे आये अब चैन सखी री
सांवरिया बिन मैं बनी अधूरी 
दरस लालसा में जी रही हूँ
श्याम दरस को तरस रही हूँ
मोहे ना भाये कोई मौसम सखी री
श्याम बिन जीवन पतझड़ सखी री
ढूँढ लाओ कहीं से सांवरिया को
हाल ज़रा बतला दो पिया को
विरह वेदना सही नहीं जाती
आस की माँग भी उजड़ गयी है
बस श्याम नाम की रटना लगी है 
मीरा  तो मैं बन नहीं पाती
राधा को अब कहाँ से लाऊं 
कौन सा अब मैं जोग धराऊँ
जो श्यामा के मन को भाऊँ
ए री सखी ..........उनसे कहना
उन बिन मुझे ना भाये कोई गहना
हर मौसम बना है फीका
श्याम रंग मुझ पर भी डारें
अपनी प्रीत से मुझे भी निखारें
मैं भी उनकी बन जाऊँ
श्याम रंग में मैं रंग जाऊँ
जो उनके मन को मैं भाऊँ
तब तक ना भाये कोई मौसम सखी री 
कोई तो दो उन्हें संदेस सखी री.............

सोमवार, 22 जुलाई 2013

अखंड जोत प्यासी है






अखण्ड जोत प्यासी है 
हरि दर्शन की अभिलाषी है
तन मन भीगा राम रस मे 
फिर भी देखो प्यासी है 
तृष्णा सारी मिट गयी 
पल पल देखो जल रही है
प्रभु विरह में पल रही है
घर आँगन रौशन कर रही 
भंवर जाल में फँसी 
प्रभु स्नेह को तरस रही है
ये कैसी तुम्हारी महिमा न्यारी है
दर्शन दे दो कृपानिधान
जन्म जन्म की प्यासी है
ये तुम्हारी दिव्य ज्योति सुकुमारी 
दिव्य दर्शनों की अभिलाषी है 
अखंड जोत प्यासी है 
प्रभु अखंड जोत प्यासी है .............


गुरु पूर्णिमा पर :

ज्ञान की ज्योत जगाई 
भक्ति की अलख लगाई 
गुरु बिन ज्ञान कहाँ से पाती 
आनन्दघन से कहाँ मिल पाती 
धन्य धन्य हो गयी आज 
जो खुदाई नूर से हो गयी लाल 

श्री गुरु चरणों में शत - शत नमन

https://www.youtube.com/watch?v=1X6-cYyz134


शुक्रवार, 19 जुलाई 2013

यूँ ही नहीं पहेलियाँ बुझाओ

सुना है 
प्रेम पहला द्वार है
जीवन का 
सृष्टि का
रचयिता का
रचना का
सृजन का
मोक्ष का 
मगर उसका क्या
जो इनमे से 
कुछ ना चाहता हो
ना जीवन
ना सृजन
ना मोक्ष
और फिर भी
पहुँच गया हो
दूसरे द्वार पर
या कहो 
अंतिम छोर पर
आखिरी द्वार पर
मगर ये ना पता हो
अब इसके बाद 
क्या बचा
कहाँ जाना है
क्या करना है
कौन है उस पार
जिसकी सदायें 
आवाज़ देती हैं
जिसे ढूँढने 
हर निगाह चल देती है
जिसे चाहने की 
हर दिल को शिद्दत होती है
जिसे पाना 
हर रूह की चाहत होती है
ये अंतिम द्वार के उस पार
कौन सा शून्य है
कौन सा अक्स है
कौन सा शख्स है
कौन सा तिलिस्म है
कौन सी उपमा है
कौन सी अदृश्य तरंग है
जो चेतनाशून्य कर देती है
जो ना दिखती है 
ना मिलती है
फिर भी अपनी 
अनुभूति दे जाती है
सब खुद में समाहित करती है
क्या वो प्रेम का लोप है
क्या अंतिम द्वार पर 
प्रेम दिव्यजीवी हो जाता है 
या फिर प्रेम 
सिर्फ पहले द्वार पर ही रुक जाता है
अंतिम द्वार पर तो 
प्रेम का भी प्रेम में ही विलुप्तिकरण  हो जाता है
और सिर्फ 
अदृश्य तरंगों में ही प्रवाहित होता है 
और वहाँ
प्रीत ,प्रेम और प्रेमी तत्वतः एक हो जाते हैं ..........निराकार में परिभाषित हो जाते हैं 
कौन है उस पार ...........एक आवाज़ तो दो
बताओ तो सही ...........अपने होने का बोध तो कराओ 
यूँ ही नहीं पहेलियाँ बुझाओ .........ओ अंतिम छोर के वासी !!!

रविवार, 14 जुलाई 2013

प्रेम का गीत





मैने तो बांसुरी में राधा राधा पु्कारा 
जाने कैसे हर सुर संगीत बन गया 
जो ना कहा ना सुना किसी ने 
जाने कैसे वो प्रेम का गीत बन गया 

गुरुवार, 4 जुलाई 2013

इतना सोणा तुझे किसने बनाया

Photo: ओहो बहुत स्टाइल में हो आज तो 
बताओ तो ज़रा किसका माखन चुराया है 
किसकी हाँडी फ़ोडी है 
किसके बछडे खोले हैं
 किससे की बरजोरी है 
ये आँखों की चकमक , 
ये होठों की मुस्कान 
ये चेहरे पर दिखती शैतानियत चमक 
सब बयाँ कर रही है 
कि आज जरूर किसी गोपी के मन को फिर हरा है तुमने ..........मोहन!
बोलो सच है ना !!!!!!!

ले जा रही हूँ इस नटखट चितवन को अपने संग 
ए ........एक बार मुझे भी रिझाओ न ऐसे ही !!!!!!!


इतना सोणा तुझे किसने बनाया जी करे देखती रहूँ …………
(अभी इस नटखट का ये रूप देख ये भाव जाग गये )

ओहो बहुत स्टाइल में हो आज तो 
बताओ तो ज़रा किसका माखन चुराया है 
किसकी हाँडी फ़ोडी है 
किसके बछडे खोले हैं
 किससे की बरजोरी है 
ये आँखों की चकमक , 
ये होठों की मुस्कान 
ये चेहरे पर दिखती शैतानियत चमक 
सब बयाँ कर रही है 
कि आज जरूर किसी गोपी के मन को फिर हरा है तुमने ..........मोहन!
बोलो सच है ना !!!!!!!

ले जा रही हूँ इस नटखट चितवन को अपने संग 
ए ........एक बार मुझे भी रिझाओ न ऐसे ही !!!!!!!


इतना सोणा तुझे किसने बनाया जी करे देखती रहूँ …………