ए री मोहे मिल गये नन्द किशोर
बाँह पकड़त हैं मटकी फोड़त हैं
करत हैं कितनी किलोल
ए री मोहे ......................................
कभी छुपत हैं कभी दिखत हैं
कभी रूठत हैं कभी मानत हैं
जिया में उठत हिलोर
ए री मोहे ........................................
रास रचावत हैं सबहों नचावत हैं
वेणु मधुर- मधुर ऐसी बजावत हैं
बाँध कर प्रेम की डोर
ए री मोहे .........................................
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बुधवार, 14 जुलाई 2010
शनिवार, 10 जुलाई 2010
विरह- वियोग
शरीर रुपी पिंजरे में मेरा आत्मा रुपी पंछी फ़डफ़डा रहा है श्याम .............संसार के बन्धनों में जकड़ी हुई हूँ .........हरी मिलन को तरस रही हूँ .............जल बिन मीन सी तड़प रही हूँ..............पाप गठरी उठाये भटक रही हूँ ........जन्मों के फेरे में पड़ी हुई हूँ.......... फिर भी कान्हा......... तेरे वियोग में ह्रदय फटता नहीं है ..........पत्थर ह्रदय है ये प्रेम की बूँद पड़ी ही नहीं इस पर, वरना पिघल ना गया होता प्रेम की एक बूँद से .............सुना है प्रेम तो पत्थर को भी पिघला देता है और मेरा ये कठोर ह्रदय तेरे प्रेम वियोग से फटता ही नहीं .............ज्ञान की आँख मेरे पास नहीं और कोई उपाय आता नहीं .............सोचती थी प्रेम होगा मगर नहीं है अगर होता तो तू मुझसे दूर कब होता ............मुलाकात ना हो जाती ...........अब कौन जतन करूँ सांवरिया ..........सिर्फ नैनन का नीर ही मेरी थाती है बस वो ही अर्पण कर सकती हूँ मगर ना मालूम कितने जन्म लगेंगे तुझसे मिलने को.........तुझे पाने को..................तुझे तो अपना बना लिया मगर तेरी कब बनूँगी तू मुझे कब अपना बनाएगा ,किस जन्म में ये विरह वियोग मिटाएगा कान्हा ............इसी आस पर दिन गुजार रही हूँ ..............क्यूँ इस देह के पिंजरे में फँसा रखा है कान्हा .........अब तो अपने आनंदालय की एक बूँद पिला दे श्याम .............बस एक बार अपना बना ले...........अब विरह वियोग सहा नहीं जाता.........तुझ बिन रहा नहीं जाता..........श्याम ,अब तो बस अपनी गोपी बना ले एक बार .............जन्मों की प्यास मिटा जा श्याम बस एक बार अपना बना जा श्याम ..........बस एक बार.
रविवार, 4 जुलाई 2010
काहे भूल गए सांवरिया........
प्रियतम
प्राण प्यारे
नैना जोहते
बाट तिहारी
तुझ बिन तडपत
रैन हमारी
पी -पी पुकारत
सांझ सकारे
तुझको खोजत
नैन हमारे
आस की आस
भी छूटन लागी
प्रीत की प्यास
भी टूटन लागी
तुझ बिन प्यारे
बरसत हैं
सावन भादों हमारे
कोऊ ना सन्देश
पाऊं तिहारा
पाती भी
सूनी आ जाती
बिन संदेस के
संदेस दे जाती
भूल गए
प्राणाधार हमारे
प्रेम के वो
हिंडोले भूले
कर आलिंगन के
रस्ते भूले
तिरछी कमान के
तीर भी टूटे
अधरों के अवलंबन
भी छूटे
रूठ गए
सांवरिया मोसे
भूल गए वो
प्रेम बिछोने
खोजत- खोजत
मैं तो हारी
नैना भी
पथरा गए हैं
प्रीतम ,आने की
राह तकत हैं
क्यूँ भूल गए सांवरिया
सूनी पड़ी प्रीत अटरिया
काहे भूल गए सांवरिया........
प्राण प्यारे
नैना जोहते
बाट तिहारी
तुझ बिन तडपत
रैन हमारी
पी -पी पुकारत
सांझ सकारे
तुझको खोजत
नैन हमारे
आस की आस
भी छूटन लागी
प्रीत की प्यास
भी टूटन लागी
तुझ बिन प्यारे
बरसत हैं
सावन भादों हमारे
कोऊ ना सन्देश
पाऊं तिहारा
पाती भी
सूनी आ जाती
बिन संदेस के
संदेस दे जाती
भूल गए
प्राणाधार हमारे
प्रेम के वो
हिंडोले भूले
कर आलिंगन के
रस्ते भूले
तिरछी कमान के
तीर भी टूटे
अधरों के अवलंबन
भी छूटे
रूठ गए
सांवरिया मोसे
भूल गए वो
प्रेम बिछोने
खोजत- खोजत
मैं तो हारी
नैना भी
पथरा गए हैं
प्रीतम ,आने की
राह तकत हैं
क्यूँ भूल गए सांवरिया
सूनी पड़ी प्रीत अटरिया
काहे भूल गए सांवरिया........