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गुरुवार, 25 नवंबर 2010

आहों मे असर हो तो……………

आहों मे असर हो तो
खुद दौडे चले आते हैं
फिर बाँह पकड कर के
सीने से लगाते हैं


याद मे जब उनकी
हम नीर बहाते हैं
खुद वो भी तडपते हैं
और हमे भी तडपाते हैं

कभी अपना बनाते हैं
कभी मेरे बन जाते हैं
ये आँख मिचौलियाँ 

श्याम मुझसे निभाते हैं
आहों में असर हो तो
खुद दौड़े आते हैं 

कभी छुप छुप जाते हैं
कभी दरस दिखाते हैं
श्याम झलक को
जब नैना तरसते हैं
वो बन के पपीहा मेरे
मन मे बस जाते हैं

आहों में असर हो तो
खुद दौड़े चले आते हैं 

कभी गोपी बन जाते हैं
कभी रास रचाते हैं
खुद भी नाचते हैं
संग मुझे भी नचाते हैं
ये प्रेम के रसरंग 
श्याम प्रेम से निभाते हैं
आहों मे असर हो तो
खुद दौडे आते हैं

कभी करुणा बरसाते हैं 
और प्रीत बढ़ाते हैं 
ये प्रेम की पींगें श्याम
रुक रुक कर बढ़ाते हैं 
आत्मदीप जलाकर के 
हृदयतम भी मिटाते हैं
आहों में असर हो तो
खुद दौड़े चले आते हैं

रविवार, 21 नवंबर 2010

खामोशी की डगर और उम्मीद की किरण …………………………आखिरी किस्त

प्रेम ने कब प्रेम के बदले प्रेम चाहा है वो तो प्रेमी की ख़ुशी में ही खुश रहता है ..........उसके अधरों की एक मुस्कान के लिए अपना सब कुछ कुर्बान करने के लिए तैयार रहता है .........जब उसका प्रेम इस ऊँचाई पर पहुँच गया तो वो नहीं चाहता था कि उसके प्रेम पर कोई ऊंगली उठाये इसलिए ...................

अब आगे ..............




धीरे -धीरे रोहित ने पूजा से थोड़ी दूरी बनानी  शुरू कर दी बेशक आज भी पूजा ही उसकी प्रेरणा थी मगर फिर भी वो इस तरह रहने लगा जिसमे किसी को आभास ना हो यहाँ तक कि पूजा भी ये ना सोचे बल्कि यही समझे घर गृहस्थी में व्यस्त है वो . शायद समय की यही मांग थी . कुछ प्रेम आधार नहीं चाहते सिर्फ अपने होने में ही संतुष्टि पाते हैं ..........ऐसा ही हाल रोहित के प्रेम का था . अब रोहित ने चाहे अपनी तरफ से दूरियां बढ़ा ली थीं मगर जिस चेहरे को दिन में एक बार देखे बिना उसकी सुबह नहीं होती थी अब कई - कई दिन बीत जाते थे तो ये दंश रोहित को अन्दर ही अन्दर काटने लगा. अपने बनाये मकडजाल में ही रोहित फंसने लगा . अपनी बनाई सीमा को ना तो लांघना चाहता था और ना ही इस पार रह पा रहा था ...........अब वो अन्दर ही अन्दर घुटता था , तड़पता था मगर कभी नहीं चाहता था कि उसकी प्रेरणा पर, उसके पवित्र प्रेम पर कभी कोई लांछन   लगे इसलिए इस पीड़ा को सहन करते - करते कब रोहित अन्दर से खोखला होता गया ,पता ही ना चला ...........उसके जीने की वजह बन चुकी थी पूजा और उसने खुद को ही इस अग्निपरीक्षा में होम किया था ............और जब जंग अपने आप से हो तो इंसान के लिए सबसे ज्यादा मुश्किल होती है ..........संसार से लड़ा जा सकता है मगर अपने आप से लड़ना और जीतना शायद इंसान के लिए बहुत मुश्किल होता है और यही हाल रोहित का था ..........सिर्फ अन्दर से ही नहीं खोखला हो रहा था रोहित बल्कि अब उसका असर शरीर पर भी दिखने लगा था . धीरे - धीरे रोहित का शरीर थकने लगा . एक उदासी ने उसके मन में डेरा लगा लिया था बेशक आज भी पूजा रुपी प्रेरणा से वो उसी उत्साह और उमंग से लिखता था मगर फिर भी शरीर ने साथ देना छोड़ दिया था ............मन की निराशा का असर शरीर पर गहराने लगा और धीरे- धीरे उसने बिस्तर पकड़ लिया मगर किसी से कुछ नहीं कहा और ना ही महसूस होने दिया . 

सभी डाक्टरों को दिखा लिया , अच्छे से अच्छा इलाज करा  लिया मगर किसी भी इलाज का कोई असर ना होता रोहित पर . और फिर एक दिन पूजा जब उसे देखने आई तो उसका हाल देखकर घबरा गयी. काफी जानने की कोशिश की मगर कुछ ना जान पाई बस सिर्फ रोहित की आँखें ही कुछ बोल रही थीं जिन्हें पूजा समझ तो गयी थी मगर उसके आगे जानकर भी अनजान बनी हुई थी . वो किसी भी प्रकार का कोई बढ़ावा नहीं देना चाहती थी जिससे कोई उम्मीद रोहित के दिल में जगे ...........आखिर समझदार औरत थी .

रोहित ने पूजा से कहा , " मेरे जाने के बाद मेरी एक अमानत मैं आपको देना चाहता हूँ क्योंकि उसकी क़द्र सिर्फ आप ही कर सकती हैं "इतना सुनते ही पूजा तमककर बोली ,"रोहित क्या है ये सब, कैसी बातें कर रहे हो ? कहाँ जा रहे हो और कौन तुम्हें जाने देगा ?अरे मैं तो सोच रही थी तुम अपनी गृहस्थी में बिजी हो मगर वो तो मिसेश शर्मा  से पता चला कि तुम इतने बीमार हो . मुझे तो लगता है बीमारी तो बहाना  है आराम करने का . है ना !" इतना सुनते ही रोहित फीकी सी हँसी हँस दिया . 

तब पूजा बोली ," क्या बात है रोहित , क्या कोई परेशानी है? तुम तो हमेशा से हंसमुख इन्सान रहे हो मगर अब ऐसा क्या हो गया जो तुम्हारी ये हालत हो गयी है . निशा बता रही थी कि तुम्हें कोई रोग भी नहीं है इसका मतलब कोई दिल का रोग है तभी ऐसा होता है ..........क्यूँ सही कह रही हूँ ना . "
ये सुनकर रोहित बोला ," पूजा जी , ऐसी कोई बात नहीं है , आपको वहम हो रहा है . सिर्फ काम का बोझ है बाकी इतना तो ज़िदगी में लगा ही रहता है आप बेकार में चिंता कर रही हैं ."

मगर पूजा कौन सी कम थी आज तो ठान कर आई थी कि रोहित को ठीक करके ही आएगी . एक दम बोली , " तुम मुझे क्या समझते हो ? तुम जो कह दोगे मान लूंगी . पहले तो छोटी- छोटी बात के लिए भी मेरे से पूछने आते थे . माना कि अब तुम सयाने हो गए हो मगर इसका मतलब ये नहीं कि मुझसे ज्यादा अक्ल आ गयी है . अब बताओ , कौन सी ऐसी बात है जिसने तुम्हारा ये हाल बना रखा है . " 

मगर रोहित भी कम ना था , वो बार -बार बात को टालता रहा तब पूजा बोली ,"रोहित देखो मुझे लगता है कि तुम अपने और अपने परिवार के साथ ज्यादती कर रहे हो . आखिर तुम्हारे परिवार का क्या दोष ? उन्हें किस बात की सजा दे रहे हो ? क्या उनकी देखभाल करना तुम्हारी जिम्मेदारी नहीं ? उनके प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वाह करना क्या तुम्हारा दायित्व नहीं और ऐसे अन्दर ही अन्दर घुटकर तो तुम उनके साथ भी अन्याय कर रहे हो . देखो तो ज़रा निशा और बच्चों की तरफ-------क्या हाल हो गया है उनका . देखो तुम बेशक कुछ ना बताना चाहो , मैं तुम पर दबाव नहीं डालूंगी मगर फिर भी तुमसे ये उम्मीद जरूर करुँगी कि आज के बाद तुम्हारा ज़िन्दगी के प्रति दृष्टिकोण बदलेगा. ज़िन्दगी सिर्फ ओसारे  की छाँव ही नहीं है . ना जाने किन- किन मोड़ों से इन्सान को गुजरना पड़ता है. सिर्फ अपने लिए जीना ही जीना नहीं होता , कभी- कभी दूसरों के लिए भी जीना पड़ता है . तुम्हारी जो भी समस्या है उसे अगर तुम नहीं बताना चाहते तो मत बताओ मगर उसे स्वयं पर , अपने व्यक्तित्व पर हावी मत होने दो . मनचाहा हर किसी को नहीं मिलता . बच्चा भी चाँद पकड़ने की ख्वाहिश करता है मगर क्या कभी छू सकता है उसे ? अपनी इच्छाओं को , आकांक्षाओं को इतनी उड़ान मत भरने दो कि जीवन ही बेमानी होने लगे . अगर तुम खुद को बदल सको और मेरे कहे पर ध्यान दे सकोगे तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा. ऐसा लगेगा कि तुमने मेरा मान रखा . इतने सालों  के साथ को इज्ज़त दी है . आज तक तुमसे कुछ नहीं चाहा मगर आज चाहती हूँ कि तुम मुझसे ये वादा करो कि तुम अपनी ज़िन्दगी घुट- घुट कर बर्बाद नहीं करोगे बल्कि भरपूर और खुशहाल  ज़िन्दगी जियोगे अगर तुम्हारी नज़र में मेरा ज़रा भी सम्मान है तो . " 

इतना कह कर पूजा तो चुप हो गयी क्योकि वो समझ तो गयी थी कि मानव मन बेहद भावुक होता है और ज़रा सी भी आशा की किरण कहीं दिखाई  देने लगती है तो वहीँ आसरा बनाने लगता है , ख्वाब संजोने लगता है इसलिए सब कुछ समझते हुए भी जान कर भी अनजान बनते हुए पूजा ने बातें इस तरह कीं  कि जिसके बाद रोहित के लिए कुछ कहने को ना बचे और वो यही समझे कि पूजा एक हितैषी की तरह उसे समझा रही है ना कि वो उसके बारे में , उसके दिल के बारे में सब जान गयी है , ये पता चले इसलिए पूजा ने रोहित से ऐसा वादा लिया ताकि इसे पूजा की ख्वाहिश समझे रोहित और यही ख्वाहिश उसके जीवन का संबल बन जाए आखिर उसके लिए तो पूजा की ख्वाहिश ज़िन्दगी की सबसे बड़ी ख्वाहिश थी ना . उसकी प्रेरणा ने आज उससे कुछ माँगा था और वो मना कैसे कर सकता था ---------शायद ये बात पूजा अच्छी तरह से जानती थी क्योंकि यही उम्मीद की एक किरण उसे नज़र आई थी रोहित को जीवन से जोड़ने के लिए ....................
आज बिना इज़हार के भी प्रेम अपनी बुलंदियों पर पहुँच  गया था .

समाप्त

शुक्रवार, 19 नवंबर 2010

खामोशी की डगर और उम्मीद की किरण …………………………भाग 3

इधर रोहित जब से पूजा से मिला उसमे परिवर्तन आना चालू हो गया. अब उसमे पहले से ज्यादा गंभीरता आने लगी .उसके मन में भावों का सागर अँगडाइयाँ लेने लगता मगर कहे किससे ? कौन समझेगा? इसी उहापोह में धीरे धीरे रोहित ने अपने मन की बातें अपनी डायरी  में लिखनी शुरू कर दीं कविताओं के रूप में. ना जाने क्या- क्या लिखता रहता और कई बार पूजा को भी सुनाता तो वो बहुत खुश होती और रोहित को लिखने को प्रेरित करती रहती उसे क्या पता था कि रोहित के मन में क्या चल  रहा है या वो ये सब उसके लिए लिख रहा है . तो वो जैसे सबको वैसे ही रोहित से भी व्यवहार करती ..................

अब आगे --------------



समय अपनी रफ़्तार से गुजरता रहा और इस बीच रोहित की भी गृहस्थी बस गयी और वो दो प्यारे- प्यारे बच्चों की सौगात से लबरेज़ हो चुका था मगर रोहित ने कभी भी अपने ह्रदय के बंद दरवाज़े किसी के आगे नहीं खोले थे . ये तो उसका निजी प्रेम था , अपनी पीड़ा थी , अपनी चाहत थी जो उसे प्रेरित करती थी और उसने पूजा की प्रतिमा को अपने ह्रदय के मंदिर में विराजमान कर लिया था . उससे प्रेरित होकर ही अपने भावों को संगृहीत करता रहता था. 

अपनी गृहस्थी  से, अपनी जिम्मेदारियों से कभी मूँह नहीं मोड़ा . हमेशा हर जगह तत्पर रहता मगर अपने दिल के अन्दर किसी को भी झाँकने की इजाज़त नहीं देता यहाँ तक कि अपनी पत्नी निशा को भी नहीं मगर उसे उसके अधिकार और प्यार दोनों से कभी वंचित भी नहीं किया ........उसे जो प्यार , सम्मान देना चाहिए और जो हर स्त्री की चाह होती है उसमे कभी कोई कमी नहीं आने दी .

रोहित ने प्रेम को , अपनी प्रेरणा को हमेशा जीवंत रखा अपने अहसासों में , अपनी कविताओं में , जहाँ वो अपने प्रेम के साथ एक ज़िन्दगी जी लेता था . एक दिन किसी काम से पूजा उनके घर आई और रोहित के कमरे में ही बैठी थी और जब निशा घर के कामों में लग गयी  तो पूजा मेज पर रखी चीजें देखने लगी और तभी उसके हाथ रोहित की डायरी हाथ लगी और वो उसे पढने लगी. पढ़ते - पढ़ते पूजा ये तक भूल गयी कि कितना वक्त हो गया और वो कब से बैठी है . उस डायरी में यूँ तो कवितायेँ ही थीं . उनसे से कुछ उसने सुनी भी थीं मगर तब कभी ध्यान नहीं दिया क्यूँकि सुनने और पढने में फर्क होता है मगर उस दिन जब वो पढ़ रही थी तो एक बात ने उसका ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया कि जितनी भी कवितायें थी उसमे एक चीज़  खास थी ...........वो था एक नाम ---------पूजा . और इस बात ने उसे अन्दर तक हिलाकर रख दिया. जब उसने देखा हर कविता में पूजा शब्द किसी ना किसी बहाने प्रयोग किया गया है तो वो सन्न रह गयी . अब पूजा इतनी नादान तो थी नहीं जो समझ ना पाती  इसका अर्थ. आखिर शादीशुदा औरत थी भरपूर गृहस्थी  की  मलिका और वैसे भी औरत की छठी इन्द्रिय बहुत तेज़ होती है जो उसे पहले ही आगाह कर देती है . ऐसा ही अब हुआ.


पूजा को समझ आने लगा था कि माज़रा कुछ और भी है मगर वो इसे किसी पर ज़ाहिर नहीं होने देना चाहती थी , पहले अपनी तरफ से इत्मिनान करना चाहती थी . अभी वो इन सब ख्यालों में डूबी हुई ही थी कि उसे पता भी ना चला कि कब से रोहित आकर  उसके पीछे खड़ा है . वो तो रोहित ने जब कहा , "पूजा जी , आज आपके कदम इस गरीब की दहलीज  तक कैसे आ गए ? और ये हमारी अमानत पर दिन -दहाड़े डाका कैसे डाल  रही हैं ?" तब पूजा चौंकी और खुद को संयत करते हुए बोली ,"रोहित , तुम क्या समझते हो , तुम्हारी चोरी कोई पकड़ नहीं सकता. पूजा नाम है मेरा , बड़े बड़ों को पानी पिला देती हूँ ."

इतना सुनते ही रोहित का चेहरा सफ़ेद पड़ गया उसने सोचा ना जाने पूजा को क्या पता चल गया , और जब मन में कुछ छुपा हो तब तो ऐसा होना स्वाभाविक है . क्या वाकई पूजा उसके दिल का हाल जान गयी? अभी रोहित ये सोच ही रहा था कि पूजा बोल पड़ी , " अरे रोहित क्या हुआ? चोरी पकडे जाने से डर गए , देखो तो कैसे पसीने छूट रहे हैं ?" मगर जब पूजा को लगा कि कहीं रोहित को शक ना हो जाए एकदम बात पलटकर बोली , "क्यूँ बच्चू , इतनी सारी कवितायेँ लिख लीं और मुझे सुनाई भी नहीं , पहले तो बड़ी जल्दी- जल्दी सुनाते थे मगर अब तो इतने दिन हो गए क्या हुआ?" तब रोहित की सांस में सांस आई . थोड़ी देर हँसी - मजाक करके पूजा तो चली गयी मगर रोहित सोचने लगा कि आज तो बात आई- गयी हो गयी मगर पूजा जितनी होशियार है ये वो जानता था .कहीं वो उसके भीतर के प्रेम के दर्शन ना कर ले इसलिए थोडा संभलकर रहना होगा. उसका प्रेम उसके लिए पूजा थी और अपनी आराधना में वो पूजा का भी खलल नहीं चाहता था ..........उसे प्रेम का प्रतिकार नहीं चाहिए था सिर्फ पूजा का अधिकार ही चाहिए था और वो उसके पास था ही मगर अपने प्रेम को सार्वजानिक नहीं करना चाहता था ............प्रेम ने कब प्रेम के बदले प्रेम चाहा है वो तो प्रेमी की ख़ुशी में ही खुश रहता है ..........उसके अधरों की एक मुस्कान के लिए अपना सब कुछ कुर्बान करने के लिए तैयार रहता है .........जब उसका प्रेम इस ऊँचाई पर पहुँच गया तो वो नहीं चाहता था कि उसके प्रेम पर कोई ऊंगली उठाये इसलिए ...................


क्रमशः ...................

मंगलवार, 16 नवंबर 2010

खामोशी की डगर और उम्मीद की किरण …………………………भाग 2

बार- बार उसे खींच कर उसी ओर ले जाता था और आँखें खुद को रोक ही नहीं पाती थीं उसे निहारने से ..........ना जाने कैसे वो पूजा के मोहपाश में बंधता जा रहा था............
अब आगे ................



यूँ तो पूजा एक विवाहित महिला थी जिसकी अपनी गृहस्थी थी . पति  , बच्चे , घर परिवार सब था. मगर उसकी हंसमुख और मिलनसार प्रवृत्ति उसे सबके आकर्षण का केंद्र बना देती थी. जो भी मिलता उसका कायल हुये  बिना नहीं रहता. फिर चाहे हमउम्र हो या बड़ा या बच्चा . वो तो सबसे ऐसे बात करती कि किसी को लगता ही नहीं कि उसकी उम्र क्या है या वो उनकी हमउम्र नहीं. सिर्फ थोड़े से समय में ही उसने सारे मोहल्ले के लोगो को अपने स्वभाव से अपना बना लिया था और कोई भी किसी भी समय उसके पास बेझिझक पहुँच जाता था .ऐसे ही एक बार रोहित अपनी माँ के कहने पर किसी काम से पूजा के पास गया . पूजा ने तो उससे उसके बारे में सारी जानकारी ले ली और फिर रोहित से अपने स्वभावानुसार ऐसे बात करने लगी जैसे वो उसकी कितनी पुरानी फ्रेंड हो . शुरू में तो रोहित संकोचवश थोड़ी बहुत बात करके आ गया. मगर बाद में कभी रास्ते में , कभी किसी काम से पूजा से सामना होता ही रहता था और वो उससे ऐसे बात करती कि रोहित को उससे बात करनाअच्छा लगने लगा . पूजा अपने कॉलेज के दिनों की अपनी मस्तियों के किस्से सुनाती और रोहित भी ऐसे सुनता जैसे सब कुछ जानता हो पूजा के बारे में .


रोहित को पूजा की बातें इतना आकर्षित करने लगीं  कि जब तक पूजा से किसी भी बहाने से बात ना हो जाए उसे चैन ही ना पड़ता. उसका तो दिन ही तभी होता जब पूजा की मधुर आवाज़ उसकी हँसी की खनक उसके कानों तक ना  पहुँच जाती. हालांकि  रोहित जानता था की  उसका और पूजा का कोई  मेल नहीं मगर फिर भी वो पूजा के व्यक्तित्व से इतना आकर्षित हो गया कि कोई भी काम होता पूजा से सलाह किये बिना नहीं करता. यहाँ तक कि दोनों के घर वाले भी अब तो हँसी उड़ाने  लगे थे कि कैसे थोड़े दिन में ही पूजा से घुलमिल गया जैसे बरसों से जानता हो मगर सब इस रिश्ते को एक देवर - भाभी के रिश्ते की तरह ही समझते थे.


और इधर रोहित जब से पूजा से मिला उसमे परिवर्तन आना चालू हो गया. अब उसमे पहले से ज्यादा गंभीरता आने लगी .उसके मन में भावों का सागर अँगडाइयाँ लेने लगता मगर कहे किससे ? कौन समझेगा? इसी उहापोह में धीरे धीरे रोहित ने अपने मन की बातें अपनी डायरी  में लिखनी शुरू कर दीं कविताओं के रूप में. ना जाने क्या- क्या लिखता रहता और कई बार पूजा को भी सुनाता तो वो बहुत खुश होती और रोहित को लिखने को प्रेरित करती रहती उसे क्या पता था कि रोहित के मन में क्या चल  रहा है या वो ये सब उसके लिए लिख रहा है . तो वो जैसे सबको वैसे ही रोहित से भी व्यवहार करती ..................


क्रमशः ....................

शनिवार, 13 नवंबर 2010

ख़ामोशी की डगर और उम्मीद की किरण--------भाग १

क्या सबके साथ ही ऐसा होता है ? जब धडकनों के स्पंदन चुगली करने लगते हों , आँखें हर पल बेचैन सी कुछ खोजती हों, लबों पर आकर  हर बात दम तोड़ देती हो और नींद तो जैसे जन्मों की दुश्मनी निकालती हो................दिन के हर पल में सिर्फ एक ही मूरत का दीदार होता हो...........तो क्या कहते हैं इसे.............कैसे ख़त्म होगी ये बेचैनी? मेरे साथ ऐसा क्यूँ हो रहा है ? अब किसी से कहूँगा तो मुझे बीमार समझेंगे या मेरी हँसी उड़ायेंगे ? अब क्या करूँ? ऐसा सोचते -सोचते रोहित बेचैन हो गया . 

जब से वो पूजा से मिला था तब से ही उसका ये हाल था . यूँ तो पूजा को वो पिछले ४-५ महीने से मिल रहा था क्योंकि पूजा उसके घर के पास ही रहने आई थी तो दीदार तो  रोज हो ही जाता था मगर पिछले कुछ समय से उसकी पूजा से बातचीत भी शुरू हो गयी थी और जितना उसने पूजा को जाना उतना ही पूजा का व्यक्तित्व उस पर हावी होता गया. वो खुद को पूजा के आकर्षण में घिरा पा रहा था और जितनी निकलने  की कोशिश करता उतना ही उस चक्रव्यूह में फंसता जा रहा था और अब उसे भी लगने लगा था कि ये सब गलत है मगर दिल था कि मानता ही नहीं था . बार- बार उसे खींच कर उसी ओर ले जाता था और आँखें खुद को रोक ही नहीं पाती थीं उसे निहारने से ..........ना जाने कैसे वो पूजा के मोहपाश में बंधता जा रहा था............

क्रमशः  ...............




बुधवार, 10 नवंबर 2010

कभी दूर होकर भी पास होता है

कभी दूर होकर भी पास होता है
कभी पास होकर भी दूर होता है 
सांवरे ये प्रेम के कैसे भंवर पड़े हैं
जिसमे ना डूबती हूँ ना तरती हूँ
तेरे प्रेम की डोर से ही खींचती हूँ
आस की हर डोर तोड़ चुकी हूँ
तेरा ही गुणगान किया करती हूँ
तेरे दरस को ही तरसती हूँ 
सांवरे तुझ बिन हर पल तड़पती हूँ 
कभी दरस दिखाना कभी छुप जाना 
कभी अपना बनाना कभी बेगाना
तेरी आँख मिचोनी से भटकती हूँ
प्रेम की पीर ना सह पाती हूँ
दिन रात बस राधे राधे रटती हूँ
फिर भी ना तेरी कृपा बरसती है
सांवरे तेरे प्रेम में ऐसे तड़पती हूँ
जैसे सागर में मीन प्यासी 
विरह वेदना ना सह पाती हूँ
तुझसे दूर ना रह पाती हूँ

रविवार, 7 नवंबर 2010

रिश्तों का सौंदर्य

राजू भाग रहा था और गुड्डी उसके पीछे -पीछे उसे पकड़ने के लिए, साथ ही चीखती जा रही थी आज नहीं छोडूंगी तुझे देखती हूँ कब तक भागता है और जैसे ही राजू का पैर अटका तकिये में और वो पलंग पर गिर पड़ा और साथ ही गुड्डी को मौका मिल गया और वो चढ़ गयी उसके ऊपर और लगा दिए ४-५ थप्पड़ दे दनादन तो राजू कौन सा कम था किसी तरह खुद को छुड़ाया और लगा गुड्डी के बाल पकड़ कर झंझोड़ने ..........अब गुड्डी चिल्लाई मम्मी देखो राजू को इसे मना लो नहीं तो मैं इसका सिर फोड़ दूंगी ..........दोनों एक दूसरे से गुत्थम गुत्था हो रहे थे और सुधा ने आकर जैसे ही ये दृश्य देखा अपना सिर पीट लिया ............सुधा चिल्लाई मान जाओ दोनों नहीं तो मैं दोनोको मारूंगी मगर कौन सुने दोनों  में से कोई भी खुद को कम नहीं समझना चाहता था जब सुधा ने देखा कि अब तो एक दूसरे के कहीं ये कोई चोट ना मार दें तो दोनों के १-१ थप्पड़ लगाकर अलग किया साथ ही चेतावनी दे दी कि अब लड़ोगे तो दोनों को घर से ही निकाल दूंगी ..........ये कोई तरीका है घर में रहने का ...........क्या भाई- बहन ऐसे लड़ते हैं तुम तो दोनों ऐसे लड़ रहे हो जैसे टॉम और जैरी लड़ते हैं .तुम दोनों की हर वक्त की लड़ाई से मैं परेशान हो गयी हूँ दोनों में से किसी एक को तो हॉस्टल में डाल दूंगी तब देखती हूँ कैसे लड़ोगे .............ये कहकर सुधा अपने काम में लग गयी.
सुधा परेशान हो जाती थी दोनों की इस तरह की लड़ाइयों  से  .........उसे समझ नहीं आता ये बच्चे अभी से  आपस में इतना लड़ते हैं  और बड़े होकर क्या इनके सम्बन्ध ऐसे बने रहेंगे................वो इसी उलझन में अपने काम करती रही और जब थोड़ी देर बाद उनके कमरे में गयी तो क्या देखती है कि दोनों इकट्ठे खेल रहे हैं मस्ती कर रहे हैं और ये मंज़र देख कर तो कोई कह ही नहीं सकता था कि अभी थोड़ी देर पहले महाभारत मचा हुआ था ............शायद यही भाई- बहन का प्रेम होता है जो पल में तोला तो पल में माशा होता है ...........यही इन रिश्तों का सौंदर्य है जो संबंधों में प्रगाढ़ता का संचार करता है ............आज सुधा अपने बच्चों में ही इस रिश्ते को जीती थी क्योंकि उसके कोई भाई नहीं था ना तो कैसे जान सकती थी कि भाई -बहन का प्रेम कैसा होता है ..........