अरे शिखा कहाँ भागी जा रही है ? ढंग से चप्पल तो पहन ले और फिर बैठकर आराम से नाश्ता कर ले. ये क्या तरीका है भागते- भागते एक कौर मूंह में और एक हाथ में और दूसरे हाथ में सामान. ये कोई तरीका है कितनी बार कहा है आराम से बैठकर खाया कर मगर तू तो सुनती ही नहीं है. उमा बोले जा रही थी और शिखा फटाफट काम करती जा रही थी और हंसती जा रही थी, अरे माँ, क्यूँ परेशान हो रही हो ? मैंने खा लिया है तुम्हें तो पता है न देर हो रही है और देर से ऑफिस जाउंगी तो डांट पड़ेगी शिखा कहती रही मगर उमा तो अपने ही ख्यालों में थी . बोली , "न जाने क्या होगा तेरा मुझे तो समझ ही नहीं आता, कैसे तेरा गुजारा होगा ? अरे पराये घर भी जाना है , यहाँ तो मैं हूँ सब कुछ पका -पकाया तैयार मिलता है वहां तो तुझे ही सब करना भी पड़ेगा और खुद को जाना भी होगा तब कैसे करेगी"?
शिखा बोली,"ऐसा कुछ नहीं होगा ,देख लेना, सभी तो होंगे , मिलजुलकर करेंगे तो जल्दी से हो जायेगा सुनते ही उमा बोली , कौन से ख्वाब में जी रही है मेरी बिटिया , आज तक तो मैंने देखा नहीं एक भी ऐसा घर, बस घर की बहू ही सबके लिए काम करे और कमाकर भी लाये . इस पर शिखा बोली, माँ तुम देखना, अब ऐसा कुछ नहीं होने वाला . आज सब अपना- अपना काम खुद करते हैं और वहां भी सभी को करना होगा . वो किसी अनोखी मिटटी के नहीं बने जैसे मैं वैसे वो. और फिर आजकल काफी से ज्यादा काम तो मशीनों से ही हो जाते हैं . तुम चिंता मत करो. इस पर उमा बोली , "चिंता ! तेरी तो सबसे ज्यादा चिंता है . खुद को कुछ आता है नहीं कैसे सबको खुश रखेगी? और पति का भी ध्यान रखना पड़ेगा तुझे ही .....सुनते ही शिखा खिलखिलाकर हंस पड़ी और बोली, "मैं ख्याल रखूँगी "? क्यूँ क्या वो कोई दूध पीता बच्चा होगा? सुनकर उमा बोली, " कैसी बात करती है ? पति की जरूरतों का ध्यान रखना ही तो पत्नी का फ़र्ज़ होता है . उसके काम तो करने ही पड़ते हैं".
इतना सुनना था कि शिखा तिलमिला कर बोली , क्यूँ उसके काम करूँगी, मैं क्या कोई उसकी गुलाम होंगी जो काम करूँगी. अरे माँ, ये बताओ मुझमे क्या कमी है जो मैं घर और बाहर दोनों जगह अपने को पीसती रहूँगी . अच्छे ओहदे पर हूँ , अच्छी तनख्वाह है , किस बात की कमी है मुझमे. और फिर आजकल पति और पत्नी दोनों को मिल जुलकर ही काम करना पड़ता है और करना भी चाहिए तभी ज़िन्दगी आराम से गुजरती है .
सुनकर उमा बोली , कैसी बातें करती है शिखा , मुझे तो कभी -कभी डर लगता है पता नहीं तेरी कैसे निभेगी? बराबरी करने से कुछ नहीं होता .......कितना भी ऊँचा ओहदा हो हर औरत को घर के कामकाज , देखभाल करनी ही पड़ती है . आखिर वो भी तो पैसा लाता है घर में और उसका घर होता है तो क्यूँ नही चाहेगा तुम से ऐसी अपेक्षा कहकर उमा शिखा का मुँह ताकने लगी. माँ , पैसे लाने से ही सब कुछ नहीं होता मैं भी तो लाती हूँ . बराबर के अधिकार और कर्त्तव्य होते हैं दोनों के. कोई छोटा बड़ा नहीं होता पति- पत्नी के रिश्ते में . अब ये बताओ तुमने अपनी बेटी में ऐसी कौन सी कमी देखी जो वो किसी के आगे झुकेगी. जितना वो अपने बेटे पर पैसा खर्च करते हैं क्या तुमने उससे किसी भी तरह कम पैसा खर्चा किया है क्या ? क्या उन लोगों से कम शिक्षा दिलवाई है ? या मुझमे किसी तरह की कोई कमी है ? जब मुझमे कोई कमी नहीं है तो तुम क्यों चिंता करती हो . अब वो ज़माने नहीं रहे . आज स्त्री और पुरुष दोनों कदम से कदम मिलाकर चलते हैं तभी सफलता पाते हैं और तुम देखना मेरे साथ ऐसा ही होगा और बहुत खुशहाल जीवन होगा हमारा . तुम निश्चिन्त रहो , इतना कहकर शिखा तो चली गयी मगर उमा अपनी ही उधेड़बुन में पड़ी रही . उसे चिंता सताती कि इसके ऐसे विचारों के कारण न जाने कैसे इसकी निभेगी ?
मगर वक्त अपनी रफ़्तार से चलता है . शिखा ने जो कहा वो ही करके दिखाया भी . आज शिखा और रोहित दोनों ही खुशहाल जीवन जी रहे हैं . मिलबाँट कर काम करते हैं बच्चों को भी अच्छी परवरिश दे रहे हैं ये देखकर उमा ख़ुशी से फूली नहीं समाती और सोचती वक्त के साथ सब बदलता है फिर चाहे सामाजिक मान्यताएं हो या इंसानी सोच. उनके वक्त में तो ऐसा सोच भी नहीं सकते थे मगर आज की पीढ़ी काफी व्यावहारिक हो गयी है और एक दूसरे की जरूरतों को समझती है तभी इतनी कुशलता से घर , ऑफिस , बच्चों और समाज में तालमेल बैठा लेती है . आज की पीढ़ी की कार्यकुशलता , ऊर्जा और हिम्मत देख उमा की सारी सोच को विराम मिल गया था और भविष्य के प्रति वो आश्वस्त हो चुकी थी.