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बुधवार, 19 फ़रवरी 2014

तुम सिर्फ़ और सिर्फ़ ……"दर्द "हो मोहन ……2



1) 
अब देखो
गोपियों ने कितना
तुम्हें चाहा
अपना माना
अपने आप को
मिटाया
पर तब भी
अन्त में तुमने
उन्हें क्या दिया
सिवाय और सिवाय
दर्द के
विरह के
यहाँ तक कि
आँख के आँसू भी
उनके सूख गये
सोचना ज़रा
द्रव्यता का हर
स्रोत सूख गया जिनका
उन्हें भी नहीं
तुमने बख्शा
यहाँ तक कि
यदि धडकनों के धडकने से भी
जिनका ध्यान च्युत
हो जाता था
तो वो उन्हें भी
रोकने को उद्यत हो जाती थीं
ऐसी परम स्नेहमयी
गोपियों की पीडा को भी
ना तुमने उचित मान दिया
एक बार गये तो
मुड्कर भी नहीं देखा
प्रेम का प्रतिकार तो
तुम क्या देते
कभी उन प्रेम प्यासी
मूर्तियों को ना
अपना दरस दिया
बस जोगन बना
वन वन भटकने को छोड दिया
ना मिलने आये
ना उन्हें बुलाया
फिर भी ना उन्होने
तुम्हें चाहना छोडा
प्रेम शब्द भी
जिनके आगे छोटा पडा
ऐसे प्रेम को भी तुमने
सिर्फ़ दर्द ही दर्द दिया
बस विरह की ज्वाला में
ही दग्ध किया
इससे बढकर और क्या
तुम्हारा दर्दीला स्वरूप होगा


2)
 
चलो ये छोडो
दूसरा चरित्र पकडो
सुदामा तुम्हारा परम मित्र
प्रशान्त आत्मा
जिसमें कोई चाहना नहीं
ईश्वर से भी कोई शिकायत नहीं
निसदिन अपने धर्म पर
अडिग रहने वाला
तुम्हारा भजन करने वाला
तुमसे भी कुछ ना चाहने वाला
भला ऐसा मित्र भी कोई होगा
क्योंकि
इस दुनिया में तो
स्वार्थ के वशीभूत ही सब
एक दूजे से प्रीती करते हैं
मगर तुमने भी
उसकी परीक्षा लेने में
कोई कसर ना छोडी
लोग तो एक दिन
व्रत ना रख पाते हैं
मगर उसके तो
कितने ही दिन
फ़ाकों पर गुजर जाते हैं
गरीबी की इससे
बढकर और क्या
इंतिहाँ होगी
कि एक साडी मे
उसकी बीवी भरी सर्दी में
गुजारा करती है
मगर दोनो दम्पत्ति
ना उफ़ करते हैं
फिर भी ना शिकायत करता है
फिर भी ना तुम्हें कुछ कहता है
ना तुमसे कोई आस रखता है
यहाँ तक कि
पत्नी , बच्चों की
भूख की पीडा से भी
ना विचलित होता है
ऐसे अनन्य भक्त
मित्र की कारुणिक दशा से
कैसे तुम अन्जान रहे
ज़िन्दगी भर उसे
दुख पीडा के
गहरे सागर में
डुबाते उतराते रहे
अगर उसने अपना
मित्र धर्म निभाया
और ना तुम्हें पुकारा
तो क्या तुम्हारा फ़र्ज़
नही बनता था
मगर तुम तो
यही कहते रहे
बस एक बार वो
मुझे पुकार ले
एक बार वो मेरे
पास आ जाये
तब मैं उसे
सर्वस्व दे दूँगा
अरे ये कौन सा
मोहन तुम्हारा
मित्र धर्म हुआ
क्योंकि
जब बुढापा उसका आया
तब कहीं जाकर
स्वंय के अस्तित्व को
बचाने के लिये
स्वंय को मित्र सिद्ध करने के लिये
तुमने कृपा का उदाहरण पेश किया
जब स्वंय को सिद्ध करने की
बात जहाँ आयी
वहीं तुमने स्वंय को प्रकट किया
क्योंकि लोग ये ना कह दें
हरि मित्र दुखी
ये कलंक कैसे सहूँगा
बस सिर्फ़ अपने पर कलंक ना लगे
स्वंय को बचाने हेतु
तुमने ये सब उपक्रम किया
वरना तो ता-उम्र
दुख, दर्द, विपत्ति देना
ही तुम्हारा परम कर्म हुआ
और इसी मे तुम्हें आनन्द मिला
कहो फिर कैसे ना कहूँ
तुम हो दुखस्वरूप

क्रमश: …………

गुरुवार, 6 फ़रवरी 2014

तुम सिर्फ़ और सिर्फ़ "दर्द "हो मोहन !………भाग 1


दर्द का 
रूप नही 
रंग नहीं 
आकार नहीं 
फिर भी भासता है 
अपना अहसास कराता है 
और इस तरह कराता है 
कि सहने वाला छटपटा जाता है 
बस वो ही तो हो तुम भी 
न रूप 
न रंग 
न आकार 
मगर फिर भी हो
और होकर न होना 
और ना होकर होने के बीच 
जो खेल खेलते हो 
उससे जो सहने वाला 
छटपटाता है 
उसे जानते हो 
मगर फिर भी 
सामने नही आते
तुम्हें चाहने वाले 
तुम्हें मानने वाले
जब तुम्हारी चाहत में
खुद को मिटा देते हैं
बस तुझे ही अपना
सब कुछ मान बैठते हैं
तब भी कितने निष्ठुर हो ना तुम
जब चाहे उसकी
अग्निपरीक्षा ले लेते हो
अरे ! जिसने 
सिर्फ़ तुम्हें चाहा
तुम्हें माना
अपना आप मिटा दिया
उसकी भी अग्निपरीक्षा लेना
कहाँ का न्याय हुआ
नहीं! तुम्हें कैसे 
सुख स्वरूप कह दूँ 
तुम तो पीडा हो
ऐसी पीडा जिसमें
सिर्फ़ पीडित ही
मजबूर होता है
वैसे देखा जाये
तुम अपने चाहने वालों को
और देते ही क्या हो
सिवाय दर्द के
छटपटाहट  के 
पता नहीं कैसे
कह देते हैं तुम्हें …सुख स्वरूप
मैं तो तुम्हें अब 
यही कहूँगी
तुम हो दर्दस्वरूप
एक तरफ़ तो तुम
जो तुम्हें नही मानता 
नास्तिक हो
उसके सामने बिना कारण ही
स्वंय को 
प्रकट कर देते हो
बिना उसके पुकारे
बिना उसके चाहे
जैसे बस तुम्हारा सब कुछ
वो ही हो
फिर चाहे वो 
तुम्हारी कितनी ही 
अवहेलना करे
तो दूसरी तरफ़ 
जो रात दिन
तुम्हें पुकारा करते हैं
तुम ही जिनकी
आस हो, विश्वास हो
जीवन आधार हो
जिन्हें तुम्हें पुकारते पुकारते
एक जन्म नहीं
युग युगान्तर बीत गये
उनकी पुकार का
तुम पर ना असर होता है
तुम तो स्वंय में 
निमग्न रहते हो
और 
विपत्तियों को आदेश देते हो
बस इसके घर से 
ना डेरा हटाना
इसने मुझे चाहा है ना
तो इसका फ़ल यही देता हूँ
इसका सब कुछ हर लेता हूँ
दुख पीडा का 
सारा साम्राज्य 
इसके अर्पित करता हूँ
यही तुम्हारा परम
उद्देश्य बन जाता है
मगर उसके सामने 
ना आते हो
उसकी चाह ना पूरी करते हो
और मन ही मन मुस्काते हो
और सिद्ध करने के लिये बता दूँ
उदाहरण सहित 
फिर चाहे परम मित्र
सुदामा हो या गोपियाँ
भरत हों या माँ यशोदा
गज हो या ग्राह
अजामिल हो या मीरा
एक एक कर 
सबका आख्यान करती हूँ
और इसे प्रमाणित करती हूँ
कि तुम हो दर्दस्वरूप मोहन!

क्रमश: ……………