सुना है
खिले कँवल ही देवता को अर्पित किये जाते हैं
मन तो मर चुका
तुम्हारे जाने के साथ ही
अब इस मिटटी से कौन सा खिलौना बनाओगे और खेलोगे ?
जलती चिता होती
तो सुलगती रहती उम्र भर
डालती रहती उसमे
तुम्हारे निष्ठुर प्रेम की आहुति
मगर
यहाँ न राख है न चिता
खुद भी शक में हूँ
जिंदा होना केवल साँस लेना भर तो नहीं होता न
और मन की मौत होने पर
तुम चाहे सारे ज़माने की सबसे खूबसूरत चीजें रख दो
नहीं फूँक पातीं
ज़िन्दगी का मन्त्र
अब न कोई कामना है न चाहना
न तुमसे कोई गिला न शिकवा
सच पूछो तो
रोते हैं नैन तड़पता है दिल
मगर फिर भी नहीं दे पाती
कोई उपालंभ
वक्त की चिकोटियों से हैरान हूँ
या फिर
शायद
एक महाशून्य में अवस्थित हूँ ... माधव