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शुक्रवार, 31 अगस्त 2018

न जाने कौन था वो

न जाने कौन था वो
जिसने आवाज़ दी
नाम लेकर - वंदना

जाने स्वप्न था कोई
या थी कोई कशिश
इस जन्म या उस जन्म की
यादों का न कोई शहर मिला
यात्रा के न पदचिन्ह दिखे

मैं ख़ामोशी की सीढ़ी चढ़ गयी
कौन सा सिरा पकडूँ
जो तार से तार जुड़े
पता चले किसकी प्रीत की परछाइयाँ लम्बवत पड़ीं

न आवाज़ पहचान का सबब बनी
न किसी चेहरे ने आकार लिया
कशमकश में घडी बीत गयी
और आँख खुल गयी

अब रूह सफ़र पर है
जाने किससे मिलन की आस में

'उस पार से आती है सदा मेरे नाम की'
आह! उमगता है आल्हाद

सोचती हूँ
कहीं वो आवाज़ देने वाले तुम तो न थे ... मोहना

प्रीत बावरी ने पाँव में पहने हैं बिछुए तेरे नाम के
तो ख्यालों का बागी होना लाजिमी है
फिर वो ख्वाब हो या हकीकत ...