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शुक्रवार, 11 सितंबर 2009

अमर प्रेम

अर्चना और समीर की खुशहाल बगिया और उसके दो महकते फूल .................हर तरफ़
ज़िन्दगी में बहार ही बहार । दोनों खुशहाल जीवन जीते हुए । प्रेम का सागर चहुँ ओर ठाठें
मार रहा हो जहाँ । समीर एक सौम्य नेकदिल इंसान ,अपने व्यवसाय में व्यस्त ,पारिवारिक
जिम्मेदारियों के प्रति पूर्णतया समर्पित और अर्चना एक पढ़ी लिखी ,सुशील ,सुंदर घर परिवार
की जिम्मेदारियां निभाती हुई पति के कंधे से कन्धा मिलकर चलती हुई एक संपूर्ण नारी
का प्रतिरूप।
उन्हें देखकर लगता ही नही कि वक्त ने कोई लकीर छोडी हो उनकी ज़िन्दगी पर। वैवाहिक
जीवन के २० साल बाद भी यूँ लगता है जैसे विवाह को कुछ वक्त ही गुजरा हो । दोनों ज़िन्दगी
को भरपूर जीते हुए यूँ प्रतीत होते जैसे एक दूजे के लिए ही बने हों।

ओ मेरे प्रियतम
प्रेम मल्हार गाओ तुम
प्रेम रस में भीगूँ मैं
मेघ बन नभ पर छा जाओ
मयूर सा नृत्य करुँ मैं
वंशी में स्वर भरो तुम
और रस बन बहूँ में
वीणा के तार जगाओ तुम
सुरों को झंकृत करुँ मैं
शरतचंद्र से चंचल बनो तुम
चांदनी सी झर झर झरूँ मैं
तारागन के मध्य , प्रिये तुम
और नीलमणि सी , खिलूँ मैं

ऐसा अद्भुत प्रेम अर्चना और समीर का ।

क्रमश .........................................

8 टिप्‍पणियां:

  1. आप का नया ब्लॉग बहुत अच्छा लगा. हम सब का सहयोग तो हमेशा आप के साथ है. ऐसे ही सतत लिखते रहें. बधाई स्वीकारें.

    NB: Please remove 'word verification'

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  2. उन्हें देखकर लगता ही नही कि वक्त ने कोई लकीर छोडी हो उनकी ज़िन्दगी पर।

    lekin aapki rachna jaroor chhodti hai ek lakir

    Om..

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  3. खूबसूरत प्रयास है अगली कडी का इन्तज़ार रहेगा बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें

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  4. वंदना जी... बहुत अच्छा लिखा है आपने...बडी गहराई है लेखन में...
    बहुत-बहुत शुभकामनाये...

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  5. वंदना जी... बहुत अच्छा लिखा है आपने...बडी गहराई है लेखन में...
    बहुत-बहुत शुभकामनाये...
    -हिमांशु डबराल
    www.bebakbol.blogspot.com

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  6. सबसे पहले इस प्रयास के लिए बधाई और शुभकामनाएं। प्यार को बयान करती रचना पसंद आई।

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आप सब के सहयोग और मार्गदर्शन की चाहत है।