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मंगलवार, 15 सितंबर 2009

अमर प्रेम -------------भाग ३

गतांक से आगे ...............................

वक्त ने एक बार फिर करवट बदली। अर्चना के पास असंख्य ख़त आने लगे । लोग उसकी कविताओं की सराहना करने लगे। उन्ही में एक दिन उसे एक ख़त मिला जिसमें लिखा था :---------------

अर्चना जी ,

आप कैसे इतना गहन लिख लेती हैं ? आपकी हर रचना में ज़िन्दगी की सच्चाइयाँ छुपी होती हैं । आपके लेखन को नमन है। अर्चना जी आपकी हर कविता के साथ मेरी बनाई कोई न कोई फोटो छपती है या यूँ कहो मेरी बनाई हर फोटो के जज़्बात ,उसकी गहनता को आप कैसे अपनी कविताओं में ढाल देती हैं।
जो मैं अपनी चित्रकला के माध्यम से कहना चाहता हूँ उसके भाव सिर्फ़ और सिर्फ़ आप ही कैसे समझ लेती हैं । कौन सा रिश्ता है आपकी कविताओं और मेरी चित्रकला के बीच।

सादर आभार
अजय


इस ख़त का जवाब अर्चना ने कुछ यूँ दिया :-----------------

अजय जी ,
सादर धन्यवाद ................आपको मेरी लिखी कवितायेँ पसंद आती हैं। आपकी बनाई कलाकृति हर कोमल ह्रदय इंसान को ख़ुद -ब-ख़ुद कोई न कोई कविता गढ़ने को विवश कर दे .............इतनी जीवन्तता होती है आपकी कलाकृति में।
फिर भी इतना कहना चाहूंगी शायद हम दोनों की राशि एक है------------हो सकता है इसलिए समझ सकती हूँ आपकी गहन भावनाएं जो हर कृति में छुपी होती हैं।

सादर आभार
अर्चना

उस वक्त अर्चना ने न जाने किन भावनाओं के वशीभूत होकर या यूँ कहो दिल्लगी करने के लिए इस प्रकार की बातें कह दीं । उस वक्त अर्चना ने सोचा भी न था कि हल्के से कही बात अजय के जीवन को एक नया मोड़ दे देगी। बस उसके बाद तो अर्चना और अजय के खतों का सिलसिला चल ही पड़ा । दोनों के बीच एक अनोखा दोस्ती का रिश्ता कायम हो गया। अजय जब तक अर्चना कि कविता पढ़ न लेता या अर्चना जब तक अजय की चित्रकला पर कविता न गढ़ लेती दोनों में से एक दूसरे को चैन ही न पड़ता। अजय के लिए तो अर्चना जैसे भोर का नया उजाला बन कर आई थी। धीरे धीरे रिश्ता आकार लेने लगा। सबसे अहम बात इस रिश्ते की कि अब तक दोनों कभी एक दूसरे से मिले भी न थे .....................एक दूजे को देखा भी न था। कितना सुखद अहसास था इस रिश्ते का।शायद कुछ इस तरह :---------------
न तुमने मुझे देखा
न कभी हम मिले
फिर भी न जाने कैसे
दिल मिल गए
सिर्फ़ जज़्बात हमने
गढे थे पन्नों पर
और वो ही हमारी
दिल की आवाज़ बन गए
बिना देखे भी
बिना इज़हार किए भी
शायद प्यार होता है
प्यार का शायद
ये भी इक मुकाम होता है
मोहब्बत ऐसे भी की जाती है
या शायद ये ही
मोहब्बत होती है
कभी मीरा सी
कभी राधा सी
मोहब्बत हर
तरह से होती है
क्रमशः .............................................

15 टिप्‍पणियां:

  1. ओह बढ़िया कहानी चल रही है . "जज्बात मिले पर उनसे रूबरू मुलाकात हो न सकी" . बहुत उम्दा भावः.

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  2. kahani acche ban padi hai...

    accha hai ki shuru se hi jud gaya bhavishya main 'peeche chooth jane' ke ehsaas na hoga....

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  3. बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ,बधाई हो आपको
    ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है,

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  4. बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ,बधाई हो आपको
    ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है,

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  5. कहानी रोचक है उत्सुकता भी जगा रही है

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  6. स्‍वागत है आपका ..अच्‍छी चल रही है आपकी कहानी .. नियमित बने रहें .. शुभकामनाएं !!

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  7. सुन्दर बहुत सुन्दर ....yadon ko shabdo main kya khoob piroya aapne likhte rahiye.....waise jyada nahi pada apko par jitna pada ...achhha laga !! mere blogs par bhi swagat hai ....

    Jai Ho Mangalmay Ho

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  8. अगला अन्क पढने की उत्सुकता है...

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  9. बहुत सुंदर कहानी लिखा है आपने! पढ़कर बहुत अच्छा लगा!

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  10. बहुत ही सुंदर, bahut Barhia...aapka swagat hai...


    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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  11. एक प्रयास
    में
    एहसा ही एहसास
    का वास
    अनायास
    नहीं है
    ये आपका
    सद्प्रयास
    है

    जवाब देंहटाएं

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