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रविवार, 27 सितंबर 2009

अमर प्रेम -----------भाग ९

गतांक से आगे ..........................

धीरे धीरे अजय के जीवन में परिवर्तन आता चला गया । उसने चित्रकारी करना छोड़ दिया । ज़िन्दगी जैसे बेरंग सी हो गई । बिना प्रेरणा के कैसी कला और कैसे रंग और कैसा जीवन। उसने अपने आप को अपने दायरों में समेट लिया । किसी मौसम का कोई असर अब उस पर नही होता । उधर अर्चना की कवितायेँ अब बिना अजय के चित्रों के छप रही थी इसलिए अर्चना परेशान होने लगी । उसने अजय को न जाने कितने ख़त लिखे मगर किसी का कोई जवाब नही मिला । अब तो अर्चना के लिए जैसे वक्त वहीँ थम गया । उसे समझ नही आ रहा था कि क्या करे । अब उसका भी दिल नई कवितायेँ गढ़ने का नही होता था। न जाने कौन सी कमी थी जो उसे झंझोड़ रही थी । उसका अंतः मन बेचैन रहने लगा। उसके कारण एक अनमोल जीवन बर्बादी के कगार पर पहुँच रहा था और वो कुछ कर नही पा रही थी ।ये ख्याल उसे खाए जा रहा था । उसे समझ नही आ रहा था कि ये उसे क्या हो रहा है -------क्यूँ वो अजय के बारे में इतना सोचने लगी है । अर्चना के जीवन का ये एक ऐसा मोड़ था जहाँ उसे हर ओर अँधेरा ही अँधेरा दिखाई दे रहा था । न वो अजय को समझ पा रही थी न ही अपने आप को । जब अजय पुकारता था तो वो मिलना नही चाहती थी और अब जब अजय ने पुकारना छोड़ दिया तो तब भी उसे अच्छा नही लग रहा था ।अब उसका दिल करता एक बार ही सही अजय उसे आवाज़ दे। उसे समझ नही आ रहा था कि उसे क्या हो रहा है । वो अजय के रूप में मिला दोस्त खोना भी नही चाहती थी साथ ही उसकी जिद पर वो भी कहना नही चाहती थी जो अजय कहलवाना चाहता था। वो एक उगते हुए सूरज को इतनी जल्दी डूबते हुए नही देखना चाहती थी इसके लिए स्वयं को दोषी समझती थी मगर समझ नही पा रही थी कि कैसे इस उलझन को सुलझाए । कैसे अजय के जीवन में फिर से बहार लाये। कैसे अजय को ज़िन्दगी से मिलवाए । अजीब कशमकश में फंस गई थी अर्चना । उसने ख़ुद को और अजय को नियति के हाथों सौंप दिया । शायद वक्त या नियति कुछ कर पाएं जो वो नही कर पा रही है । अब उसे अजय के लौटने का इंतज़ार था .........................

क्रमशः...........................................

4 टिप्‍पणियां:

  1. "अजीब कशमकश में फंस गई थी अर्चना । उसने ख़ुद को और अजय को नियति के हाथों सौंप दिया । शायद वक्त या नियति कुछ कर पाएं जो वो नही कर पा रही है । अब उसे अजय के लौटने का इंतज़ार था ........................."

    देखना है कि आगे अर्चना की नियति
    क्या मोड़ लेती है।
    कहानी दिलचस्प होती जा रही है।
    बधाई!

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  2. आपसे एक निवेदन है वंदना जी
    आप इस कहानी की जब अंतिम किश्‍त प्रकाशित करें तब मुझे पूरी कहानी प्रेषित कर दें । आपका आभार, कारण मैं व्‍यस्‍ततम समय में नहीं पढ़ पा रहा हूं। किसी दिन फुरसत में एक बार में ही सारी कथा कहानी पढ़ लूंगा। सहयोग के लिए धन्‍यवाद।

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  3. रोचह कहानी है देखते हैं अर्चना की इस कशनकश का क्या होता है शुभकामनायें

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आप सब के सहयोग और मार्गदर्शन की चाहत है।