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गुरुवार, 10 जून 2010

प्रीत का रंग

प्रीत चदरिया ऐसी ओढ़ी 
हो गयी मैं बेगानी 
अपना पता खोजती डोलूं
बन के मैं दीवानी 
बांसुरी की धुन पर
वन -वन खोजूं
बन के मैं मतवाली
श्याम प्रीत की 
ओढनी ओढ़ के
हो गयीं मैं अनजानी
श्याम के  रंग में 
ऐसी रंग गयीं
हो गयी मैं भी कारी
श्याम रंग की चुनरिया 
पर मैं जाऊं वारी -वारी
प्रीत की  सब रीतें भुला दूँ
तन -मन की सुधि बिसरा दूँ
प्रेम धुन पर ऐसे 
नाचूँ  छम- छम 
होकर मैं  मतवाली

14 टिप्‍पणियां:

  1. "प्रीत की सब रीतें भुला दूँ
    तन -मन की सुधि बिसरा दूँ"

    बहुत बढ़िया जी....

    कुंवर जी,

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  2. कान्हा प्रेमरस की एक और उम्दा अभिव्यक्ति !

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  3. आपकी संवेदनाएं काबिले-तारीफ है। आपको प्रेम की इस सुंदर रचना के लिए बधाई।

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  4. वाह...कान्हा रंग में रंगी...सुन्दर रचना

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  5. तन -मन की सुधि बिसरा दूँ
    प्रेम धुन पर ऐसे
    नाचूँ छम- छम
    होकर मैं मतवाली
    --
    प्रीत का रंग बहुत बढ़िया चढ़ा है!
    --
    पूरी रचना कृष्ण के समर्पण मे रंगी हुई है!
    --
    इस तरह की रचनाएँ
    आप बहुत ही कुशलता से रचतीं है!
    बहुत-बहुत बधाई!

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  6. बहुत सुंदर शब्दों के साथ...सुंदर प्रेमास कविता....

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  7. बहुत सुन्दर गीत है तुम्हारी सभी रचनाओं मे प्रेम रंग खूब बरसता है आभार

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  8. vandana ji aapki prem ras me doobi rachna aapke krishna prem ko bakhubi darshati hai.khoobsurat shabd sanjojan ke liye badhai....

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  9. प्रेम धुन पर ऐसे
    नाचूँ छम- छम
    होकर मैं मतवाली
    प्रीत के रंग में पूरी तरह डूबी रचना...बहुत ही सुन्दर

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