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बुधवार, 16 फ़रवरी 2011

प्रकृति भी प्रेम रस बहाने लगी

आम के पेड़ पर बौर आने लगे
कोयलिया भी गुनगुनाने लगी
कलियाँ भी खिलखिलाने लगीं
पुष्पों पर वासंतिक रंग छाने लगे
दिल में उमंगों के गीत आने लगे
आ जाओ कान्हा मन मधुबन में
प्रकृति भी प्रेम रस बहाने लगी

कालिंदी भी लहराने लगी
प्रेम मयूर ह्रदय आँगन में
मदमस्त हो नृत्याने लगा
कुञ्ज गलियाँ भी बुलाने लगीं
मुरलिया भी प्रेम धुन गाने लगी
आ जाओ कान्हा मन मधुबन में
अब तो प्रेम रस सब बहाने लगे
प्रकृति भी प्रेम रस बहाने लगी

प्रेम चुनरिया धानी कर दो
प्रेम रस में मुझको पग दो
आनंद सिन्धु आनंद बरसा दो
महारास में शामिल कर लो
प्रीत की रीत निराली कर दो
प्रेम रंग वासंतिक कर दो
आ जाओ कान्हा मन मधुबन में
प्रकृति भी प्रेम रस बहाने लगी

15 टिप्‍पणियां:

  1. वसन्त की रस काव्यकृति में आपने प्रकृति के वासन्ती रंगों की सुन्दर छटा बिखेरी है!

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  2. बहुत प्यारे,मधुर वसंत गीत की रचना की है ! बधाई !

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  3. आम के पेड़ पर बौर आने लगे
    कोयलिया भी गुनगुनाने लगी
    कलियाँ भी खिलखिलाने लगीं
    पुष्पों पर वासंतिक रंग छाने लगे
    दिल में उमंगों के गीत आने लगे
    आ जाओ कान्हा मन मधुबन में
    प्रकृति भी प्रेम रस बहाने लगी
    prakriti ka saundarya aankhon ke aage aa gaya

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  4. प्रेम चुनरिया धानी कर दो
    प्रेम रस में मुझको पग दो

    बहुत अच्छा

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  5. मन में बसन्त हो प्रकृति में भी प्रवाह आ जाता है।

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  6. बसंती फुहार भोगो गयी। सुन्दर रचना के लिये बधाई।

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  7. आप की कविता पढ कर बसंत का एहसास सा होने लगा,जब कि बाहर बर्फ़ ही बर्फ़ पडी हे, बहुत सुंदर कविता, धन्यवाद

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  8. छंद में लिखी आपकी पहली रचना पढी मैंने...

    बहुत ही सुन्दर लिखा है आपने...

    मेरा अनुरोध है की आगे भी इसी प्रकार लय,छंद में ढाल भावों को प्रवाह दें आप...

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  9. Vasant ritu pe itni kavitayen aa chuki...lekin ye kuchh alag hai..!
    kyunki prem ras ko bhar diya aapne..:)

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  10. nice poem
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