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गुरुवार, 21 अप्रैल 2011

"मै" और" मेरा"

अहंकार के दो बच्चे
"मै" और" मेरा"
खूब फ़ले फ़ूले
अहंकार की चाशनी मे
बहुत मीठे लगे
वक्त के साथ
परवान चढते रहे
अहंकार के शिखर
तक पहुंच गये
और फिर लगी
इक ठेस
और धरातल भी
नसीब ना हुआ
"मै" तो पल मे
चकनाचूर हुआ
दर्प अहंकार का
नेस्तनाबूद हुआ
जब "मेरा" ने
उसे दुत्कार दिया
"मै" ने "मेरा" को
कुछ ऐसे पोषित किया
"मेरा" ने "मै" का
सब कुछ छीन लिया
अब ना "मै" है
ना "मेरा" है
जीवन मे आया
नया सवेरा है
छोड दिया "मै" ने
"मेरा" को और
ओढ ली चादर
हरि नाम की
तन राखा संसार मे
मन कर दिया अर्पण
कृपानिधान को

32 टिप्‍पणियां:

  1. मेरा" ने "मै" का
    सब कुछ छीन लिया
    अब ना "मै" है
    ना "मेरा" है,,,, bahut badhiyaa

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  2. अहंकार के दो बच्चे
    "मै" और" मेरा"
    खूब फ़ले फ़ूले
    अहंकार की चाशनी मे
    बहुत मीठे लगे...
    --
    बहुत सुन्दर!
    सारा झगड़ा तो मैं और मेरा का ही है!

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  3. बढ़िया बिम्ब है अहम् का.. सुन्दर कविता बन गई है..

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  4. आजकल लग रहा है आप अनूप जलोटा को अधिक सुन रही हैं ! शुभकामनायें !!

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  5. मेरा और तेरा ने ही महाभारत को जन्म दिया.
    आपने अपनी सुन्दर प्रस्तुति द्वारा ज्ञान का संचार किया है .इसके लिए बहुत बहुत आभार आपका.
    कृपया ,मेरे ब्लॉग पर आयें,नई पोस्ट जारी की है

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  6. कितना कुछ छीन लेता है, मैं और मेरा।

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  7. मैं और मेरा से अब तेरा हो गया ...बहुत अच्छी प्रस्तुति

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  8. अहंकार के दो बच्चे
    "मै" और" मेरा"
    खूब फ़ले फ़ूले
    अहंकार की चाशनी मे
    बहुत मीठे लगे
    कविता मे बहुत सुंदर संदेश मिला, धन्यवाद

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  9. ज्ञान के प्रकाश में आध्यात्मिकता की शुरुआत...

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  10. अहम से वयम तक की यात्रा ही सफलता का सूत्र है।

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  11. वंदना जी बहुत पसंद आई ये रचना।

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  12. आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (23.04.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
    चर्चाकार:-Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)

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  13. ओढ ली चादर
    हरि नाम की
    तन राखा संसार मे
    मन कर दिया अर्पण
    कृपानिधान को....

    बहुत सुन्दर दार्शनिक कविता...
    बहुत गहराई है भावों में...

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  14. बहुत बढ़िया और सच्चा खेल दिखाया 'मै' और 'मेरा' का!यही तो जड़ बतायी गयी है..

    कुँवर जी,

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  15. adhyatm ka dhyan ,shreshthhata ki pahchan . suner manohari rachana .badhayiyan ji .

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  16. "मै" और" मेरा" को सहज ढंग से व्याख्यायित किया है आपने अपनी इस कविता में....

    हार्दिक बधाई !

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  17. "मै" ने "मेरा" को
    कुछ ऐसे पोषित किया
    "मेरा" ने "मै" का
    सब कुछ छीन लिया

    बहुत सुंदर लिखा है ...!!
    सटीक ज्ञानवर्धक सुंदर अभिव्यक्ति .....!!

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  18. बहुत सुंदर भावों को पिरोये अनुभव से उपजी कविता !

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  19. Sach hai ye baisaakhi raaste mein hi toot jaati hai ... bas hari maan hi saath rahta hai ..

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  20. दुनियादारी से दियानतदारी के बीच उलझा इंसान जब जीवन की गंभीरता को समझने लगता है तब मैं और मेरा से निकलना चाहता है. इसी भाव को बखूबी दर्शाती हुयी सुन्दर रचना.

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  21. बहुत पसंद आई ...मैं और मेरा का ही है सारा झगड़ा...शुभकामनायें

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  22. अहंकार के दो बच्चे
    "मै" और" मेरा"
    खूब फ़ले फ़ूले
    अहंकार की चाशनी मे
    बहुत मीठे लगे...

    क्या बात कही है वंदना जी...लोग व्यर्थ में इसे पाले रहते है...बहुत खूब

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  23. मैं और मेरा छूटने के बाद ही इश्वर के निकट पहुंचा जा सकता है ...बहुत अच्छे विचार ..बधाई
    और साथ ही आपकी टिप्पणियों के लिए बहुत बहुत धन्यवाद जो समय समय पर ऊर्जा प्रदान करती हैं

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  24. its really nice poem
    hame dusaro k liye sochna chahiye hamesha apane liye nahi
    superb poem
    http://iamhereonlyforu.blogspot.com/

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  25. कल 03/04/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति में) पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  26. मैं का दर्प इंसान को अँधा , बहरा, संवेदनशून्य बना देता है .....लेकिन जब वह चूर होता है .....तो मात्र इश्वर की शरण ही रह जाती है ....बहुत सुन्दर भाव !

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  27. मर्म अलौकिक समझा जाना। बिना अहं जग स्वर्ग समाना।।

    सुंदर कविता....
    सादर।

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