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बुधवार, 15 जून 2011

चंचल चंचल रे मना

चंचल चंचल रे मना
काहे चंचल होय
श्याम की ब्रजमाधुरी तो
वृन्दावन में होय

धीरज धीरज रे मना

थोडा धीरज बोय
चाहे सींचे सौ घड़ा
ऋतु आवन फल होय

भागे भागे रे मना

काहे भागे रोये
श्याम सुख सरिता तो
मन आँगन में होय 


निर्मल निर्मल रे मना
निर्मल मन जो होए
श्याम प्रेम का वास तो
वा तन में ही होय   





21 टिप्‍पणियां:

  1. पुराने शब्दों को लेकर सुन्दर गीत रचा है आपने.. बहुत बढ़िया...

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  2. भागे भागे रे मना
    काहे भागे रोये
    श्याम सुख सरिता तो
    मन आँगन में होय
    ........ bahut hi bhawmay kerte ehsaas

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  3. भक्ति भाव के हिलोरों से भीगी रचना.

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  4. भक्ति रस से सराबोर दोहे पढ़वाने के लिए आभार!

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  5. सुन्दर भावों से रची सुन्दर अभिव्यक्ति....

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  6. सुन्दर एवं गेय भक्तिभाव से परिपूर्ण रचना।
    आनंददायी।

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  7. सुन्दर, सरल, कोमल सी अभिव्यक्ति।

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  8. सूर और जायसी के युग में पहुच गए हम , गीत मनभावन है बधाई

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  9. सुन्दर भावों से रची सुन्दर रचना|

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  10. KHUBSURAT OR PYARI RACHA LIKHI HAI MAM APNE. . MAN PARSAN HO GYA. . MERA UTSAH BDHANE KE LIYE APKA BAHUT DHANYWAAD. . .
    JAI HIND JAI BHARAT

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  11. शब्दों की झांझर यूँ बजी कि मन झूम उठा .बधाई.

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  12. बहुत मनभावन गेय प्रस्तुति !

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  13. सुन्दर है यह सूफियाना अन्दाज भी

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  14. अच्छी प्रस्तुति वंदना जी
    सादर
    श्यामल सुमन
    +919955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  15. सार्थक सन्देश देती सुन्दर भावमयी प्रस्तुति..

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  16. भागे भागे रे मना
    काहे भागे रोये
    श्याम सुख सरिता तो
    मन आँगन में होय ...


    आन्तरिक भक्तिमय भावों की सहज प्रवाहमय सुन्दर रचना....

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  17. बहुत अच्छी कविता !
    मन के बारे में बताती.

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  18. एक सलाह देना चाहूँगा
    आपके ब्लॉग का बैक ग्राउंड सफ़ेद है, तो इस पे काला रंग के अक्षर ज्यादा सुकून देंगे आँखों को, नहीं तो ये आँखों में चुभते हुए से प्रतीत हो रहे हैं.

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