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मंगलवार, 9 अगस्त 2011

कृष्ण लीला -------भाग 7

इधर कान्हा की छटी मनाई जाती थी
उधर पूतना अप्सरा बन
गोकुल में आ गयी थी
यशोदा से आकर
मीठी बातें करने लगीं
मैया सोचने लगी
ये कौन है?
अब तक तो कभी देखा नहीं
मगर अगले ही पल सोचने लगी
शायद भूल गयी हूँ
बुढ़ापे में तो लाला आया है
अब पूछूंगी  कौन है तो
कहीं नाराज ना हो जाये
ये सोच मैया हँस हँस कर
उससे बतियाने लगीं
और फिर लाला को
उसकी गोद में दे
 उसके लिए
जलपान लेने के लिए
अन्दर चल गयी

जैसे ही लाला को
पूतना ने गोद में लिया था
कहाँ तो हँस - हँस कर
माँ - बेटे बतिया रहे थे
और अब पूतना को देख

कान्हा ने नेत्र बंद किये थे

यहाँ विज्ञजनो ने
प्रभु नेत्र बंद करने के
अलग अलग भाव
बतलाये हैं 
गर्ग संहिता मे तो
नेत्र बन्द करने के
108 भाव बताये हैं 
कुछ प्रस्तुत करते हैं
जिनमे से कुछ
आपके सम्मुख आये हैं
पहली लीला करने जा रहा हूं
ये सोच मानो कान्हा
मंगलाचरण कर रहे हों
मानो सोच रहे हों
दृष्टि ,वृष्टि और ट्रस्टी
इन पर भरोसा नही करना चाहिये
दृष्टि कब दूषित हो जाये
वृष्टि कब हो जाये
और ट्रस्टी कब बदल जाये
भरोसा नही
दृष्टि दोष ना हो जाये सोच
मानो कान्हा ने आँखे बन्द कर ली हों
जैसे शूर्पनखा को देख
राम ने आँखे बन्द कर ली थीं
ज्यादा देखने से भी
विकार आ जाता है 
बिना पुण्य के 
कोई मेरी तरफ़ आता नही
लेकिन ये कैसे आ गयी
मानो आँख बन्द कर देख रहे हो
किस जन्म का पुण्य 
इसे मेरे सम्मुख लाया है 
नेत्र मिलने से प्रीती हो जाती है
प्रीती हो गयी तो कैसे मारूंगा
मानो ये सोच कान्हा ने 
नेत्र बन्द कर लिये

कान्हा सोचने लगे
पूतना है अविज्ञा
अविज्ञा यानि माया
और मैं हूँ मायापति
कैसे इसके दर्श करूँ
गर नेत्रों ने देख लिया
तो सामने ना टिक पायेगी
इसकी सारी असलियत खुल जाएगी
और मेरी लीला अधूरी रह जाएगी
इसलिए नेत्र बंद कर लिए

या यूँ सोचने लगे
ये माई ज़हर पिलाने आई है
पर मैं तो यहाँ
माखन मिश्री खाने आया हूँ
कैसे ज़हर ग्रहण करूँ
ज़हर पीना नहीं आता है
वो तो भोलेनाथ का काम है
मानो नेत्र बंद कर
भोलेनाथ का आह्वान कर रहे हों

या फिर शायद नेत्र
यूँ बंद कर लिए
मानो उसके पूर्व जन्मों
को देख रहे हों
उसके पुण्य पापों का
लेखा जोखा कर रहे हों

या शायद सोच रहे थे
मुझे निडर देख यूँ ना समझ ले
कहीं मेरा प्रभाव चला नहीं
और वापस मुड जाये
और लीला अधूरी रह जाये

या शायद इसलिए कि
आते ही स्त्री से मुठभेड़ हो गयी
विरक्ति भाव से नेत्र बंद कर लिए

या माता का वेश धर के आई है
और अपना दूध पिलाने आई है 
और माता को मारना पाप है
सोच नेत्र बंद कर लिए

या बच्चों को मारने आई थी
वो थे सब भगवद भक्त
और भक्तों का अनिष्ट कोई करे
उसका मुख कान्हा देखें कैसे
मानो इसलिए आँखें बंद कर लीं

या पूतना माया से
दिव्य रूप रख कर आई थी
और भगवान की दृष्टि
पड़ने से माया का
पर्दा हट जाता
और पूतना का
असली वेश प्रगट हो जाता
सारे ब्रजवासी डर जायेंगे
सोच कान्हा ने नेत्र बंद कर लिए

या भगवान के उदर  में
निवास करने वाले
असंख्य कोटि जीव
घबराने लगे
कान्हा पूतना के स्तनों में लगा
हलाहल पीने जा रहे हैं
मानो उन्हें समझाने को
कन्हैया ने नेत्र बंद किये हों

या मानो किसी अपरिचित को देख
कान्हा ने नयन मूँद लिए हों 
 ना जाने भक्तो ने 
क्या क्या भाव बताये हैं
ये भक्तो के प्रेम की
पराकाष्ठा है जो
नेत्र बंद करने के
इतने मधुर भाव बतलाये हैं


क्रमश: ……………

21 टिप्‍पणियां:

  1. नेत्र बंद करने के इतने सारे कारण ..सभी ही तो सही लग रहे हैं ... अच्छी प्रस्तुति

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  2. दृष्टि , वृष्टि और ट्रस्टी पर यकीन नहीं करना चाहिए ...
    क्या बात है ...
    आनंदमयी श्रृंखला !

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  3. कृष्ण लीला का सातवा भाग बढ़िया है. पूतना को देख आँख बंद करने की बढ़िया विवेचना की है आपने.. बहुत सुन्दर !

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  4. Pootna ke baare me pahle nahee pata tha....us prasang kaa vivran bahut sundar hai.

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  5. कृष्णमय लेखनी ...रस प्रवाह.....बहुत खूब

    अगर लाला की जगह ...लला ...लिखा जाता तो
    पढने का ओर भी मज़ा आता

    (बुढ़ापे में तो लला आया है )...सिर्फ एक विचार है अन्यथा ना ले .............आभार

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  6. कृष्ण कथा का मनोहारी वर्णन .......पढ़वाने के लिए आभार

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  7. Bahut khub , ek bar ankh band ki or kai bhav dikhla diye.........
    Yah to hai kishan lila...
    Jai hind jai bharat

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  8. दुग्ध पान के बहाने विष पान कराने वाली रक्छसी के प्रति भी प्रभु के भाव...अत्यंत रोचक ढंग से प्रस्तुत किये गये हैं...

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  9. वंदना जी - यह जो कहा है कि "किस पुण्य कर्म के कारण यह मुझ तक पहुंची है?"

    इसका उत्तर वामन अवतार में है | इस पर डिटेल पोस्ट २-३ दिन में अपने ब्लॉग पर दूँगी - परन्तु अब थोडा बता दूं ?

    पूतना उस जन्म में महादानी महाराज बलि (हिरन्यकश्यप के पुत्र प्रह्लाद के वंशज ) की बहन थी | जब बलि ने सब जग जीत लिए तो देवता घबराए और विष्णु - ने अदिति पुत्र "बामन " का अवतार लिया | वे बलि महाराज से भिक्षा मांगने आय|यद्यपि दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने बलि को समझाया भी कि ये बालक नहीं नारायण हैं - तेरा सब कुछ ले लेंगे - तुझे धोखा दे रहे हैं ब्राह्मन बालक बन कर , फिर भी बलि ने अपने धर्म का पालन कर के बामन को ३ पग भूमि देने का संकल्प किया | और फिर श्री विष्णु ने विराट रूप धरा और २ ही पग में सब ले लिए | फिर तीसरा पग बलि ने अपने सर पर रखवाया |

    जब यह सुन्दर बालक आया - तो उस जन्म की पूतना के मन में भाव उठा "काश यह प्रिय बालक मेरा पुत्र होता" और भगवान तो मन जानते हैं - तो उन्होंने उस भाव को स्वीकार कर लिया |

    फिर जब उस बालक ने उसके भाई (बलि)को धोखा दिया , तो उसने क्रोध में आकर सोचा कि "यदि यह छलिया मेरा पुत्र होता तो मैं इसे दूध में ज़हर दे कर मार देती |" और भगवान ने यह भी स्वीकार लिया |

    इन दोनों ही बातों को इस अवतार में पूतना के दूध पिलाने और ज़हर देने से पूरा किया गया |

    आपकी कथा बहुत आनंद दाई है - हस्तक्षेप किया | क्षमा चाहती हूँ ...

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  10. @ shilpa mehata ji

    आपने सही फ़रमाया ये सारा वर्णन भी आगे के अंक मे आयेगा।

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  11. बहुत सुंदर, दिलचस्प और भावपूर्ण प्रस्तुती! कृष्ण लीला का सातवा भाग शानदार लगा!

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  12. क्या कमाल का लिख दिया है वंदना जी आपने.
    विभिन्न भावों का इतनी सुंदरता से काव्यमय
    निरूपण.आपने तो सच में दिल ही चुरा लिया है.
    कुछ और कहने के लिए शब्द नहीं हैं मेरे पास.

    बहुत बहुत आभार आपका.
    देरी से आने के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ.

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  13. बहुत सुन्दर सारगर्भित रचना , सुन्दर भावाभिव्यक्ति , आभार
    रक्षाबंधन एवं स्वाधीनता दिवस के पावन पर्वों की हार्दिक मंगल कामनाएं.

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  14. त्यौहार की बुनियाद में आपसी प्यार, सद्भावना और सामाजिक सहयोग की भावना ज़रूर मिलेगी। बाद में लोग अपने पैसे का प्रदर्शन शुरू कर देते हैं तो त्यौहार की असल तालीम और उसका असल जज़्बा दब जाता है और आडंबर प्रधान हो जाता है। इसके बावजूद भी ज्ञानियों की नज़र से हक़ीक़त कभी पोशीदा नहीं हो सकती।
    ब्लॉगिंग के माध्यम से हमारी कोशिश यही होनी चाहिए कि मनोरंजन के साथ साथ हक़ीक़त आम लोगों के सामने भी आती रहे ताकि हरेक समुदाय के अच्छे लोग एक साथ और एक राय हो जाएं उन बातों पर जो सभी के दरम्यान साझा हैं।
    इसी के बल पर हम एक बेहतर समाज बना सकते हैं और इसके लिए हमें किसी से कोई भी युद्ध नहीं करना है। आज भारत हो या विश्व, उसकी बेहतरी किसी युद्ध में नहीं है बल्कि बौद्धिक रूप से जागरूक होने में है।
    हमारी शांति, हमारा विकास और हमारी सुरक्षा आपस में एक दूसरे पर शक करने में नहीं है बल्कि एक दूसरे पर विश्वास करने में है।
    राखी का त्यौहार भाई के प्रति बहन के इसी विश्वास को दर्शाता है।
    भाई को भी अपनी बहन पर विश्वास होता है कि वह भी अपने भाई के विश्वास को भंग करने वाला कोई काम नहीं करेगी।
    यह विश्वास ही हमारी पूंजी है।
    यही विश्वास इंसान को इंसान से और इंसान को ख़ुदा से, ईश्वर से जोड़ता है।
    जो तोड़ता है वह शैतान है। यही उसकी पहचान है। त्यौहारों के रूप को विकृत करना भी इसी का काम है। शैतान दिमाग़ लोग त्यौहारों को आडंबर में इसीलिए बदल देते हैं ताकि सभी लोग आपस में ढंग से जुड़ न पाएं क्योंकि जिस दिन ऐसा हो जाएगा, उसी दिन ज़मीन से शैतानियत का राज ख़त्म हो जाएगा।
    इसी शैतान से बहनों को ख़तरा होता है और ये राक्षस और शैतान अपने विचार और कर्म से होते हैं लेकिन शक्ल-सूरत से इंसान ही होते हैं।
    राखी का त्यौहार हमें याद दिलाता है कि हमारे दरम्यान ऐसे शैतान भी मौजूद हैं जिनसे हमारी बहनों की मर्यादा को ख़तरा है।
    बहनों के लिए एक सुरक्षित समाज का निर्माण ही हम सब भाईयों की असल ज़िम्मेदारी है, हम सभी भाईयों की, हम चाहे किसी भी वर्ग से क्यों न हों ?
    हुमायूं और रानी कर्मावती का क़िस्सा हमें यही याद दिलाता है।

    रक्षाबंधन के पर्व पर बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं...

    देखिये
    हुमायूं और रानी कर्मावती का क़िस्सा और राखी का मर्म

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  15. कमाल की कल्पना , माँ शारदा की कृपा हुई है इस रचना पर ...बधाई वंदना जी !
    शुभकामनायें आपको !

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आप सब के सहयोग और मार्गदर्शन की चाहत है।