सत्ताईस दिनों में
फिर वो ही नक्षत्र पड़ा था
आज कान्हा ने भी
करवट लिया था
नन्दभवन में
आनंद उत्सव मन रहा था
ब्राह्मन स्वस्तिवाचन कर रहे थे
नन्द बाबा दान कर रहे थे
मेरा लाला अभी अभी सोया है
गोपियाँ आएँगी तो बड़ा सताएंगी
कोई गाल खिंचेगी तो कोई गले लगाएगी
मेरे लाला की नींद बिगड जाएगी
ये सोच मैया ने एक छकड़े में
कपडा बाँध लाला को लिटा दिया
अब मैया गोपियों के संग
नाचने गाने लगी
कान्हा के लिए उत्सव मनाने लगी
वहाँ तो बात बात मे उत्सव मनता था
लाला ने करवट ली जान
आनन्द मंगल होने लगा
इधर कंस का भेजा शकटासुर आया था
और छकड़े में आकर छुप गया था
जब कान्हा ने देखा ये मुझे मारना चाहता है
तब कान्हा ने रोना शुरू किया
सोचा कोई होगा तो मुझे उठा लेगा
मगर मैया तो नाचने गाने में मगन थी
और आस पास ग्वाल बाल खेल रहे थे
मगर किसी ने भी ना कान्हा का रोना सुना
जब देखा कान्हा ने सब अपने में मगन हुए हैं
तब कान्हा ने धीरे से अपना पैर उठाया है
और छकड़े को जोर लगाया है
पैर के छूते ही छकड़ा उलट गया
और सारा दधि माखन बिखर गया
कपडा भी फट गया
और कान्हा नीचे गिर गया
मगर शकटासुर का काम तमाम हुआ
इधर जैसे ही सबने शोर सुना
गोप गोपियाँ दौड़े आये
और आपस में बतियाने लगे
ये छकड़ा कैसे पलट गया
कोई आया भी नहीं
कोई उल्कापात भी नहीं हुआ
कहीं से कोई आँधी नहीं चली
पृथ्वी में भी ना कम्पन हुआ
फिर छकड़ा कैसे उलट गया
तब वहाँ खेलते ग्वाल बाल बोल उठे
ये लाला ने पैर से उल्टा दिया
मगर उन्हें बच्चा जान
किसी ने ना विश्वास किया
फिर नंदबाबा ने शान्तिपाठ करा
ब्राह्मणों का आशीर्वाद दिलाया
और लाला को गले लगा लिया
क्रमश:…………