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मंगलवार, 3 जनवरी 2012

कृष्ण लीला ........भाग 31




यूँ बैकुंठनाथ को बांध मैया काम में लग गयी
जिस ब्रह्म का पार ना कोई पाता है
वो आज माँ के प्रेम पाश में बंध जाता है
तीन बार उनके मुख में
तीनो लोकों का भ्रमण किया
फिर भी ना उन्हें पहचान 
ऊखल से बांध दिया
पहले तो गोपियाँ हँस रही थीं
जब श्यामसुंदर बंध रहे थे
मगर अब पछताती हैं
उदास हुई जाती हैं
यशोदा से जा विनती करती हैं
मैया छोड़ कान्हा को
पर मैया ने एक ना मानी
और कहने लगी
अब क्यों झूठी प्रीत दिखाती हो
तुम्ही तो रोज उलाहना लेकर आती हो
जब यशोदा ना मानी
बृजबाला उदास मन 
अपने घर को चलीं 
बलराम जी को जब ज्ञात हुआ
तत्क्षण मैया के समीप गए
आग्रह करने लगे
मैया कान्हा को छोड़ दो
चाहे बदले मुझे बांध लो
ना जाने कैसे ये पृथ्वी पर आये हैं
बाल लीला का सुख पहुंचाते हैं
और तुम ना उन्हें पहचान पाती हो
इतना सुन मैया बोल उठी
बलभद्र आज ना छोडूंगी
बहुत जग हंसाई करवाई है
माखनचोर नाम रखवाया है
मुँह दिखाने लायक ना छोड़ा है
आज सबक सिखाकर रहूँगी 
बात किसी की ना मानूंगी
जब देखा आज मैया हठ पर अड़ी है
तब कान्हा के पास गए
हाथ जोड़कर बोल उठे
प्रभु आप की लीला 
आपके बिना ना कोई जान पाया है
तुम नंदरानी के प्रेम में
बिन मोल बिक गए हो
इतना कह बलराम जी चले गए



इधर प्रभु ने सोचा 
आज यमलार्जुन का उद्धार करूँ
नारद के शाप से इन्हें मुक्त करूँ
मणिग्रीव और नलकूबर 
ये दो थे वरुनपुत्र
इतना सुन परीक्षित कहने लगे
गुरुदेव ज़रा विस्तार से बताइए
कौन से कर्म से शापित हो
वृक्ष बनाना पड़ा ज़रा बतलाइए
तब शुकदेव जी बतलाने लगे
नलकूबर और मणिग्रीव
कुबेर पुत्र महादेव भक्त
कैलाश पर निवास थे करते
इक दिन पत्नियों सहित 
वन  विहार को थे निकले
मदिरा पी मतवाले हो
स्त्रियों सहित नग्न हो
गंगा मैया में जलक्रीडा थे करते 
तभी नारद जी का उधर आगमन हुआ
जिन्हें देख इनकी स्त्रियों ने 
लज्जावश वस्त्र धारण किया
पर मद में चूर अभिमानी
दोनों ने निर्लज्ज सा व्यवहार किया
धन गर्व में मत्त नारद जी को
ना दंडवत प्रणाम किया
उनकी दशा देख नारद जी ने विचार किया
जो ना दूँगा श्राप इन्हें
तो कैसे ये समझेंगे
इन्हें धन का गर्व हुआ है
काम क्रोध के वशीभूत हुए हैं
अच्छे बुरे का विचार त्यागा है
बड़े छोटे का व्यवहार भी
भूल गए हैं
मद में दोनों चूर हुए हैं
बुरे कर्म भी करने लगेंगे
क्यों ना इनका दर्पचूर करूँ
ये सोच उनके कल्याणार्थ
नारद जी ने श्राप दिया
जिस अवस्था में खड़े हो
अर्थात नग्न ऐसे ही तुम दोनों
जड़ वृक्ष बनो
जब तुम्हारा अभिमान मिटेगा 
और प्रभु का तुम्हें समरण होगा
इतना सुन अब दोनों को
गलती का अपनी भान हुआ
दोनों कर जोड़ चरणों में गिर गए
प्रभु गलती हो गयी 
कृपा दृष्टि अब डालिए
हमें श्राप से मुक्ति का उपाय बतलाइए


क्रमशः ............


7 टिप्‍पणियां:

  1. ईश्वर की लीला अपरम्पार है..इस बंधन में भी किसी की श्रापमुक्ति निहित है-जय श्रीकृष्ण!

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  2. प्रभु आप की लीला आपके बिना ना कोई जान पाया है तुम नंदरानी के प्रेम में बिन मोल बिक गए हो इतना कह बलराम जी चले गए ...ati manoram

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  3. इस श्रृंखला से काफी नयी जानकारी मिली .. आभार

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  4. वंदना जी - आप कृष्णामृत पिलाती जाइए - हम पीते जा रहे हैं |

    अगली कड़ियों का बेसब्री से इंतज़ार है | ऐसा लगता है - की कान्हा को आप आँगन में उतार लायी हैं :)

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  5. यूँ बैकुंठनाथ को बांध मैया काम में लग गयी
    जिस ब्रह्म का पार ना कोई पाता है
    वो आज माँ के प्रेम पाश में बंध जाता है

    सच में आपने भी जरूर बाँध रखा है
    उस मनमोहन को अपने प्रेम पाश में.

    शब्दों और भावों से जैसा चाह रहीं
    हैं नचा रहीं हैं उसे.मुझे तो आप में ही
    यशोदा मैय्या नजर आ रहीं हैं वंदना जी.

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