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सोमवार, 19 मार्च 2012

कृष्ण लीला ..........भाग 41






जो बछड़े जंगल में थे चरने गए
उन्हें ब्रह्मा ने अपनी माया से लिया छुपा 
जब बहुत देर हुई और बछड़े नहीं आये
तब ग्वाल बाल घबराये
तब कान्हा ने धैर्य बंधाया
और उन्हें रोक खुद 
ढूँढने का उपक्रम किया 
जंगल में बछड़े नहीं पाए 
तब कान्हा वहीँ लौट आये 
आकर देखा तो 
सारे ग्वाल बालों को भी
वहाँ नहीं पाया 
तब उन्हें जोर से आवाज़ लगाया है
पर जब ना बछड़े और ग्वालों को पाया है
तब अंतर्यामी भगवान ने ध्यान लगाया है
और ब्रह्मा द्वारा अपहृत 
ग्वालबाल और बछड़ों का
हाल जाना है
प्रभु समझ गए ये ब्रह्मा की 
बुद्धि मेरी माया ने हर ली है
चाहूँ तो अभी सभी को
वापस ला सकता हूँ
मगर इससे ना ब्रह्मा का
भरम टूटेगा
ये सोच कान्हा ने 
ग्वाल बाल और बछड़ों का रूप धरा
जितने ग्वाल- बाल और बछड़े थे
उतने ही कान्हा ने रूप धरे थे
ये भेद ना किसी ने पाया था
जो -जो जिस- जिस 
गुण- स्वभाव और आकार का था 
जैसे श्रृंगार करता था
जैसा बोला करता था
जैसा आचार- व्यवहार करता था
प्रभु ने बिल्कुल वैसा ही रूप धरा था 
और शाम को ब्रज की ओर
प्रस्थान किया था
बांसुरी की  तान सुन
गोपों की माताएं दौड़ी आई थीं
और कृष्ण रूप ग्वाल को गले लगायी थीं
और वात्सल्य स्नेह सुधा बरसाई थी
अजब आनंद आज समाया था
जैसा पहले कभी नहीं आया था
गाय दूध ज्यादा देने लगी थीं
अपने बछड़ों से स्नेह 
ज्यादा करने लगी थीं 
माताएं भी अति आनंदित रहती थीं
ग्वाल बालों से कृष्ण सरीखा
प्रेम किया करती थीं
ये भेद कोई ना जान पाया था
कि हर रूप में 
कृष्ण ही तो समाया था
फिर कैसे ना हर्षातिरेक होता
और कैसे ना प्रभु सम प्रेम होता
ये देख बलराम जी चकराए थे
ये कैसी विचित्र बात नज़र आती है
हर ओर कृष्ण प्रेम की 
बयार बही जाती \ है
यह कैसी माया छाई है
दैवी है या दानवी 
जो मेरा स्नेह भी
कृष्ण सम इन ग्वालों और 
बछड़ों पर आया है
ये किसकी माया है
प्रभु की माया के सिवा
और कोई मोहित 
कर नहीं सकता
इतना विचार कर 
दिव्य दृष्टि से 
सब देख लिया
इधर ब्रह्मा जी वापस आये हैं
और प्रभु को ग्वाल बालों सहित
बृज में पाए हैं
ये देख ब्रह्मा चकराए हैं 
ग्वाल बालों को तो मैं
ब्रह्मलोक  छोड़ आया हूँ
फिर ये कैसे यहाँ आ गए
सोच ब्रह्मा जी ने ध्यान किया
पर पार ना कोई पाया है
कौन से असली और कौन से नकली
पता ना लग पाया है
अब ब्रह्मा भी चकराया है
और फिर ध्यान लगाया है
अब तक दीखते थे जो
बछड़े और ग्वाल बाल
उन सबमे कृष्ण का 
दर्शन पाया है
अपने भी कई रूप
प्रभु की पूजा करते देखे
ये देख ब्रह्मा जी घबराये हैं
आँखें खोल प्रभु के 
चरणों में शीश झुकाए हैं
प्रभु की सारी माया समझ गए
और अपनी करनी पर 
उन्हें ग्लानि होती है
प्रभु चरणों की वन्दना करते हैं
प्रभु की  यूँ तो होती हैं
चार परिक्रमा 
पर ब्रह्मा जी तीन करके
निकल गए
प्रभु के गुस्से से घबराये हैं
इधर प्रभु प्रेरणा से
जब ब्रह्मा जी 
ब्रह्मलोक में पहुंचे हैं
वहाँ द्वारपालों ने 
उन्हें रोक लिया
तब ब्रह्मा जी बोल उठे
आज तुम्हें क्या हो गया
मैं तुम्हारा स्वामी ब्रह्मा हूँ
पर उन्होंने ना ध्यान दिया
कर जोड़ कह दिया
हमारे ब्रह्मा तो अन्दर विराजते हैं
हम उनसे पूछकर आते हैं
ये सुन ब्रह्मा का दिमाग चकरा गया
ये कौन सा दूसरा ब्रह्मा आ गया
ये कैसी लीला चलती है
ब्रह्मा ने ध्यान लगाया है 
और अपनी गद्दी पर 
अपना वेश धरे 
प्रभु को बैठा पाया है
वहाँ प्रभु कह रहे हैं
देखा ब्रह्मा तुमने मुझ पर शक किया
आज तेरे घरवाले ही 
तुझ पर शक करते हैं 
जो प्रभु पर शक करते हैं
वो कहीं के नहीं रहते हैं 
ये देख ब्रह्मा ने कर जोड़ लिए
इधर पहरेदार आया है , कहा
तुम्हें अन्दर ब्रह्मा ने बुलाया है
जैसे ही ब्रह्मा जी ने प्रवेश किया
प्रभु ने ब्रज को प्रस्थान किया
इस तरह प्रभु ने ब्रह्मा का 
मोह भंग किया
इतना कह शुकदेव जी ने
पांचवें वर्ष की कथा का 
छटे वर्ष में कैसे
ग्वालबालों ने बतलाया 
वो रहस्य बतला दिया 
ये रूप प्रभु ने एक वर्ष तक धारण किया 
पर ये भेद किसी ने ना जाना
ये दिव्य लीला प्रभु की 
सिर्फ इतना बतलाती है 
अपने पालनहार को न बिसराना
बस प्रभु से ही अपने तार लगाना 
कब कौन सी लीला वो रच देंगे 
ये पार न कोई पाता है 
बस जो प्रभु की ऊंगली पकड़ 
चलता जाता है 
वो भव से आसानी से तर जाता है 

क्रमशः .........

14 टिप्‍पणियां:

  1. इतनी तन्मयता इतना समर्पण ---- अनुपम

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  2. कोशिश है उन्हें न बिसराने की, परन्तु जब ब्रह्मा जी उसकी लीला से विचलित हो जाते हैं तो हम क्या हैं। प्रभु का स्मरण कराने के लिए आप बधाई के पात्र हैं। भगवान आपको अपनी भक्ति प्रदान करें हमारी ऐसी कामना है।

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  3. ऐसे श्री गोपाल को बारम्बार प्रणाम है..

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  4. जो प्रभु की उंगली पकड़ कर चलता है
    वो भव से आसानी से तर जाता है...

    बहुत सुंदर!!!

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  5. यू ही कृष्ण रस से सरोबार करती रहिये..

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  6. कृष्ण लीला से परिचित हो रहे हैं ...सुंदर अभिव्यक्ति

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  7. कृष्ण कथा के बड़े मनोयोग से पढ़ रहा हूं।

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  8. अति सुंदर शब्द रचना ! गोपाल कृष्ण की इस अद्भुत लीला का रहस्य उजागर करने के लिए साभार धन्यवाद !बधाई !

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  9. 'दीन बंधू दीनानाथ,लाज मेरी तेरे हाथ.'

    ब्रह्मा जी की लाज भी प्रभु के हाथ में ही है.
    ऐसे प्रभु को निस दिन ध्यायें,तो ही जीवन सफल होवे.
    भक्ति भाव से पूर्ण प्रस्तुति के लिए आभार,वंदना जी.

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