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शुक्रवार, 6 अप्रैल 2012

कृष्ण लीला .........भाग 43




एक दिन बलरामजी घर पर रहे
और कान्हा गोपों संग गौ चराने गए 
वन में चरते चरते गौ छिटक गयीं
ग्वालबाल कान्हा से विलग हो 
गायों को ढूँढने निकले 
और अति व्याकुल हो 
गौओं संग यमुना का जल पीया
होनहार वश ना उन्हें
यमुना के विषैले जल का याद रहा
पीते ही सब प्राणहीन हुए
जब काफी देर तक
ग्वाल बाल नहीं आये
तब उन्हें ढूँढने 
कान्हा निकल पड़े
यमुना तट पर ग्वालों सहित
गौओं को मृत पाया
पर अपनी दिव्य अमृत दृष्टि से
उन्हें जिलाया 
इस तरह जब सब उठ खड़े हुए
जैसे नींद से जगे हों
जब सारा कारण जाना
तब कान्हा से लिपट गए
तुम ही हमारे खिवैया हो
तुमने प्राण बचाए हैं
हम तुम पर जीवन हारे हैं
ब्रज में आकर सबको हाल बताया है 
ये सुन मैया बाबा प्रसन्न हुए
इधर कान्हा ने सोचा
कालिया का यमुना में रहना ठीक नहीं
जो भी जल पीता था
मर जाता था 
उस नाग के विष की ज्वाला से
चार कोस तक जल खौलता रहता था
कोई पशु पक्षी ना 
वहाँ जा पाता था 
कोई धोखे से जाता भी था
तो जीवित ना बच पाता था
इसे यहाँ से हटाना होगा
काली नाग के रहने से
यमुना को भी दोष लगता है
वहाँ पर ना कोई वृक्ष 
घास फूस उगती है
बस एक कदम्ब का वृक्ष ही
वहाँ अविनाशी दिखता था 
ये सुनकर परीक्षित ने पूछा
ऐसा क्या कारण हुआ
जो ना उस वृक्ष का नाश हुआ
सुन शुकदेव जी बताने लगे
किसी युग में गरुड़ जी 
अपने मुख में अमृत ले
उस वृक्ष पर आ बैठे थे
सो एक बूँद वृक्ष पर 
गिर पड़ी थी
इसलिए ही तो वृक्ष हरा रहता है
कालिया का विष ना उसमे
प्रवेश कर सकता था 



जब श्याम सुन्दर ने यमुना को
कालिय नाग से मुक्त करने का निश्चय किया
तब प्रभु प्रेरणा से नारद जी ने
कंस के महल का रुख किया
राजन क्यों उदास बैठे हो ?
नारद जी ने पूछ लिया
हाथ जोड़ कंस ने अपना हाल बयां किया
नन्द के दो बेटा बड़े बलशाली हैं
उन्होंने मेरे कई राक्षस मार डाले हैं
लगता है वो ही मेरे 
प्राण लेने वाले हैं 
तब नारद जी ने इक उपाय बताया
और प्रभु का भी काज बनाया 
तुम नन्द जी से कालीदह से 
कमल पुष्प मंगवा  लेना
जब लेने वो बालक जायेगा
कालीदंश से मर जायेगा
इतना कह नारद जी चले गए 
और कंस ने संदेसा भिजवाया है
एक करोड़ कमल के फूल 
कालीदह से मँगा कर भेजो
अन्यथा घर बार लूटा जायेगा
ब्रज से सबको निकाला जायेगा
तुम्हारे बेटों को बंदी बनाया जायेगा


क्रमशः ...........

7 टिप्‍पणियां:

  1. जमुना को विषमुक्त कराने वाले कृष्ण कन्हैया को प्रणाम।

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  2. बहुत सुंदर .... कृष्ण लीला पढ़ रहे हैं .....

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  3. मेरी टिपण्णी इस् प्रसंग पर कहाँ छिपाली है आपने.
    आपकी शिकायत कृष्ण कन्हैय्या से करनी पड़ेगी.
    पर क्या करूँ.. आपने तो उसे अपने वश में कर रखा
    है.उनकी लीला आपकी लेखनी से निकल कर नित नित दिव्य होती जा रही है.

    सब उसी की जादूगरी है वन्दना जी...है न ?

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  4. कृष्ण लीला न्यारी!....अति सुन्दर प्रयास!

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