राधा से तो प्रीत पुरानी थी
अगले दिन राधा दधि बेचने जब गयी
नन्द के मकान के इर्द गिर्द डोलने लगी
बावरी बन सबसे
मोहन का पता पूछने लगी
किसी ने देखा है मेरा श्याम
कहाँ है उसका घर ग्राम
कोई तो बता दो री
अरी मुझे श्याम के दरस करा दो री
राधा ने लोक लाज बिसरायी है
मोहन के प्रेम रही बिकाई है
राधा की दशा देख
गोपियों ने पूछा
राधा तू क्या बेचती है
सुन राधा ने जवाब दिया
मोहन मेरे तन मन में यूँ बसे
जैसे मेहँदी के पत्तों में
लाल रंग समाया हो
मेरी गति तुम क्या जानोगी
जब तक ना ऐसा रंग चढ़ाया हो
सखियों ने बहुतेरा समझाया
घर ग्राम का डर दिखलाया
पर राधा ने अपनी सुध बिसरायी
सिर्फ श्याम नाम की रटना लगायी
मुझे श्याम दरस करा दे कोई
श्याम विरह में हो गयी दीवानी
श्याम की हुई मैं मस्तानी
श्याम रंग ऐसे चढ़ जाये
श्यामा श्याम रहूँ धराये
जब ऐसी दशा देखी सखियों ने
इसके रोम रोम में बसे हैं श्याम
कहना सुनना नहीं आता काम
गर श्याम दरस न होंगे इसको
देह में प्राण ना रहेंगे इसके
ये देख एक सखी ने जा
सब हाल श्यामसुंदर को बतलाया
एक सुंदर- सी गोरी
नीली साडी पहने
मटकी सिर पर रखे
तुम्हें पुकारा करती है
और वंशीवट को जाती है
जल्दी जाकर उस विरहिणी
का ताप मिटाओ
नहीं तो प्राणों का त्याग करेगी
तुम्हें देखे बिन ना जी सकेगी
इतना सुन मोहन वंशीवट को दौड़ गए
जा राधा का ताप मिटाया
नयन सुख दे ह्रदय ज्वाल को शांत किया
और इसी तरह मिलन का वचन दिया
मनोरथ पूर्ण कर राधा घर को चली
रास्ते में थी वो सखी खडी
खिला मुखकमल देख सब जान गयी
राधा को मोहन का नाम ले चिढाने लगी
जिसे देख राधा
नाक भौं सिकोडन लगी
छल बल से सखी पूछने लगी
मगर राधे भी चतुर निकली
मिलन का ना कोई हाल बताया
ललिता आदि सखियों ने
जब ये हाल जाना
तब सबने राधा से
मिलन का मन बनाया
सब सखियों को आई देख
राधे सारा माजरा समझ गयी
ललिता ने इधर उधर की बात कर
राधा का मन टटोला
मगर राधा ने मुख से
एक शब्द ना बोला
क्यों मौन धारण कर लिया है
किसे अपना गुरु बना लिया है
सुन राधा ने बतलाया
हँसी ठिठोली ना मुझे भाती है
ये सखी व्यर्थ इलज़ाम लगाती है
श्यामसुंदर का ना मुझे
स्वप्न में भी दर्शन हुआ
वृथा पाप क्यों लगाती है
बदनामी के डर से सकुचाई जाती हूँ
या रिस के कारण चुप रह जाती हूँ
सुन ललिता ने बात को संभाला
सही कहती हो राधे
कहाँ ऐसे भाग्य हमारे
जो उनके दर्शन हो जायें
हम भी जीवन सफल बनाएँ
राधे तू बडभागिनी है
जो उनके मन को भाती है
इतना कह सखियाँ विदा हुईं
पर रंगे हाथों दोनों को पकड़ना होगा
मन में ठान गयीं
इधर श्यामा श्याम की प्रीत ने रंग जमाया
देखे बिना दोनों ने
इक क्षण चैन ना पाया
तब राधा ने यमुना में
स्नान का बहाना बनाया
और ललिता आदि सखियों को बुलाया
जैसे ही स्नान करके बाहर निकलीं
सामने नटवर नागर को
वंशी अधरों पर रखे
राधा ने देखा
सुध बुध तन मन की भूल गयी
अँखियाँ उसी रूप में अटक गयीं
दोनों का हाल एक जैसा था
तभी ललिता ने राधा की दशा देख वचन उचारा
कल तो मिलन से मुकरती थीं
आज टकटकी बाँध देख रही हो
अब इन्हें मन में बसा लेना
तुम्हारे वास्ते ही हमने इन्हें बुलाया है
सुन ललिता की भेदभरी वाणी
राधा सकुचा गई
और मन ही मन पछता गयी
हाय ! आज तो चोरी पकड़ी गयी
इन नैनन की अजब जादूगरी है
राधे का मलिन मुख देख
ललिता ने दिया दिलासा
फिक्र ना करो राधे
हम ना किसी को कुछ बतलायेंगी
ये साँवली मोहिनी सुरतिया का जादू है
जिसने हर मन को मोह लिया है
चित्त सबका चुरा लिया है
ना जाने कौन सी तपस्या तुमने की थी
जो इनके मन को भायी हो
सब इनको चाहें बड़ी बात नहीं
इनका प्रेम जिसे मिले
उससे बडभागी कौन दिखे
सुन राधा लज्जित हो बोली
मैंने तो मुख पर ना ध्यान दिया
मेरी दृष्टि तो भृकुटी पर ही अटक गयी
देख सखियाँ सराहना करने लगीं
क्रमश:……………
बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंरक्षाबंधन पर्व की हार्दिक अग्रिम शुभकामनाएँ!!
इंडिया दर्पण पर भी पधारेँ।
Bahut dinon baad Krishn leela padhee.Tumhen phone karungi.
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार को ३१/७/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चामंच पर की जायेगी आपका स्वागत है
जवाब देंहटाएंरसपूर्ण वर्णन..
जवाब देंहटाएंकृष्णलीला का 59वाँ अंक भी ज्ञानवर्धक रहा।
जवाब देंहटाएंकृष्ण मयी करती सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंजय श्री कृष्ण!
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंVery nice post.....
जवाब देंहटाएंAabhar!
Mere blog pr padhare.
ओह! कमाल की भावमय प्रस्तुति है.
जवाब देंहटाएंअब तो बस 'राधे राधे श्याम मिला दे'
गाने का मन हो रहा है.राधा कृष्ण का
प्रेम अदभुत,अलौकिक और मधुर रस
की परिकाष्ठा है.
आभार वन्दना जी.