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रविवार, 9 सितंबर 2012

कृष्ण लीला रास पंचाध्यायी ……भाग 66



जब प्रेम विरह में मतवाली हुईं
तब एक गोपी बोल पड़ी
सखियों देखो इन पशु पक्षियों को
ब्रज रज और वृक्षों को
ये सब ऋषि मुनि योगी हैं
प्रभु दरस की लालसा में
बने वियोगी हैं
इनसे पता हम पूछते हैं
जरूर इन्होने
श्यामसुंदर को देखा होगा
कृष्ण हमारा मन चुरा
डर कहीं छुप गए हैं
ए वृक्षों! क्या तुमने उन्हें
कहीं देखा है
ओ तुलसी ! तुम कितनी कोमल हो
प्रेम में सराबोर हो
तुमसे तो वो प्रेम करते हैं
जरूर तुम्हें पता होगा
क्या तुमने हमारे
चितचोर को देखा है
ए अनार ! तेरी दंतपंक्ति तो
खूब निकल रही है
लगा है तुमने जरूर
उन्हें देखा होगा
ए केला ! तुम्हारे नरम नरम
पत्तों पर ही तो
मोहन भोजन करते थे
जरूर तुम्हें उनका पता होगा
हे अशोक के वृक्ष ! तुम ही
अपने नाम को सार्थक करो
हम सब का शोक हरो
और हमारे प्यारे का पता बतला दो
या तो उनका पता बतला दो
नहीं तो अपना नाम बदल दो
हे चन्दन ! तुम्हें तो कान्हा
अपने अंगों पर लगाते हैं
तुम्हारे बिन ना रह पाते हैं
जरूर तुमने उन्हें देखा होगा
हे मालती , जूही , चमेली के फूलों
तुम्हारी मुस्काती मुख माधुरी बतलाती है
जरूर उन्होंने तुम्हारा स्पर्श किया है
ज़रा उनका पता तो बतलाओ
हे पृथ्वी ! तुम्हारे भार हरण को तो
मनहर प्यारे अवतरित हुए हैं
तुमसा बडभागी कौन होगा
जरूर तुम्हें उनका पता होगा
अरी लताओं ! कैसे तुमने
वृक्षों को आलिंगनबद्ध किया है
ये पुलक ये रोमांच जो तुम्हें हुआ है
जरूर हमारे प्यारे के नखों का
तुम्हें स्पर्श हुआ है
यूँ गोपियाँ मतवाली हो
प्रलाप करते करते
भगवद्स्वरूपरूप हो गयीं
और कृष्ण रूप ही बन गयीं
उनकी लीलाओं का अनुकरण करने लगीं



एक गोपी पूतना बन गयी
दूसरी कृष्ण
पूतना बनी गोपी ने
कृष्ण बनी गोपी को
अपने ऊपर डाल लिया
और पूतना मर गयी
पूतना मर गयी का आलाप किया
कोई गोपी शकटासुर
तो गोपी तृणाव्रत बन गयी
और प्रभु की दिव्य लीलाएं करने लगी
कोई गोपी बांसुरी  बजाने लगी
बाकी गोपियाँ उसकी प्रशंसा करने लगीं
कोई गोपी गोवर्धन धारण का अनुकरण करने लगी
और अपनी ओढनी तान कर
ब्रजवासियों की रक्षा करने लगी
कोई गोपी कालिय नाग
तो कोई गोपी कृष्ण बन
उसके ऊपर नृत्य करने लगी
कोई गोपी यशोदा
तो कोई कृष्ण बनी
और प्रभु की ऊखल लीला का
अनुसरण करने लगीं
जब लीला करते करते भी
कृष्ण का ना पता चला
तब चलते चलते एक जगह
कृष्ण चरण चिन्ह  दिखा
अवश्य ये उन्ही के चरण चिन्ह हैं
देखो ध्वजा  , कमल , बज्र
और अंकुश
जो आदि चिन्ह स्पष्ट दीखते हैं
थोडा आगे बढ़ने पर
स्त्री के चरण चिन्ह साथ दिखे
अब गोपियाँ व्याकुल हो
बतियाने लगीं
कौन बडभागिनी है जो
मोहन के मन को भायी है
किस देवी देवता की तपस्या
से उन्हें रिझायी है
जरूर उनकी प्यारी
आराधिका के चरण चिन्ह  हैं
जिसकी रज वो स्वयं
मस्तक पर धारण करते हैं
वो सखी जरूर श्यामा प्यारी है
जिनके संग मोहन प्रेमालाप करते हैं
और हम वियोगिनी सी बन
वन वन भटकती फिरती हैं
यूँ विरह वेदना में  बतियाती गोपियाँ
आगे बढती जाती हैं
कुछ दूर जाने पर
चरण चिन्ह ना नज़र आते हैं
तब गोपियों के ह्रदय में बड़ा क्षोभ हुआ
जरूर श्यामसुंदर ने अपनी प्रेयसी
कोमलांगी  राधा को कंधे पर चढ़ा लिया होगा
देखो यहाँ की बालू
कितना नीचे धंस गयी है
मालूम होता है किसी ने
कोई भारी वस्तु उठाई हो
ये देखो यहाँ फूल बिखरे पड़े हैं
और सुन्दर पत्तों का बिछौना बना है
साथ में ये जडाऊ शीशा भी पड़ा है
जरूर मनहरण प्यारे ने यहाँ बैठ
राधा का श्रृंगार किया है
उनकी वेणी में फूल लगाया है
और राधा ने शीशे में
प्यारे जू को निहारा है
तभी शीशा यहाँ पड़ा है
ये देख गोपियों का ह्रदय
विरह में विदीर्ण हुआ
मगर परीक्षित प्रभु तो आत्माराम हैं
संतुष्ट व् पूर्ण हैं
जब उनमे दूसरा कोई है ही नहीं
तब काम की कल्पना कैसी
ये तो ब्रह्म अपनी
परछाईं से खेल रहा था
शुकदेव जी ने बतलाया

क्रमश:…………

4 टिप्‍पणियां:

  1. कृष्ण प्रेम में रंगीं हैं वंदना...जी

    तभी तो लिख लेतीं हैं इतना.

    अभी तो इन्हें लिखना है कितना
    गहरा गहन कृष्ण प्रेम है जितना

    हार्दिक आभार जी.

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