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शनिवार, 24 नवंबर 2012

क्या करते हो तुम ऐसों का ?


देखो प्रभु
सुना है तुमने 
दीनों को है तारा
बडे बडे पापियों 
भी है उबारा
जो तुम्हारे पास आया
तुमने उसका हाथ है थामा
और जिसने तुम्हें ध्याया
उसके तो तुम ॠणी बन गये
जन्म जन्मान्तरों के लिये
तुम खुद कहते हो
फिर चाहे गोपियाँ हों या राधा
तुम उनके प्रेमॠण से 
कभी उॠण नही हो सकते
ये तुमने ही कहा है
मगर मेरे जैसी का क्या करते हो

देखो मै तो नही जानती कोई
पूजन, अर्चन, वन्दन
मनन, संकीर्तन
ना ही कोई 
व्रत , उपवास , नियम करम करती
ना दान  पुण्य मे विश्वास रखती
ना दीनों पर दया करती
क्यूँकि खुद से दीन हीन किसी को ना गिनती
तुम्हारे बताये किसी मार्ग पर नहीं चलती
ना सुमिरन होता
ना माला जपती
ना तुम्हें पाने की लालसा रखती
ना तुम्हे बुरा भला कहती
ना ही गुण है कोई मुझमें
और अवगुणों की तो खान हूँ
बेशक अत्याचार नही करती
मगर तुम्हें भी तो नही भजती
ना मीरा बनती ना राधा
ना शबरी सी बेर खिलाती
ना विदुरानी से प्रेम पगे केले खिलाती
ना बलि सा तुम्हें बांधने 
का प्रयत्न करती
ना भाव विभोर होकर
नृत्य करती
ना पीर इतनी ऊँची करती
जो तुझसे ट्करा जाये
ना ही वन वन भटकती
ना कोई तपस्या करती
ना पाँव मे छाले पड्ते
ना जोगन बनती
और गली गली भटकती
ना तुम्हें बुलाती
ना तुम्हारे पास आती
ना तुम्हारा कहा कुछ सुनती
ना ही तुम्हारा कहा मानती
अपनी ही मन मर्ज़ी करती
बताओ तो ज़रा मोहन प्यारे
ऐसों के साथ तुम क्या करते हो?

क्या मिले हैं तुम्हें
मुझे जैसे भी कोई
जो तुमसे कोई 
आस नही रखते
और ना ही तुम्हें भजते 
क्या करते हो तुम ऐसों का
क्योंकि सुना है
जो जैसे भी तुम्हारे पास आया
चाहे प्रेम से
चाहे मैत्री से
चाहे शत्रुता से
चाहे किसी भी भाव से
चाहे तुम्हें सखा बनाया
चाहे पति या पिता
चाहे बालक या माँ
तुमने सबका उद्धार किया
शत्रु भाव रखने वाले को भी
तुमने तार दिया
अपना परम धाम दिया
मगर मै तो ना तुम्हारे 
पास आती हूँ
ना तुमसे कुछ चाहती हूँ
तो बताओ ना मोहन
मुझ जैसों का तुम क्या करते हो?

क्या मुझ जैसों को भी
वो ही गति देते हो
या दे सकते हो
और खुद को सबका 
हितैषी सुह्रद सिद्ध कर सकते हो
वैसे सुना तो नहीं
ना कहीं पढा
कि तुमने बिना कारण 
किसी को तार दिया हो
और मेरी जैसी
अकर्मण्य तुम्हें 
दूसरी नही मिलेगी
जो तुम्हारी सत्ता को ही
चुनौती देती है

हाँ ---आज कहती हूँ 
नही कर सकती
मैं तुम्हारा श्रृंगार
ना है मेरे पास 
आंसुओं की धार
नही कर सकती
अनुनय विनय
क्या फिर भी कर सकते हो
तुम मुझे भवसागर पार
मोहन हो इस प्रश्न का जवाब
तो जरूर देना
मुझे इंतज़ार रहेगा
क्योंकि 
बिना कारण के कार्य नही होता
और मैने ना कोई 
तुम्हारे अनुसार कार्य किया
हो यदि ये चुनौती स्वीकार
तो सिर्फ़ एक बार
तुम जवाब देने जरूर आना
क्योंकि
कोई परीक्षा देने का
मेरा कोई इरादा नहीं है
ना ही तुमसे कोई
वादा लिया है
बस आज तुम्हें ये भी
चैलेंज दिया है
ये भाव यूँ ही नही 
उजागर हुआ है
कोई तो इसका कारण हुआ है
शायद
तभी आज तुम्हारे चमन पर
बिजलियों का पहरा हुआ है
बच सको तो बच जाना …………

9 टिप्‍पणियां:

  1. भक्त को पूर्ण अधिकार है प्रभु से सवाल पूछने का...सब कुछ वही करते हैं तो जवाब भी उनसे ही माँगा जाएगा|

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  2. क्या बात है .... आज भगवान को ही चैलेंज ...बढ़िया

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  3. आपकी कुछ इसी प्रकार की रचना पहले भी पढ़ी है शायद ..! तब ठीक से कुछ लिख नहीं पाये थे..शायद वक़्त की कमी के कारण !
    वैसे बड़ा ही रोचक है आपका चैलेंज !:) न कुछ देना न ही माँगना.....-इससे बढ़िया और क्या बात होगी ! फिर तो लगता है... प्रभु आपके भीतर आप ही बनकर विराजे हुए हैं...~इससे बड़ी उपलब्धि और क्या होगी ? आप तो धन्य हो गयीं... :-)
    आपको नमन !
    ~सादर

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  4. बहुत सुंदर मन के भाव ...
    प्रभावित करती रचना .

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  5. @anitajiअरे ऐसा न कहिये नमन तो सिर्फ़ उसी को करिये जो कहने सुनने वाला है वो ही है हम तो मूढ जीव हैं जैसे भाव उठते हैं वैसे ही प्रस्तुत कर देते हैं बस इतना जानते हैं कि हमारी कोई सामर्थ्य नही जो कुछ है बस वो ही है वो ही कहने वाला वो ही सुनने वाला

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आप सब के सहयोग और मार्गदर्शन की चाहत है।