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बुधवार, 27 फ़रवरी 2013

अब इसको कहूँ गज़ल या दिल के उदगार


अब इसको कहूँ गज़ल या दिल के उदगार
कान्हा कान्हा रट रही सांसो की हर तार

मुरली वारो सांवरो बैठो मन के द्वार
मै बैरन बैठी रही करके बंद किवार

श्रद्धा पूजा अर्चना सब भावों के विस्तार
पूर्ण होते एक मे जो मिल जाते सरकार

एक बूँद एक घट एक ही आकार प्रकार
दृष्टि बदलने पर ही व्यापता ये संसार

मधुर मिलन की आस पर जीवन गयो गुज़र
कब आवेंगे श्यामधनी मिटे ना मन की पीर

श्याम रंग की झांई परे श्यामल तन मन होय
मेरी मन की भांवरों मे श्याम श्याम ही होय

15 टिप्‍पणियां:

  1. शाश्वत प्रेम और मिलन की सुंदर रचना-----बहुत सुंदर
    बधाई

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  2. बहुत सुन्दर!
    दिल के उदगार ही तो ग़ज़ल होती है!

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  3. बढ़िया पोस्ट | कल २८/०२/२०१३ को आपकी यह पोस्ट http://bulletinofblog.blogspot.in पर लिंक की गयी हैं | आपके सुझावों का स्वागत है | धन्यवाद!

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  4. कुछ अलग सी पोस्ट अच्छी लगी ......

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  5. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,सदर आभार.

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  6. शाश्वत प्रेम तो यही है ... मुरली वाले का इंतज़ार या उससे मनुहार ...
    बहुत ही सुन्दर प्रेममयी रचना ...

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  7. PREM KA SAKSHATKAR KARTI RACHNA...AAPKI KAVITAYEN BAHUT HI SARTHK RACHNAYEN HOTI HAIN...

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  8. प्रेम को यूँ ही साँवरे का आधार मिलता रहे..

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