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बुधवार, 6 मार्च 2013

फिर कहो कैसे कहूँ मैं रीता ही वापस आया

जैसा घट मेरा रीता वैसा ही तुम्हारा पाया
कभी कर प्रलाप कभी कर आत्मालाप
सुख दुख की सीमा पर ही आत्मसुख मैने पाया
तुम्हारी शरण आकर ही अविच्छिन्न सुख मैने पाया
फिर कहो कैसे कहूँ मैं रीता ही वापस आया


हे जगदाधार , घट घटवासी ,अविनाशी

ये जीवन था निराधार , आधार मैने पाया
जो छोड सारे द्वंदों को तेरी शरण मैं आया
कर नमन तुझको , जीवन सार मैने पाया
फिर कहो कैसे कहूँ मैं रीता ही वापस आया


अपूर्ण था अपूर्ण ही रहता जो ना तुमको ध्याता

तुमने अपना वरद हस्त रख सम्पूर्ण मुझे बनाया
जो कभी कहीं भरमाया तुमने ही रास्ता दिखलाया
अपनी शरण लेकर तुमने मुझे निर्भय बनाया
फिर कहो कैसे कहूँ मैं रीता ही वापस आया

14 टिप्‍पणियां:

  1. भगवान् की शरण में पहुँच कर भला कौन रीता रह सकता है .... सुन्दर प्रस्तुति

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  2. बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको

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  3. बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति,सादर आभार.

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  4. वंदना जी ! मेरे मन में कुछ ऐसे ही बादल उमड़ घुमड़ रहे थे परन्तु निकलने का रास्ता नहीं मिलरहा था ,आपने मनोहारी शब्दों में उसे सजा दिया. दिल को तसल्ली मिली, इस सोच में मैं अकेला नहीं.- बस इतना -मैं "रीता" नहीं

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  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    --
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल गुरूवार (07-03-2013) के “कम्प्यूटर आज बीमार हो गया” (चर्चा मंच-1176) पर भी होगी!
    सूचनार्थ.. सादर!

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  6. बहुत खूब आपके भावो का एक दम सटीक आकलन करती रचना
    आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
    तुम मुझ पर ऐतबार करो ।
    पृथिवी (कौन सुनेगा मेरा दर्द ) ?

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