सुना है जब तुम्हारा अवतरण हुआ था धरा पर
ॠतुएँ अनुकूल हो गयी थीं
चहूँ ओर उल्लासमय वातावरण छा गया था
हर ह्रदय परमानन्द मे मगन हुआ था
मानो तुमने उनके ही आँगन मे जन्म लिया हो
मगर आज सोचती हूँ राम
कैसे होगा तुम्हारा अवतरण धरा पर
जहाँ नर पिशाचों का डेरा लगा है
कहीं ना कोई महफ़ूज़ रहा है
नारी की अस्मिता तार तार हुयी है
सिर्फ़ और सिर्फ़ खौफ़ का साया तांडव कर रहा है
कोई बहन बेटी ना महफ़ूज़ रही है
घनघोर अंधियारा छाया हुआ है
मानसिकता पर कालिख पुती हुयी है
बस वासना और हैवानियत का नंगा नाच हो रहा है
फिर चाहे आम जनता उसमें झुलस रही है
कभी बम विस्फ़ोट की आड में
तो कहीं सडकों पर रक्षक ही भक्षक बन नोंच रहे हैं
अत्याचार ही अत्याचार हो रहे हैं
हे राम ! क्या ले सकोगे जन्म इन हालात में ?
हे राम ! क्या कर सकोगे स्थापित फिर से मर्यादायें जीवन में ?
हे राम ! ये दिन में छायी काली अँधियारी है
क्या मिटा सकोगे इसका नामोनिशान फिर से जन्म लेकर
या फिर तुम भी अब यहाँ आने से हिचकते हो
जहाँ मर्यादायें , भरोसे और सम्मान पर तुषारापात होता हो
हे राम ! आज जरूरत है तुम्हारी
मगर मैं सोच में हूँ तुम्हें तो आदत है ॠतुओं के अनुकूल होने पर ही आगमन की
क्या इस बार बिना किसी शोर शराबे के ,
बिना तुम्हारे आगमन की पूर्व सूचना के हो सकेगा तुम्हारा अवतरण ?
क्या कर सकोगे तुम ऐसा ………
नर पिशाचों के बीच जन्म लेकर कर सकोगे धनुष की टंकार
और कर सकोगे अपने उदघोष को सार्थक ………
जब जब होये धर्म की हानि
बाढहिं असुर महा अभिमानी
तब तब प्रगट भये प्रभु राम
पतित पावन सीता राम
या
यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत
अभ्युत्थानंधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम
या
फिर बस हम मनाते रहें
प्रतीक स्वरूप तुम्हारा जन्म राम नवमी को
चाहे अन्दर बेबसी, विवशता का एक दावानल सुलग रहा हो
आज के रावणों से त्रस्त होकर
या तुम खुश हो इन हालातों को देखकर
प्रतीक स्वरूप राम नवमी मनाये जाने को देखकर
इसलिये नहीं होता अब तुम्हारा अवतरण धरा पर
हे राम ! आज रामनवमी पर
तुमसे ये प्रश्न तुम्हारे जीव पूछ रहे हैं
अगर दे सको जवाब तो जरूर देना ………हम इंतज़ार में हैं
hume apne ander ke ram ko hee jagana hoga.
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