ग्रह , नक्षत्र , तारे
सौम्य शांत होने लगे
दिशायें स्वच्छ प्रसन्न होने लगीं
तारे आकाश में जगमगाने लगे
घर घर मंत्राचार होने लगे
हवानाग्नी स्वयं प्रज्ज्वलित
होने लगी
मुनियों के चित्त प्रसन्न होने लगे
रात्रि में सरोवरों में
कमल खिलने लगे
शीतल मंद सुगंध वायु बहने लगी
देवता दुन्दुभी बजाने लगे
गन्धर्व ,किन्नर मधुर स्वर से गाने लगे
अप्सराएं नृत्य करने लगीं
जल भरे मेघ वृष्टि करने लगे
चारों तरफ प्रकृति में
हर्षोल्लास मनने लगे
भाद्रपद का महीना
अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र
अर्ध रात्रि में जग नियंता
जगदीश्वर प्रभु ने
स्वयं को प्रगट किया
अंधियारी कुटिया में
उजियारा हो गया
वासुदेव देवकी कर जोड़
प्रभु की स्तुति करने लगे
स्तुति में अपनी व्यथा कहने लगे
तब प्रभु ने समझाया
जैसा मैं कहूँ
अब तुम वैसा ही करना
मुझे तुम नंदगाँव में
नंदबाबा के घर छोड़ आना
वहाँ मेरी माया ने जन्म लिया होगा
उसे यहाँ उठा लाना
मेरे भक्तों ने बहुत दुःख पाया है
अब कंस का अंत निकट आया है
ताले सारे खुल जायेंगे
रास्ते सारे तुम्हें मिल जायेंगे
जैसे पहला कदम उठाओगे
सब पहरेदार सो जायेंगे
किसी को कुछ भी
पता ना चलेगा
और अपना स्वरुप
पूर्ववत तुम पा जाओगे
इतना कह भगवान ने
बालक रूप धारण किया
और वसुदेव ने सूप में
भगवान को रख लिया
जैसे ही पहला कदम बढाया है
हथकड़ी बेड़ियाँ सारी खुल गयीं
ताले सारे टूट गए
दरवाज़े सारे खुल गए
बाहर बरखा रानी
अपना रूप दिखाने लगी
घटाटोप अंधियारा छाया है
घनघोर अँधेरे में
यमुना भी ऊपर चढ़कर
आने लगी
ठाकुर के चरण स्पर्श
करने को अकुलाने लगी
शेषनाग ने ऊपर भगवान के
छाँव करी
वसुदेव ठाकुर को बचाने को
हाथ ऊपर करने लगे
और यमुना भी रह रह
उफान पर आने लगी
चरण स्पर्श की लालसा में
हुलसाने लगी
अपने सभी प्रयत्न करने लगी
प्रभु ने सोचा
ये ऐसे नहीं मानेगी
कहीं बाबा ना डूब जायें
सोच प्रभु ने
अपने चरण बढ़ा
यमुना का मनोरथ पूर्ण किया
कल - कल करती
यमुना नीचे उतर गयी
हरि चरण के स्पर्श से
वो तो पावन हो गयी
गोकुल में नन्द द्वार खुला पाया
यशोदा के पास ठाकुर को लिटा
नव जन्मा कन्या को उठा लिया
इधर देवकी बेचैन हो रही थी
तभी वासुदेव जी पहुँच गए
कन्या को ला देवकी को दिया
देते ही किवाड़ और ताले बंद हो गए
हथकड़ी बेड़ियाँ वापस लग गयीं
तभी कन्या रोने लगी
रोना सुन पहरेदार जाग गए
दौड़े गए कंस के पास समाचार सुनाया
आपके शत्रु ने जन्म ले लिया
इतना सुन गिरता पड़ता
नंगी तलवार ले कंस
कैदखाने में पहुँच गया
देवकी के हाथ से
कन्या को छीन लिया
देवकी चिरौरी करने लगी
भैया तुम्हें डर तो आठवें पुत्र से था
मगर ये तो कन्या है
इसने क्या बिगाड़ा है
मगर कंस ने ना एक सुनी
उसे तो नारद जी की वाणी याद थी
जैसे ही कन्या को पटकने लगा
हाथ से वो छिटक गयी
और आसमाँ में पहुँच
दुर्गा का रूप लिया
जिसे देख कंस
थर थर कांप गया
सोचने लगा शायद
इसी के हाथों मेरी मृत्यु होगी
तभी देवी ये बोल पड़ी
हे कंस ! तुझे मारने वाला
और पृथ्वी का उद्धार करने वाला
तो बृज में जन्म ले चुका है
और तेरे पापों का अब घड़ा भर चुका है
इतना कह देवी अंतर्धान हुई
ये सुन कंस लज्जित और चिंतित हुआ
मन में विचार ये करने लगा
मैंने व्यर्थ की इन्हें इतना दुःख दिया
और देवताओं की बात का विश्वास किया
देवता तो शुरू से झूठे हैं
सारी बातें अपने
मंत्रिमंडल को बतला दीं
तब सब ये बोल उठे
राजन आप ना चिंतित हों
अगर उसने जन्म लिया है
तो अभी तो वो
मारने योग्य नहीं होगा
बालक रूप में इतनी शक्ति कहाँ
आज्ञा हो तो इन दिनों जन्मे
सभी बच्चों को मार डालें
उसके साथ वो भी ख़त्म हो जायेगा
आपका कांटा सदा के लिए मिट जायेगा
ये उपाय कंस के मन को भा गया
और उसका पाप का घड़ा
और भी भरने लगा
इधर यशोदा जी की जब आँख खुली
चंद्रमुखी बालक को देख प्रसन्न हुईं
आनंद मंगल मन में छा गया
नन्द बाबा को समाचार पहुंचवा दिया
घर घर मंगल गान होने लगे
सब नन्द भवन की तरफ़ दौडने लगे
सबके ह्रदय प्रफुल्लित होने लगे
प्रेमानंद ब्रह्मानंद छा गया
गोप गोपियों में
हर्षोल्लास छा गया
गोपियाँ नृत्य करने लगीं
मंगल वाद्य बजने लगे
मंत्रोच्चार होने लगे
नन्द बाबा दान करने लगे
नौ लाख गाय दान कर दी हैं
पर फिर भी ना कोई गिनती है
बाबा हीरे मोती लुटाने लगे
सर्वस्व अपना न्योछावर करने लगे
जिसने पाया उसने भी ना
अपने पास रखा
दान को आगे वितरित किया
आनन्द ऐसा छाया था
ज्यों नन्दलाला हर घर मे आया था
साँवली सुरतिया मोहिनी मूरतिया
हर मन को भाने लगी
हर सखी कहने लगी
लाला मेरे घर आये हैं
किसी को भी ना ऐसा भान हुआ
लाला का जन्म नन्द बाबा घर हुआ
हर किसी को अहसास हुआ
ये मेरा है मेरे घर जन्मा है
देवी देवता ब्राह्मण वेश धर आने लगे
प्रभु दर्शन पा आनंदमग्न होने लगे
बाल ब्रह्म के दर्शन कर
जन्म सफ़ल करने लगे
रिद्धि सिद्धियाँ अठखेलियाँ करने लगीं
ब्रजक्षेत्र लक्ष्मी का क्रीड़ास्थल बन गया
रोज आनंदोत्सव होने लगा