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शुक्रवार, 29 अगस्त 2014

प्रधानमंत्री जनधन खाता योजना कितनी सार्थक

प्रधानमंत्री जनधन खाता योजना कितनी सार्थक रहेगी ये तो वक्त ही बतायेगा मगर आज तो एक एक आदमी तीन तीन बैंकों में खाते खुलवा रहा है उसका लाभ पाने को जो यही सिद्ध कर रहा है ………आप मौका तो दीजिये ………अब तक औरों ने लूटा अब हम खुद लूट लेंगे ………जाने क्या सोच कर ये योजना लागू की गयी है जिससे बात करो यही कहता है ये फ़्लॉप होगी यहाँ तो हर डाल पर चोर बैठे हैं ………कहीं ये सिर्फ़ अपनी छवि सुधारने भर की कवायद तो नहीं ? कहीं इस तरह जनता के दिल में जगह बनाने की कोशिश तो नहीं फिर चाहे इस योजना का लाभ भी सबको मिले न मिले मगर जगह जगह फ़ैले सांप्रदायिक तनाव , अव्यवस्था , बलात्कार जैसी घटनायें आदि जो कुछ देश में हो रहा है उससे ध्यान भटकाने का प्रयास है …………फ़िलहाल तो इस योजना का कोई औचित्य नज़र नहीं आ रहा जब तक सही ढंग से लागू न की जाती ………आनन फ़ानन खाते खोलो बस एक फ़रमान सुना दिया गया मगर ये नही सोचा गया क्या वास्तव में इसका फ़ायदा जिस तबके के लिए प्रयोग किया गया है उसे होगा भी या नहीं ? …………

सही या गलत तो भविष्य ही बतायेगा मगर एक व्यक्ति यदि तीन तीन जगह खाते खुलवायेगा तो सोचिए नुकसान किसका होगा ? क्या देश का और टैक्स देने वालों का नुकसान नही होगा इससे ? ये तो अभी एक ही उदाहरण पता चला है ऐसे न जाने कितने और नये घोटाले इस माध्यम से शुरु हो जायेंगे ………क्योंकि इसका फ़ायदा उठाने के लिए शरारती तत्व भी सक्रिय हो जाएंगे तब कैसे पता चल पायेगा कि किसने कितने खाते खुलवाए ? क्या एक सिर्फ़ आधार के माध्यम से ये सब संभव हो पायेगा ? …………इंतज़ार में हैं अब तो हम देखें अच्छे दिन और क्या क्या गुल खिलाते हैं । 

रविवार, 17 अगस्त 2014

भए प्रगट कृपाला --- जन्मदिन मुबारक हो कान्हा




जब से वैकुंठनाथ गर्भ में आये
परमानन्द छाने लगा था
बिन ऋतुओं के भी 
वृक्षों पर फल फूल आने लगे
ग्रह , नक्षत्र , तारे 
सौम्य शांत होने लगे
दिशायें स्वच्छ प्रसन्न होने लगीं
तारे आकाश में जगमगाने लगे
घर घर मंत्राचार होने लगे
हवानाग्नी स्वयं प्रज्ज्वलित
होने लगी 
मुनियों के चित्त प्रसन्न होने लगे
रात्रि में सरोवरों में 
कमल खिलने लगे
शीतल मंद सुगंध वायु बहने लगी
देवता दुन्दुभी बजाने लगे
गन्धर्व ,किन्नर मधुर स्वर से गाने लगे
अप्सराएं नृत्य करने लगीं
जल भरे मेघ वृष्टि करने लगे
चारों तरफ प्रकृति में
हर्षोल्लास मनने लगे

भाद्रपद का महीना
अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र 
अर्ध रात्रि में जग नियंता
जगदीश्वर प्रभु ने 
स्वयं को प्रगट किया
अंधियारी कुटिया में 
उजियारा हो गया
वासुदेव देवकी कर जोड़ 
प्रभु की स्तुति करने लगे
स्तुति में अपनी व्यथा कहने लगे
तब प्रभु ने समझाया 
जैसा मैं कहूँ 
अब तुम वैसा ही करना
मुझे तुम नंदगाँव में
नंदबाबा के घर छोड़ आना
वहाँ मेरी माया ने जन्म लिया होगा 
उसे यहाँ उठा लाना 
मेरे भक्तों ने बहुत दुःख पाया है
अब कंस का अंत निकट आया है
ताले सारे खुल जायेंगे
रास्ते सारे तुम्हें मिल जायेंगे
जैसे पहला कदम उठाओगे
सब पहरेदार सो जायेंगे
किसी को कुछ भी 
पता ना चलेगा
और अपना स्वरुप
पूर्ववत तुम पा जाओगे

इतना कह भगवान ने 
बालक रूप धारण किया 
और वसुदेव ने सूप में
भगवान को रख लिया
जैसे ही पहला कदम बढाया है
हथकड़ी बेड़ियाँ सारी खुल गयीं
ताले सारे टूट गए
दरवाज़े सारे खुल गए
बाहर बरखा रानी 
अपना रूप दिखाने लगी
घटाटोप अंधियारा छाया है
घनघोर अँधेरे में 
यमुना भी ऊपर चढ़कर
आने लगी 
ठाकुर के चरण स्पर्श 
करने को अकुलाने लगी
शेषनाग ने ऊपर भगवान के 
छाँव करी
वसुदेव ठाकुर को बचाने को
हाथ ऊपर करने लगे
और यमुना भी रह रह 
उफान पर आने लगी
चरण स्पर्श की लालसा में
हुलसाने लगी
अपने सभी प्रयत्न करने लगी
प्रभु ने सोचा 
ये ऐसे नहीं मानेगी
कहीं बाबा ना डूब जायें
सोच प्रभु ने 
अपने चरण बढ़ा 
यमुना का मनोरथ पूर्ण किया
कल - कल करती 
यमुना नीचे उतर गयी 
हरि चरण के स्पर्श से
वो तो पावन हो गयी
गोकुल में नन्द द्वार खुला पाया
यशोदा के पास ठाकुर को लिटा
नव जन्मा कन्या को उठा लिया
इधर देवकी बेचैन हो रही थी
तभी वासुदेव जी पहुँच गए
कन्या को ला देवकी को दिया
देते ही किवाड़ और ताले बंद हो गए
हथकड़ी बेड़ियाँ वापस लग गयीं
तभी कन्या रोने लगी
रोना सुन पहरेदार जाग गए
दौड़े गए कंस के पास समाचार सुनाया
आपके शत्रु ने जन्म ले लिया
इतना सुन गिरता पड़ता 
नंगी तलवार ले कंस
कैदखाने में पहुँच गया
देवकी के हाथ से 
कन्या को छीन लिया
देवकी चिरौरी करने लगी
भैया तुम्हें डर तो आठवें पुत्र से था
मगर ये तो कन्या है
इसने क्या बिगाड़ा है
मगर कंस ने ना एक सुनी
उसे तो नारद जी की वाणी याद थी 
जैसे ही कन्या को पटकने लगा
हाथ से वो छिटक गयी
और आसमाँ में पहुँच
दुर्गा का रूप लिया
जिसे देख कंस 
थर थर कांप गया
सोचने लगा शायद
इसी के हाथों मेरी मृत्यु होगी
तभी देवी ये बोल पड़ी
हे कंस ! तुझे मारने वाला
और पृथ्वी का उद्धार करने वाला 
तो बृज में जन्म ले चुका है
और तेरे पापों का अब घड़ा भर चुका है 
इतना कह देवी अंतर्धान हुई
ये सुन कंस लज्जित और चिंतित हुआ
मन में विचार ये करने लगा
मैंने व्यर्थ की इन्हें इतना दुःख दिया
और देवताओं की बात का विश्वास किया
देवता तो शुरू से झूठे हैं 
सारी बातें अपने 
मंत्रिमंडल को बतला दीं
तब सब ये बोल उठे
राजन आप ना चिंतित हों
अगर उसने जन्म लिया है
तो अभी तो वो 
मारने योग्य नहीं होगा
बालक रूप में इतनी शक्ति कहाँ
आज्ञा हो तो इन दिनों जन्मे
सभी बच्चों को मार डालें
उसके साथ वो भी ख़त्म हो जायेगा
आपका कांटा सदा के लिए मिट जायेगा
ये उपाय कंस के मन को भा गया
और उसका पाप का घड़ा 
और भी भरने लगा

इधर यशोदा जी की जब आँख खुली
चंद्रमुखी बालक को देख प्रसन्न हुईं
आनंद मंगल मन में छा गया
नन्द बाबा को समाचार पहुंचवा दिया
घर घर मंगल गान होने लगे 
सब नन्द भवन की तरफ़ दौडने लगे
सबके ह्रदय प्रफुल्लित होने लगे
प्रेमानंद ब्रह्मानंद छा गया 
गोप गोपियों में 
हर्षोल्लास छा गया
गोपियाँ नृत्य करने लगीं
मंगल वाद्य बजने लगे
मंत्रोच्चार होने लगे
नन्द बाबा दान करने लगे
नौ लाख गाय दान कर दी हैं 
पर फिर भी ना कोई गिनती है
बाबा हीरे मोती लुटाने लगे 
सर्वस्व अपना न्योछावर करने लगे
जिसने पाया उसने भी ना
अपने पास रखा
दान को आगे वितरित किया
आनन्द ऐसा छाया था
ज्यों नन्दलाला हर घर मे आया था
साँवली सुरतिया मोहिनी मूरतिया 
हर मन को भाने लगी
हर सखी कहने लगी
लाला मेरे घर आये हैं
किसी को भी ना ऐसा भान हुआ
लाला का जन्म नन्द बाबा घर हुआ 
हर किसी को अहसास हुआ
ये मेरा है मेरे घर जन्मा है
देवी देवता ब्राह्मण वेश धर आने लगे
प्रभु दर्शन पा आनंदमग्न होने लगे
बाल ब्रह्म के दर्शन कर 
जन्म सफ़ल करने लगे
रिद्धि सिद्धियाँ अठखेलियाँ करने लगीं
ब्रजक्षेत्र लक्ष्मी का क्रीड़ास्थल बन गया
रोज आनंदोत्सव होने लगा 

शुक्रवार, 8 अगस्त 2014

कुछ नहीं है

निर्मम छाया जीवन 
एकांत अंधकूप जीवन 
राहु केतु का ग्रास बना 
मन का तोरण 
हास परिहास उपहास का 
पात्र बना ये जीवन 
न काल से परे 
न काल के साथ 
निकला कोई औचित्य 
होने न होने की सूक्तियों पर 
न चला कोई  वक्तव्य 
तुम जहाँ थे 
जहाँ हो 
जहाँ रहोगे 
भेद विभेद की परिसीमा में 
प्रवेश क्रिया हुई वर्ज्य 
बस खुद का क्षरण हुआ त्याज्य 
तुम , मैं ,  वो 
पहले और बाद में 
कुछ नहीं है 
कुछ नहीं है 
कुछ नहीं है 
बस अग्नि लील रही है जीवन 

एक संग्राम का साक्षी भी अंततोगत्वा अदृश्य 
फिर भोजन का स्वाद कौन व्यक्त करे !!!

सोमवार, 4 अगस्त 2014

ज्ञान चक्षु खुल गए

बातों के बतोले खिलाने वाले बहुत मिलेंगे आपको । मीठी मीठी बातें करके अपना ज्ञान बघार कर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने वाले ज़िन्दगी भर हर मोड पर मिल ही जाते हैं और इंसान आ भी जाता है उनकी बातों में , उनके ज्ञान की चकाचौंध में कि शायद इनसे ज्यादा जानकार तो कोई होगा ही नहीं और हो जाता है उनके चरणों में नतमस्तक । आहा ! मिल गया तारणहार , अब जरूर मेरी नैया पार हो जाएगी और आस की उम्मीद बाँध देखता रहता है अपने देवता के मुख की तरफ़ , कब कृपा दृष्टि हो और मेरा उद्धार । 

वैसे भी ज़िन्दगी में इंसान उम्मीदों के सहारे ही तो जीता है और जब उसकी उम्मीदों को दिशा दिखाने वाला , पार लगाने वाला कोई मिल जाता है तो हो जाता है हवा के घोडे पर सवार । तुम्हीं हो माता पिता तुम्हीं हो वाला व्यवहार । हर पल एक ही ख्याल बस अब बना काम , अब मिलेगा मुझे मेरी प्रतिभा का फ़ल , अब हो जायेगी हर समस्या हल , अब दूर हो जायेंगी कठियाइयाँ , बस इन ख्वाबों में खोया जान ही नहीं पाता उनके व्यक्तित्व का दूसरा रुख कि बस बातें बनाने तक ही होते हैं उनके वक्तव्य । 

कहाँ इतना वक्त है किसी के पास जो दूसरों की समस्या को हल करे आखिर उन्हें भी अपनी ज़िन्दगी जीनी होती है , उन्हें भी पचासों काम होते हैं मगर उनका भक्त बेचारा तो अपने ही स्वप्न से बाहर नहीं आना चाहता तो कैसे सोचेगा कि भगवान को और भी काम हैं उसके काम के सिवा । तो तात्पर्य सिर्फ़ इतना है कि जीवन में इंसान दूसरे की बातों से इतना प्रभावित हो जाता है कि आशाओं की डोर उससे बाँध लेता है बिना सोचे समझे जबकि उसे भी ये समझना जरूरी है कि हर बातों में निपुण जरूरी नहीं कि तुम्हारे लिये भी कुछ करेगा क्योंकि उसकी भी घर गृहस्थी होती है उसके जीवन में भी समस्यायें होती हैं इसलिए कभी किसी से उम्मीद न करो बस एक साधारण जीवन जैसे जीते आए जीते जाओ हाँ इस बीच कोई खुद को स्वंय प्रस्तुत कर दे तुम्हारी समस्या के निराकरण के लिए तो ये तुम्हारा सौभाग्य है मगर इसके बाद भी ये नहीं हमेशा उसे परेशान करो , रोज अपनी समस्या ले उसे परेशान करो …हम सभी जीवन में हमेशा समस्याओं से ग्रस्त रहते हैं और बातें बनाने वालों से भी रोज मिलते हैं इसलिए जरूरी है अपनी समस्याओं का खुद सामना करना और खुद ही निराकरण करना …वरना तो दूसरे पर ही दोष मढते रह जाओगे कि उसने कहा था मेरा काम कर देगा या करवा देगा और उसके भरोसे मेरी तो लुटिया ही डूब गयी । तो मोरल ऑफ़ द स्टोरी इज़...बचपन में पढी थी न कहानी " अपना काम स्वंय करो " :p

शनिवार, 2 अगस्त 2014

आपसी संबंध और पैसा

आपसी संबंध और पैसा , रिश्ते और पैसा , दोस्ती और पैसा ……सोच का विषय बन जाते हैं आज के संदर्भ में । 

जब आप किसी अपने को जरूरत में पैसा दे देते हो तो उसके तारणहार बन जाते हो और यदि कहीं गलती से तुमने कुछ समय बाद वो पैसा माँग लिया तो सबसे बडे दुश्मन आखिर कैसे अपने हुए जो थोडी मदद भी नही की गयी तकाज़े पर तकाज़े कर दिए मगर वो ये नहीं सोचेगा कि वक्त पर तो तुम्हारे काम आया , आज उसे जरूरत होगी तभी तो माँगा होगा मगर नहीं कैसे बर्दाश्त हो जाए।उस वक्त बेचारा देने वाला सोच में पड जाता है कि आखिर उसने वक्त पर सहायता करके क्या कोई गुनाह कर दिया और ऐसे में जब यदि कोई दूसरा अपना फिर वो रिश्तेदार हो या मित्र वो माँगे तो उस बेचारे के पास मना करने के सिवा दूसरा चारा नहीं होता आखिर कब तक दानवीर बने , आखिर कब तक सब जानबूझकर खुद को ठगे बेशक पाँचों उँगलियाँ बराबर नहीं होतीं मगर फिर भी आज के ज़माने में जब एक बार किसी का विश्वास उठ जाता है तो जल्दी से कहीं जमता नहीं क्योंकि न जाने कितने अपनों की जरूरतों के विरुद्ध जाकर उसने सहायता की होगी या उधार दिया होगा मगर जब वापस माँगने पर खुद ही दोषी सिद्ध कर दिया जा रहा हो तो इसके सिवा उसके पास कोई चारा नहीं बचता और जब वो ये रास्ता अख्तियार करता है तो भी अन्दर ही अन्दर कुछ उसे कचोटता है कि उसने मना क्यों किया मगर जिसे मना कर दिया वो जाने कैसे कैसे विचार उसके प्रति बना लेता है और कई बार तो संबंध ही तोड लेता है । 

बेशक आज पैसा इंसान की सबसे बडी जरूरत है मगर देने वाले के साथ लेने वाले को भी चाहिए कि वक्त पर काम आने वाले की भावनाओं को समझे और उसके माँगने से पहले ही यदि पैसा वापस कर दे तो शायद रिश्तों में , अपनेपन में , दोस्ती में कभी कडवाहट ना आए , बल्कि एक मजबूत रिश्ता बने जिसकी साझीदारी लम्बे समय तक रहे । आज ये समझने की बहुत जरूरत है कि जितना जरूरी पैसा है उतने ही जरूरी रिश्ते भी होते हैं जिन्हें सहेजे रखने के लिए निर्णायक कदम जरूरी होते हैं । जिस दिन इंसान की सोच बदलेगी और वो अपने स्वार्थ से ऊपर उठेगा उस दिन से एक बार फिर रिश्तों और मित्रता पर विश्वास अपनी गहरी जडें जमा लेगा वरना इंसान जीवन के सफ़र में कब अकेला होता जाएगा उसे पता भी नही चलेगा इसलिये वो वक्त आये उससे पहले जरूरी है दोनों में सामंजस्य बिठाना ।