बातों के बतोले खिलाने वाले बहुत मिलेंगे आपको । मीठी मीठी बातें करके अपना ज्ञान बघार कर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने वाले ज़िन्दगी भर हर मोड पर मिल ही जाते हैं और इंसान आ भी जाता है उनकी बातों में , उनके ज्ञान की चकाचौंध में कि शायद इनसे ज्यादा जानकार तो कोई होगा ही नहीं और हो जाता है उनके चरणों में नतमस्तक । आहा ! मिल गया तारणहार , अब जरूर मेरी नैया पार हो जाएगी और आस की उम्मीद बाँध देखता रहता है अपने देवता के मुख की तरफ़ , कब कृपा दृष्टि हो और मेरा उद्धार ।
वैसे भी ज़िन्दगी में इंसान उम्मीदों के सहारे ही तो जीता है और जब उसकी उम्मीदों को दिशा दिखाने वाला , पार लगाने वाला कोई मिल जाता है तो हो जाता है हवा के घोडे पर सवार । तुम्हीं हो माता पिता तुम्हीं हो वाला व्यवहार । हर पल एक ही ख्याल बस अब बना काम , अब मिलेगा मुझे मेरी प्रतिभा का फ़ल , अब हो जायेगी हर समस्या हल , अब दूर हो जायेंगी कठियाइयाँ , बस इन ख्वाबों में खोया जान ही नहीं पाता उनके व्यक्तित्व का दूसरा रुख कि बस बातें बनाने तक ही होते हैं उनके वक्तव्य ।
कहाँ इतना वक्त है किसी के पास जो दूसरों की समस्या को हल करे आखिर उन्हें भी अपनी ज़िन्दगी जीनी होती है , उन्हें भी पचासों काम होते हैं मगर उनका भक्त बेचारा तो अपने ही स्वप्न से बाहर नहीं आना चाहता तो कैसे सोचेगा कि भगवान को और भी काम हैं उसके काम के सिवा । तो तात्पर्य सिर्फ़ इतना है कि जीवन में इंसान दूसरे की बातों से इतना प्रभावित हो जाता है कि आशाओं की डोर उससे बाँध लेता है बिना सोचे समझे जबकि उसे भी ये समझना जरूरी है कि हर बातों में निपुण जरूरी नहीं कि तुम्हारे लिये भी कुछ करेगा क्योंकि उसकी भी घर गृहस्थी होती है उसके जीवन में भी समस्यायें होती हैं इसलिए कभी किसी से उम्मीद न करो बस एक साधारण जीवन जैसे जीते आए जीते जाओ हाँ इस बीच कोई खुद को स्वंय प्रस्तुत कर दे तुम्हारी समस्या के निराकरण के लिए तो ये तुम्हारा सौभाग्य है मगर इसके बाद भी ये नहीं हमेशा उसे परेशान करो , रोज अपनी समस्या ले उसे परेशान करो …हम सभी जीवन में हमेशा समस्याओं से ग्रस्त रहते हैं और बातें बनाने वालों से भी रोज मिलते हैं इसलिए जरूरी है अपनी समस्याओं का खुद सामना करना और खुद ही निराकरण करना …वरना तो दूसरे पर ही दोष मढते रह जाओगे कि उसने कहा था मेरा काम कर देगा या करवा देगा और उसके भरोसे मेरी तो लुटिया ही डूब गयी । तो मोरल ऑफ़ द स्टोरी इज़...बचपन में पढी थी न कहानी " अपना काम स्वंय करो " :p
वैसे भी ज़िन्दगी में इंसान उम्मीदों के सहारे ही तो जीता है और जब उसकी उम्मीदों को दिशा दिखाने वाला , पार लगाने वाला कोई मिल जाता है तो हो जाता है हवा के घोडे पर सवार । तुम्हीं हो माता पिता तुम्हीं हो वाला व्यवहार । हर पल एक ही ख्याल बस अब बना काम , अब मिलेगा मुझे मेरी प्रतिभा का फ़ल , अब हो जायेगी हर समस्या हल , अब दूर हो जायेंगी कठियाइयाँ , बस इन ख्वाबों में खोया जान ही नहीं पाता उनके व्यक्तित्व का दूसरा रुख कि बस बातें बनाने तक ही होते हैं उनके वक्तव्य ।
कहाँ इतना वक्त है किसी के पास जो दूसरों की समस्या को हल करे आखिर उन्हें भी अपनी ज़िन्दगी जीनी होती है , उन्हें भी पचासों काम होते हैं मगर उनका भक्त बेचारा तो अपने ही स्वप्न से बाहर नहीं आना चाहता तो कैसे सोचेगा कि भगवान को और भी काम हैं उसके काम के सिवा । तो तात्पर्य सिर्फ़ इतना है कि जीवन में इंसान दूसरे की बातों से इतना प्रभावित हो जाता है कि आशाओं की डोर उससे बाँध लेता है बिना सोचे समझे जबकि उसे भी ये समझना जरूरी है कि हर बातों में निपुण जरूरी नहीं कि तुम्हारे लिये भी कुछ करेगा क्योंकि उसकी भी घर गृहस्थी होती है उसके जीवन में भी समस्यायें होती हैं इसलिए कभी किसी से उम्मीद न करो बस एक साधारण जीवन जैसे जीते आए जीते जाओ हाँ इस बीच कोई खुद को स्वंय प्रस्तुत कर दे तुम्हारी समस्या के निराकरण के लिए तो ये तुम्हारा सौभाग्य है मगर इसके बाद भी ये नहीं हमेशा उसे परेशान करो , रोज अपनी समस्या ले उसे परेशान करो …हम सभी जीवन में हमेशा समस्याओं से ग्रस्त रहते हैं और बातें बनाने वालों से भी रोज मिलते हैं इसलिए जरूरी है अपनी समस्याओं का खुद सामना करना और खुद ही निराकरण करना …वरना तो दूसरे पर ही दोष मढते रह जाओगे कि उसने कहा था मेरा काम कर देगा या करवा देगा और उसके भरोसे मेरी तो लुटिया ही डूब गयी । तो मोरल ऑफ़ द स्टोरी इज़...बचपन में पढी थी न कहानी " अपना काम स्वंय करो " :p
अपनी परेशानियों का हल अपने ही पास होता भी है
जवाब देंहटाएंअच्छे विचार हैं नवाकार
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब!
जवाब देंहटाएं