न कोई गाँव न कोई ठाँव
फिर भी मुसाफ़िर
चलना है तेरी नियति
अंजान दिशा अंजान मंज़िल
फिर भी मुसाफ़िर
पहुँचना है तेरी नियति
देह के देग से आत्मा के पुलिन तक ही है बस तेरी प्रकृति
फिर भी मुसाफ़िर
चलना है तेरी नियति
अंजान दिशा अंजान मंज़िल
फिर भी मुसाफ़िर
पहुँचना है तेरी नियति
देह के देग से आत्मा के पुलिन तक ही है बस तेरी प्रकृति
चरवेति! चरवेति!
जवाब देंहटाएंजीवन चलने का नाम
जवाब देंहटाएंचलते रहो सुबह शाम..
बहुत बढ़िया
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
आमँत्रित
Bahut sunder rachna !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
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