मैं और तू कहूँ
या तू ही तू कहूँ
या मैं ही मैं कहूँ
भाव तो दो का ही बोध कराता है
जब न मैं हो न तू
बस प्रेम ही प्रेम हो
बोध से परे
आनंद ही आनंद हो
वही तो परमानन्द है
वही तो प्रेम है
वही तो निराकारता है
है न यही स्थिति तुम्हें पाने की , तुम में समाने की .........कृष्णा ! मोहना ! माधवा !
या तू ही तू कहूँ
या मैं ही मैं कहूँ
भाव तो दो का ही बोध कराता है
जब न मैं हो न तू
बस प्रेम ही प्रेम हो
बोध से परे
आनंद ही आनंद हो
वही तो परमानन्द है
वही तो प्रेम है
वही तो निराकारता है
है न यही स्थिति तुम्हें पाने की , तुम में समाने की .........कृष्णा ! मोहना ! माधवा !
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