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सोमवार, 10 अगस्त 2015

है न यही स्थिति

मैं और तू कहूँ
या तू ही तू कहूँ
या मैं ही मैं कहूँ 
भाव तो दो का ही बोध कराता है 

जब न मैं हो न तू 
बस प्रेम ही प्रेम हो 
बोध से परे 
आनंद ही आनंद हो 
वही तो परमानन्द है 
वही तो प्रेम है 
वही तो निराकारता है 

है न यही स्थिति तुम्हें पाने की , तुम में समाने की .........कृष्णा ! मोहना ! माधवा !

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