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शनिवार, 2 जनवरी 2016

मौन का विलोम

अब कोई प्रतीक्षा नहीं
कोई उमंग कोई उल्लास नहीं
जाने किस परछत्ती में दुबक गयी है
ललक मेरी
कि
सुबहो शाम की गर्द से अटा पड़ा है
ख्याल तेरा

इतना बेनूर हो जाना ज़िन्दगी का
कि
कभी कभी शक होता है खुद के जिंदा होने पर

शायद
मेरे मौन का विलोम थे
तुम ... सिर्फ तुम ... माधव !!!

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (03-01-2016) को "बेईमानों के नाम नया साल" (चर्चा अंक-2210) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. मौन में भी मुखरित हो जाना ... बहुत सुन्दर भाव .

    जवाब देंहटाएं

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