जाने किस खजुराहो की तलाश में
भटकती है मन की मीन
कि एक घूँट की प्यास से लडती है प्रतिदिन
आओ कि घूँघट उठा दो
जलवा दिखा दो
अभिसार को फागुन भी है और वसंत भी
द्वैत से अद्वैत के सफ़र में
प्रीत की रागिनी हो तो
ओ नीलकमल !
मन मीरा और तन राधा हो जाता है
अलौकिकता मिलन में भी और जुदाई में भी
कहो कि कौन से घट से भरोगे घूँट ....साँवरे पिया !!!
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (19-02-2017) को
जवाब देंहटाएं"उजड़े चमन को सजा लीजिए" (चर्चा अंक-2595)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक