पूछना तो नहीं चाहिए
लेकिन पूछ रही हूँ
क्या जरूरी है हर युग में
तुम्हारे जन्म से पहले
नन्हों का संहार ...कंसों द्वारा
कहो तो ओ कृष्ण
जबकि मनाते हैं हम तुम्हारा जन्म प्रतीक स्वरुप
सोचती हूँ
यदि सच में तुम्हारा जन्म हो फिर से
तो जाने कितना बड़ा संहार हो
सिहर उठती है आत्मा
क्या तुम नहीं सिहरते
क्या तुम्हारा दिल नहीं दुखता
क्या जरूरी है हर बार ये आक्षेप अपने सिर पर लेना
कभी तो विचार लो इस पर भी
कि
सृष्टि में तुम्हारे आगमन पर संहार के बीज जो बोये हैं
वो कैसे खिलखिला रहे हैं
मगर जाने कितने घरों में मातम पसरा है
क्या जरूरी है चली आ रही परंपरा का ही वाहक बनना?
जन्मोत्सव कैसे स्वीकार सकते हो तुम बच्चों की चिता पर
अबूझ रहस्य है
गर संभव हो तो सुलझा देना जरा
सुना है
तुम करुणा के सागर हो
द्रवित हो उठते हो किसी की जरा सी पीड़ा पर
तो इस बार क्या हुआ?
इस बार करो कुछ ऐसा
कि
सार्थक हो जाए तुम्हारा जन्मोत्सव
तुम्हारी भृकुटी के विलास से भला क्या संभव नहीं ?
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©वन्दना गुप्ता vandana gupta
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (15-08-2017) को "भारत को करता हूँ शत्-शत् नमन" चर्चामंच 2697 पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
स्वतन्त्रता दिवस और श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, श्री कृष्ण, गीता और व्हाट्सअप “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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