मेरी सीमितताएँ
सीमित संसाधन
सीमित सोच
उठने नहीं देते तल से मुझे
फिर कैसे एक नया आसमां उगाऊँ
होंगे औरों के लिए तुम
चितचोर भँवरे
माखनचोर नंदकिशोर
लड्डूगोपाल
और न जाने क्या क्या
मगर
इक नशा सा तारी हो गया है
जब से तुम्हारा संग किया
मेरे लिए तो मेरी 'वासना' भी तुम हो
और 'व्यसन' भी तुम ..... मोहन
लागी छूटे ना ..........
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (06-010-2017) को
जवाब देंहटाएं"भक्तों के अधिकार में" (चर्चा अंक 2749)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'