पेज

गुरुवार, 21 जून 2018

जब से तुम बिछड़े हो प्रियतम

मरघट का सन्नाटा पसरा है 
मन प्रेत सा भटका है 
जब से तुम बिछड़े हो प्रियतम 
हर मोड़ पे इक हादसा गुजरा है 

मैं तू वह में ही बस जीवन उलझा है 
ये कैसा मौन का दौर गुजरा है 
चुभती हैं किरचें जिसकी 
वो दर्पण चूर चूर हो बिखरा है 

जब से तुम बिछड़े हो प्रियतम 
हर मोड़ पे इक हादसा गुजरा है 


प्रेमाश्रु से न श्रृंगार किया है 
मन यादों के भंवर में डूबा है 
आवारा हो गयी रूह जिसकी 
उसका रोम रोम सिसका है 

जब से तुम बिछुड़े हो प्रियतम 
हर मोड़ पे इक हादसा गुजरा है 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

आप सब के सहयोग और मार्गदर्शन की चाहत है।