मरघट का सन्नाटा पसरा है
मन प्रेत सा भटका है
जब से तुम बिछड़े हो प्रियतम
हर मोड़ पे इक हादसा गुजरा है
मैं तू वह में ही बस जीवन उलझा है
ये कैसा मौन का दौर गुजरा है
चुभती हैं किरचें जिसकी
वो दर्पण चूर चूर हो बिखरा है
जब से तुम बिछड़े हो प्रियतम
हर मोड़ पे इक हादसा गुजरा है
प्रेमाश्रु से न श्रृंगार किया है
मन यादों के भंवर में डूबा है
आवारा हो गयी रूह जिसकी
उसका रोम रोम सिसका है
जब से तुम बिछुड़े हो प्रियतम
हर मोड़ पे इक हादसा गुजरा है
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आप सब के सहयोग और मार्गदर्शन की चाहत है।