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सोमवार, 3 सितंबर 2018

मन का मधुबन सूना है ...तुम बिन...कान्हा

वो कौन सा गीत गाऊँ
वो कौन सा राग सुनाऊँ
वो कौन सा सुर लगाऊँ
जो तेरी प्रिय हो जाऊँ

मन का मधुबन सूना है ...तुम बिन...कान्हा

बाँसुरी की तान टूट गयी
जब से प्रीत तेरी रूठ गयी
इक बावरी गम में डूब गयी
अब कैसे तुम्हें मनाऊँ

मन का मधुबन सूना है ...तुम बिन...कान्हा

अब जैसी हूँ वैसी स्वीकारो
भावों को न यूँ बिसारो
अवगुण दूर करो हमारो
जो तेरी अलख जगाऊँ

मन का मधुबन सूना है ...तुम बिन...कान्हा





1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (05-09-2018) को "शिक्षक दिवस, ज्ञान की अमावस" (चर्चा अंक-3085) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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