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बुधवार, 19 जून 2019

मैं भाग रही हूँ तुमसे दूर

मैं भाग रही हूँ तुमसे दूर
अब तुम मुझे पकड़ो
रोक सको तो रोक लो
क्योंकि
छोड़कर जाने पर सिर्फ तुम्हारा ही तो कॉपीराइट नहीं

गर पकड़ सकोगे
फिर संभाल सकोगे
और खुद को चेता सकोगे
कि
हर आईने में दरार डालना ठीक नहीं होता
शायद तभी
तुम अपने अस्तित्व से वाकिफ करा पाओ
और स्वयं को स्थापित
क्योंकि
मन मंदिर को मैंने अब धोकर पोंछकर सुखा दिया है

एक ही देवता था
एक ही तस्वीर
जिसे तुमने किया चूर चूर
अब
नए सिरे से मनकों पर फिर रही हैं ऊँगलियाँ
जिसमे तुम्हारे ही अस्तित्व पर है प्रश्नचिन्ह
तो क्या इस बार कर सकोगे प्रमाणित खुद को
और रोक सकोगे अपने एक प्रेमी को बर्बाद होने से

संकट के बादल छाये हैं तुम पर इस बार
और
शुष्क रेत के टीलों से आच्छादित है मेरे मन का आँगन
जिसमे नकार की ध्वनि हो रही है गुंजायमान
कहो इस बार कैसे करोगे नकार को स्वीकार में प्रतिध्वनित ?

अस्तित्व की स्वीकार्यता ही मानक है ज़िन्दगी की
फिर वो स्त्री हो या ईश्वर

7 टिप्‍पणियां:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 19/06/2019 की बुलेटिन, " तजुर्बा - ए - ज़िन्दगी - ब्लॉग बुलेटिन“ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. कई बार आता है वह समय जब घबराकर उस के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह लगाने का मन होता है ..
    मन की उथलपुथल को भलीभांति उतारा शब्दों में!

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (21-06-2019) को "योग-साधना का करो, दिन-प्रतिदिन अभ्यास" (चर्चा अंक- 3373) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जमीनी काम से ही समस्या का समाधान : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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  5. वाह , हमेशा की तरह अच्छी कविता ... धारदार

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आप सब के सहयोग और मार्गदर्शन की चाहत है।