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शनिवार, 12 अक्टूबर 2019

इक दिन चले जाना रे

कोठी कुठले भरे छोड़ इक दिन चले जाना रे
मनवा काहे ढूँढे असार जगत में ठिकाना रे

चुप की बेडी पहन ले प्यारे
हंसी ख़ुशी सब झेल ले प्यारे
तेरी मेरी कर काहे भरता द्वेष खजाना रे

कोठी कुठले भरे छोड़ इक दिन चले जाना रे ........

मोह ममता को कर दे किनारे
कुछ खुद के लिए जी ले प्यारे
फिर तो बाँध बोरिया बिस्तर कूच कर जाना रे

कोठी कुठले भरे छोड़ इक दिन चले जाना रे ........

ज्यों रात और दिन के लगे हैं डेरे
त्यों जन्म मरण के लगे हैं फेरे
फिर काहे रोना और काहे का घबराना रे



कोठी कुठले भरे छोड़ इक दिन चले जाना रे........


इस तरह
वीतरागी हुआ जाता है मन ये
जाने किस गाँव ठौर पाता है ये

2 टिप्‍पणियां:

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