ज़िन्दगी के अस्तबल का
बेलगाम घोडा
तमन्नाओं, आरजूओं ,
हसरतों के रथ पर
रथारूढ़ हो
पवनवेग से
दौड़ता जाता है
कहीं कोई अंकुश नही
बेपरवाह, लापरवाह
वक़्त के सीने पर
पाँव रख
आसमान को
छूने की
चाहत में
बिन पंख उड़ा जाता है
मगर एक दिन
पंख कटे पंछी की
मानिन्द
यथार्थ के धरातल पर
जब फडफडा कर
गिरता है
उस पल
हर आरजू, हर ख्वाहिश
धूल धूसरित हो जाती है
और वक़्त के हाथों
घायल ये जर्जर मन
अपने अस्तित्व बोध
को प्राप्त हो
अन्तस्थ में विलीन
हो जाता है