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बुधवार, 27 जनवरी 2010

बेलगाम घोडा

ज़िन्दगी के अस्तबल का
बेलगाम घोडा
तमन्नाओं, आरजूओं ,
हसरतों के रथ पर
रथारूढ़ हो
पवनवेग से
दौड़ता जाता है
कहीं कोई अंकुश नही
बेपरवाह, लापरवाह
वक़्त के सीने पर
पाँव रख
आसमान को
छूने की
चाहत में
बिन पंख उड़ा जाता है
मगर एक दिन
पंख कटे पंछी की
मानिन्द
यथार्थ के धरातल पर
जब फडफडा कर
गिरता है
उस पल
हर आरजू, हर ख्वाहिश
धूल धूसरित हो जाती है
और वक़्त के हाथों
घायल ये जर्जर मन
अपने अस्तित्व बोध
को प्राप्त हो
अन्तस्थ में विलीन
हो जाता है

25 टिप्‍पणियां:

  1. बिल्कुल सटीक!
    जो इस घोड़े को लगाम लगा लेता है,
    वो सँवर जाता है!
    जो आवारा छोड़ देता है
    वो...........!

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  2. ओह्ह कटु सत्य बयाँ कर दिया आपने तो...यथार्थपरक पंक्तियाँ

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  3. सपने और यथार्थ का अच्छा चित्रण ,यही जिंदगी है

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  4. जीवन की सच्‍चाई बयान की है आपने .. बहुत सटीक लिखा है!!

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  5. सच में सच्चाई बयाँ करती सुंदर कविता.....

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  6. बेहतरीन प्रस्तुति वंदना जी ...बधाई.

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  7. बेहद सटीक, सार्थक और शिक्षाप्रद - "बेलगाम घोडा". "अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत" ना कहना पड़े इसलिए समय रहते इस पर "लगाम" लगाना अतिआवश्यक है.

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  8. शायद इसलिए ग्यानि कहते हैं ....... मन को बांधो ........नियम में रहना सीखो नही तो ये बेलगाम घोड़े ही उड़ान का अंत ऐसे ही होगा ............. बहुत अच्छा संदेश छिपा है इस रचना में ..........

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  9. वंदना जी लाजवाब रचना...बधाई...
    नीरज

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  10. yes jeevan isi ka naam he, belagaam ghoda kah le yaa kuchh..is par lagaam to mruty bhi nahi lagaa saki he...
    vese
    utkrasht rachnaa he.

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  11. इस शानदार रचना के लिए बधाई स्वीकारें.

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  12. आपका पोस्ट पढ़कर तो आनन्द आ गया!
    इसे चर्चा मंच में भी स्थान मिला है!
    http://charchamanch.blogspot.com/2010/01/blog-post_28.html

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  13. मन की आरज़ू और तमन्नाओं को बहुत खूबसूरती दे उकेरा है...खूबसूरत रचना..

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  14. वाह क्या मन की घुड़दौड़ का वर्णन किया है..यही काबू में आ जाए तो संसार का चक्र रुक न जाए..कुछ हद तक काबू में आए तो जीवन खुशहाल न हो जाए......बढ़िया कविता...

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