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सोमवार, 1 फ़रवरी 2010

मैं तेरी हो जाऊँ

कान्हा
प्रेम तेरा
वासंतिक हो जाये
ह्रदय- सुमन
मेरा खिल जाये
प्रेम पुष्पित
पल्लवित हो जाये
भक्ति की सरसों
मन में लहराए
पीत रंग
हर अंग समाये
जीव ब्रह्म
धानी हो जाये
द्वि का हर
परदा हट जाये
चूनर मेरी
श्यामल हो जाये
श्याम -श्याम
करते -करते
श्यामल -श्यामल
मैं हो जाऊं
श्याम रस पीते- पीते
मैं भी रसानंद हो जाऊं
श्याम खाऊँ
श्याम पियूँ
श्याम हँसूँ
श्याम रोऊँ
श्याम- श्याम
करते -करते
श्याम ही हो जाऊं
कान्हा मैं
तेरी हो जाऊँ
कान्हा मैं
तेरी हो जाऊँ

17 टिप्‍पणियां:

  1. भक्ति की सरसों
    मन में लहराए
    पीत रंग
    हर अंग समाये
    जीव ब्रह्म
    धानी हो जाये
    द्वि का हर
    वन्दना जी बहुत ही सुन्दर लगी आपकी ये कविता । भक्ति रस मे सराबोर बसंती रचना बधाइ आपको

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  2. अरे वाह ये तो बिलकुल मीरा कि भक्तिभावना से ओट प्रोत गीत है...बहुत सुन्दर...

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  3. इस बावरी के लिए कान्हा तो खुद ही बेचैन होगा ....:)

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  4. वाह, आज तो आप सचमुच में मीरा की डगर पकडे दीखती है ! बहुत खूब वंदना जी !

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  5. "मीरा हो जाऊं"
    बहुत खूब

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  6. कान्हा की भक्ति के प्रति
    समर्पण की भावना को प्रणाम!

    सुन्दर रचना!

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  7. बहुत सुन्दर रचना

    प्रेम का सुन्दर चित्रण ..

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  8. vandana ji
    namaskar
    bahut khoob likha hai.
    sakshat kanha aa gaye hain.

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  9. वाह वन्दना जी! आपकी लेखनी यमकात्मक है और भाषा सौष्ठव बहुत अच्छा है। आपने तो हमें इस वासन्ती बयार में भक्ति, प्यार और समर्पण की त्रिवेणी में ही डुबो दिया। सुन्दर, लाजवाब, बधाई!!!

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  10. भक्ति भावना से ओत-प्रोत यह रचना ....दिल को छू गई....


    नोट: लखनऊ से बाहर होने की वजह से .... काफी दिनों तक नहीं आ पाया ....माफ़ी चाहता हूँ....

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  11. कृष्ण प्रेम में जो भी डूबा है ......... वो आनद सागर में हिलोरें लेता हुवा ही मिल है ........ सुंदर काव्य ....

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  12. wah
    vandna
    aapne kamal ki abhivyakti ki hai
    wakai mera ke baad aisi kavita sudhh prem ki kum hi likhi gayi hai
    prem kavita es kaal ki maang hai
    jab sara sansaar barud ke dher pe baitha apne apne aham mein dooba ek dusre ke astitva tak ko nakarne mein laga hai aapki ye prem kavita aaswast kerti hai ki prem ki punarsthapna hogi ....badhai

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