कान्हा
प्रेम तेरा
वासंतिक हो जाये
ह्रदय- सुमन
मेरा खिल जाये
प्रेम पुष्पित
पल्लवित हो जाये
भक्ति की सरसों
मन में लहराए
पीत रंग
हर अंग समाये
जीव ब्रह्म
धानी हो जाये
द्वि का हर
परदा हट जाये
चूनर मेरी
श्यामल हो जाये
श्याम -श्याम
करते -करते
श्यामल -श्यामल
मैं हो जाऊं
श्याम रस पीते- पीते
मैं भी रसानंद हो जाऊं
श्याम खाऊँ
श्याम पियूँ
श्याम हँसूँ
श्याम रोऊँ
श्याम- श्याम
करते -करते
श्याम ही हो जाऊं
कान्हा मैं
तेरी हो जाऊँ
कान्हा मैं
तेरी हो जाऊँ
भक्ति की सरसों
जवाब देंहटाएंमन में लहराए
पीत रंग
हर अंग समाये
जीव ब्रह्म
धानी हो जाये
द्वि का हर
वन्दना जी बहुत ही सुन्दर लगी आपकी ये कविता । भक्ति रस मे सराबोर बसंती रचना बधाइ आपको
अरे वाह ये तो बिलकुल मीरा कि भक्तिभावना से ओट प्रोत गीत है...बहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंइस बावरी के लिए कान्हा तो खुद ही बेचैन होगा ....:)
जवाब देंहटाएंवाह, आज तो आप सचमुच में मीरा की डगर पकडे दीखती है ! बहुत खूब वंदना जी !
जवाब देंहटाएं"मीरा हो जाऊं"
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
कान्हा की भक्ति के प्रति
जवाब देंहटाएंसमर्पण की भावना को प्रणाम!
सुन्दर रचना!
बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंप्रेम का सुन्दर चित्रण ..
bahut sundar bhaav liye rachna ne man moh liya.
जवाब देंहटाएंआध्यात्मिक अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंvandana ji
जवाब देंहटाएंnamaskar
bahut khoob likha hai.
sakshat kanha aa gaye hain.
bahut badiya bahut aachee ise tarah likte raheye badhai
जवाब देंहटाएंwah wah wah....
जवाब देंहटाएंkya baat hai Vandana JI...
aise he acha likhte rahiye!
वाह वन्दना जी! आपकी लेखनी यमकात्मक है और भाषा सौष्ठव बहुत अच्छा है। आपने तो हमें इस वासन्ती बयार में भक्ति, प्यार और समर्पण की त्रिवेणी में ही डुबो दिया। सुन्दर, लाजवाब, बधाई!!!
जवाब देंहटाएंभक्ति भावना से ओत-प्रोत यह रचना ....दिल को छू गई....
जवाब देंहटाएंनोट: लखनऊ से बाहर होने की वजह से .... काफी दिनों तक नहीं आ पाया ....माफ़ी चाहता हूँ....
कृष्ण प्रेम में जो भी डूबा है ......... वो आनद सागर में हिलोरें लेता हुवा ही मिल है ........ सुंदर काव्य ....
जवाब देंहटाएंkrishna prem mein meera ki tarah leen... bahut sunder rachna !
जवाब देंहटाएंwah
जवाब देंहटाएंvandna
aapne kamal ki abhivyakti ki hai
wakai mera ke baad aisi kavita sudhh prem ki kum hi likhi gayi hai
prem kavita es kaal ki maang hai
jab sara sansaar barud ke dher pe baitha apne apne aham mein dooba ek dusre ke astitva tak ko nakarne mein laga hai aapki ye prem kavita aaswast kerti hai ki prem ki punarsthapna hogi ....badhai