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गुरुवार, 11 फ़रवरी 2010

भाव सुमन

आनन्द ही आनन्द समाया है
सतगुरु तुम्हारे चरणों में
अनमोल वचन अब पाया है
सतगुरु तुम्हारी वाणी में
आनन्द ही आनन्द .......................

मैं कैसे भुला दूँ नेह तेरा
तुमने ही मुझे अपनाया है
दुनिया ने मुझे ठुकराया है
सतगुरु ने ज्ञान जगाया है
आनन्द ही आनन्द ........................

मैं दीन- हीन हूँ अज्ञानी
तुम हो चराचर के स्वामी
मुझे मुझसे आज मिलाया है
वो दिव्य रूप दिखलाया है
आनन्द ही आनन्द ..........................

मैं माया बीच भटकती हूँ
माया के हाथों ठगती हूँ
सतगुरु ने दीप जलाया है
वो आत्मज्ञान जगाया है
आनन्द ही आनन्द . ...........................

12 टिप्‍पणियां:

  1. परमानंद के ज्ञान को बहुत खूबसूरत शब्द दिए हैं....सुन्दर भगवत गीत

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  2. bahut sundar , guru ke prati samarpan ka bhaav liye hue .
    sare prerna stotr bhee guru ki tarah hi margdarshan karte hain |

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  3. मैं दीन- हीन हूँ अज्ञानी
    तुम हो चराचर के स्वामी
    मुझे मुझसे आज मिलाया है
    वो दिव्य रूप दिखलाया है...

    आनद से परमानंद की यात्रा जीवन की सबसे बड़ी पूंजी है ..... बहुत ही अच्छी रचना ......

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  4. बहुत सुन्दर भक्ति भाव से परिपूर्ण गीत है। यही सच्चा सुख है....

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  5. आनन्द ही आनन्द समाया है
    सतगुरु तुम्हारे चरणों में
    अनमोल वचन अब पाया है
    सतगुरु तुम्हारी वाणी में
    आनन्द ही आनन्द .......................


    गुरू के प्रति समर्पण को
    आपने वन्दना में सुन्दर ढंग से पिरोया है!

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  6. Bahut hi sundar hai Shradhha bhav se saji aapki rachana....Badhai!!
    http://kavyamanjusha.blogspot.com/

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  7. मैं माया बीच भटकती हूँ
    माया के हाथों ठगती हूँ
    सतगुरु ने दीप जलाया है
    वो आत्मज्ञान जगाया है
    bhakti se ot prot hai yah rachana...bilkul ek bhajan ka ahsaas liye

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  8. जब अकिंचन आत्मा का होता है सम्मिलन ,,
    दिव्य अनुभूति की छाया में ,,,
    जब होती है समर्पण की उत्कंठा ,,,
    प्रभु चरणों में ,,,
    जब होता है परिवर्तित राग वैराग में ,,,
    अज्ञान ज्ञान में ,,
    ओ सदगुरू समझू तेरी ही क्रपा,,,
    सादर
    प्रवीण पथिक
    9971969084

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