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मंगलवार, 16 फ़रवरी 2010

ऐसा आखिर कब तक?

यूँ लगा दहकता अंगारा सीने पर रख दिया हो किसी ने ---------जैसे ही दीप्ति ने आकाश को देखा । ये क्या हाल हो गया था आकाश का ? वो तो ऐसा ना था । आज ५ बरस बाद जब उसने आकाश को देखा तो ज़िन्दगी के बीते लम्हे सामने आ खड़े हुए ।

दीप्ति ने आकाश को उठाया और अपने साथ अपने घर ले गयी । उसे दवाई देकर सुला दिया और खुद अतीत की गलियों में विचरने लगी । उसे याद है आज भी जब आकाश उसकी ज़िन्दगी में आया था ।
हँसता मुस्कुराता जिंदादिल इंसान था आकाश । हर कोई उसके साथ के लिए तरसता था । हर महफ़िल की जान हुआ करता था । सबसे बड़ी चीज उसकी शख्सियत की ----------उसकी आवाज़ ------जब वो गाता था तो यूँ लगता जैसे सावन की रिमझिम फुहार पड़ रही हों ----------सारा आलम उस पल रुक जाता था । हर कोई मंत्रमुग्ध सा उसकी आवाज़ सुनता और उसी में खो जाता । गाना कब ख़त्म होता किसी को पता ही नही चलता जब तक कि खुद वो इस बात का बोध ना कराता । ऐसे ही एक महफ़िल में दीप्ति की मुलाक़ात आकाश से हुई थी और आकाश की आवाज़ सुनते ही दीप्ति को यूँ लगा जैसे दूर पहाड़ों की वादियों से कोई उसे आवाज़ दे रहा हो , जैसे ना जाने कितने जलतरंग एक साथ बज रहे हों ।आकाश की आवाज़ ने उसका तन मन भिगो दिया था और वो उसकी गहराइयों में डूबती चली गयी। उस दिन दीप्ति आकाश की आवाज़ को अपना दिल दे आई थी ।
दीप्ति एक ऑफिस में कार्यरत साधारण रूप रंग वाली मध्यमवर्गीय लड़की थी । उसकी कोई बहुत ऊँची आकांक्षायें नही थी । बस उसमें आकर्षण था तो सिर्फ एक ---------उसकी आँखें । आँखें क्या थी जैसे ज़िन्दगी वहीँ बसती हो । ऐसी नशीली स्वप्निल आँखें थी कि जो एक बार देख लेता तो भूल नही सकता था । बस सिर्फ यही एक उसके अस्तित्व की सबसे बड़ी पहचान थी बाकी सब उसमें साधारण ही था।
उसके पिता भी नौकरीपेशा इंसान थे और एक भाई और एक बहन की शादी होचुकी थी और वो उनकी तीसरी संतान थी। एक साधारण मध्यमवर्गीय परिवार की साधारण सी लड़की थी इसलिए किसी भी तरह के अरमानो को अपनी ज़िन्दगी में जगह नही देती थी । उसे अपनी सीमा पता थी। मगर जिस दिन से आकाश की आवाज़ सुनी थी , सारी बंदिशें , सारी सीमाएं ना जाने कहाँ लुप्त हो गयी थी। अब तो उसे हर जगह सिर्फ आकाश की आवाज़ सुनने की इच्छा होती और वो चाहती किसी तरह एक बार फिर वो ही आवाज़ सुनने को मिले। एक अजीब सी बेचैनी, एक तड़प ना जाने कब चुपके से दिल में घर कर गयी थी ।
उधर आकाश यूँ तो ना जाने रोज कितनी ही लड़कियों से मिलता था । एक से बढ़कर एक सुन्दर होती मगर जिस दिन से उसने दीप्ति को देखा उसकी आँखों की शोखी में अपना सब कुछ लुटा बैठा था ।दिन का चैन रात की नींद , सब ना जाने कहाँ उड़नछू हो गए थे । ना जाने कौन सा जादू था उन आँखों में कि उसे हर पल अपने आस -पास उन्ही निगाहों की मौजूदगी का अहसास होता। यूँ तो आकाश पेशे से इंजिनियर था । घर में माँ, बाप की इकलौती संतान होने के कारण उनकी आँखों का तारा था । किसी बात की ज़िन्दगी में कोई कमी ना थी। बस कमी थी तो इतनी कि कोई अच्छी सी लड़की जीवनसाथी बन उसकी ज़िन्दगी में आ जाती।
इधर जबसे उसने दीप्ति को देखा था अपना दिल अपना चैन सब उसकी निगाहों पर लुटा बैठा था। ना जाने कैसी कशिश थी उन आँखों में जिनसे वो खुद को आज़ाद नही कर पा रहा था इसलिए एक दिन उसने पता लगाने की कोशिश की कि वो थी कौन? इसके लिए उसने अपने उसी दोस्त को कहा जिसने उसे महफ़िल में बुलाया था । वो पार्टी आकाश के दोस्त समीर ने दी थी इसलिए उसने समीर से दीप्ति के बारे में जानना चाहा तो पता चला कि वो तो समीर की दूर के रिश्ते की बहन है । बस इतना ही काफी था आकाश के लिए। किसी तरह उसने समीर को उससे मिलने के लिए मनाया और फिर एक दिन योजना के मुताबिक वो समीर के साथ दीप्ति के ऑफिस के नीचे पहुँच गया और वहां जब दीप्ति आई तो समीर ने उन दोनों का परिचय करवाया और चला गया क्यूँकि वो जानता था कि आकाश के साथ दीप्ति को छोड़ने में कोई बुराई नही है । आकाश एक समझदार इंसान है वो कोई ऐसी बात नही करेगा जो उसकी सीमा से बाहर हो ।
अब आकाश और दीप्ति आमने -सामने थे । दोनों की चिर- प्रतीक्षित अभिलाषा आज पूर्ण हो गयी थी । दोनों ही एक दूसरे से मिलना चाहते थे मगर आज जुबान साथ छोड़ गयी थी । काफी देर दोनों के बीच यूँ ही मौन पसरा रहा । आकाश तो वैसे भी दीप्ति को देखते ही उसकी आँखों के जादुई आकर्षण में खो गया था । अब उसे अपना होश कहाँ था और दीप्ति वो तो अभी तक इस आश्चर्य से बाहर ही नही आ पा रही थी कि आकाश उसके सामने खड़ा है । उसने तो स्वप्न में भी नही सोचा था कि इस तरह अचानक आकाश से यूँ मुलाक़ात होगी। काफी देर दोनों यूँ ही जडवत से एक दूसरे को देखते रहे। फिर जब काफी देर बाद उन्हें अपनी स्थिति का आभास हुआ तो दोनों साथ- लगे। सबसे पहले आकाश ने बात शुरू की और जैसा कि उसकी आदत थी कभी भी खामोश ना रहना और हँसते हँसाते रहना वो यहाँ भी बदस्तूर जारी था और दीप्ति सिर्फ 'हाँ' 'हूँ' में जवाब देती उसकी हर अदा पर फ़िदा होती जा रही थी। नारी मन की कोमल भावनाएं वो इतनी जल्दी किसी को दिखा भी नहीं सकती थी और ना ही किसी को बता सकती थी। बस इसी प्रकार धीरे -धीरे दोनों का मिलना जारी रहा । एक दूसरे को अच्छी तरह जान चुके थे दोनों और प्रेम का इज़हार भी हो चुका था । बस अब तो सिर्फ शहनाई बजनी बाकी रह गयी थी मगर नियति को तो कुछ और ही मंजूर था।

क्रमशः .......................

10 टिप्‍पणियां:

  1. कहानी बहुत अच्छी है!
    अगली कड़ी की प्रतीक्षा है!

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  2. एक प्रयास अच्छा है। कहानी के अगले भाग का इंतजार रहेगा। कल का दिन आपके लिए विशेष था, लेकिन मैं बधाई नहीं दे पाया, सो आज दे रहा हूँ।

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  3. बहुत बेहतरीन कहानी और शैली भी उतनी ही जबरदस्त शुरू से लेकर अंत तक बांधे रखती है अगली कड़ी का इन्तजार है
    सादर
    प्रवीण पथिक
    9971969084

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  4. कहानी को रोचक मोड़ पर लाकर आपने भी "क्रमश:" लगा दिया !

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  5. Agli kadee ka intezaar rahega! Badi kashish hai aapke lekhanme!

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  6. बहुत अच्छी लगी कहानी अगली कडी का इन्तज़ार रहेगा। शुभकामनायें

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  7. बहुत अच्छी लगी यह कहानी..... अब आगे का इंतज़ार हैं...

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  8. bahut sachhi or sundar kahani....ye aaj ke jeevan ki sachhai hai....na jane kitne hi masoom log ..maa baap . ki jid .samaj ki jhoothi bediyo/bandhan..riti-riwaj..jaat paant ki kuprathao ki bali chad jate hain....or unke prem ka aisa dukhad ant ho jata hai....
    bahut hi sundar or sajeev chitran hai....agli kadi ka besabri se intjaar rahega....
    bahut bahut badhayee....

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  9. bahut sachhi or sundar kahani....ye aaj ke jeevan ki sachhai hai....na jane kitne hi masoom log ..maa baap . ki jid .samaj ki jhoothi bediyo/bandhan..riti-riwaj..jaat paant ki kuprathao ki bali chad jate hain....or unke prem ka aisa dukhad ant ho jata hai....
    bahut hi sundar or sajeev chitran hai....
    bahut bahut badhayee...

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