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शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010

गीत- गोविन्द

गीत गोविन्द के गाती फिरूँ
मैं तो तन- मन में गोविन्द झुलाती फिरूँ 
गली- गली गोविन्द गाती फिरूँ
मैं तो तेरे ही दर्शन पाती फिरूँ
अँखियों में गोविन्द सजाती फिरूँ
हिय की जलन मिटाती फिरूँ
जन जन में गोविन्द निहारती फिरूँ
कभी गोपी कभी कृष्ण बनती फिरूँ
मैं तो गोविन्द ही गोविन्द गाती फिरूँ
कभी गोविन्द को गोपाल बनाती फिरूँ
कभी राधा को गोविन्द बनाती फिरूँ
कभी खुद में गोविन्द समाती फिरूँ
कभी गोविन्द में खुद को समाती फिरूँ
मैं तो गोविन्द ही गोविन्द गाती फिरूँ
मैं तो गोविन्द से नेहा लगाती फिरूँ
कभी गोविन्द को अपना बनाती फिरूँ
कभी गोविन्द की धुन पर नाचती फिरूँ
मैं तो मुरली अधरों पर सजाती फिरूँ
कभी मुरली सी गली- गली बजती फिरूँ
मैं तो गोविन्द ही गोविन्द गाती फिरूं
कभी बावरिया बन नैना बहाती फिरूँ
कभी गुजरिया बन राह बुहारती फिरूँ
कभी गोविन्द की राधा प्यारी बनूँ
कभी गोविन्द की मीरा दीवानी बनूँ
मैं तो गोविन्द ही गोविन्द गाती फिरूँ
मैं तो तन- मन में गोविन्द झुलाती फिरूँ

10 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर भक्ति रस से परिपूर्ण रचना है...जहाँ तक मैं समझता हूँ इस गीत को "जोत से जोत जलाते चलो...." की धुन मे गाया जाए तो यह गीत बहुत गहरे तक उतर जाएगा....धन्यवाद।

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  2. बहुत खूब वंदना जी ,,, बहुत ही सुन्दर भक्ति रस से भरी हुई ह्रदय की सुन्दर भावनाओं को शब्द देती हुई एक बढ़िया रचना ,,,, ,,,
    मेरी तरफ से दो लायने
    द्वेत के भाव से विकल हूँ ,,,
    मिलन को विहल हूँ ,,,
    हूँ लालायित ,,,
    सम्मिलन के लिए,,,
    तुझे निज में वसा रखा है ,,,
    अब निजमे मुझको वसा ले,,
    ओ जगत नियन्ता इधर भी देख
    सादर
    प्रवीण पथिक
    9971969084

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  3. भक्ति - रस में डूबा बेहद खूबसूरत भक्ति गीत...

    अच्छी प्रस्तुति

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  4. लोग भक्तिरस में भीग जाते हैं,
    मगर हम तो भकित् की इस गंगा में नहा गये है!
    बहुत सुन्दर भजन!
    बधाई!

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  5. o mare pyare
    mujeh bhi apne radha banao
    bahut khoob bahut khoob
    vandna jee tussi cha gaye

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