कब मिले , कैसे मिले याद नहीं मगर आज भी ऐसा लगता है जैसे युगों से एक दूसरे को जानते हैं ............तुम , तुम्हारी बातें और तुम्हारी नज़र का जादू , सब मिलकर किसी को भी मदहोश करने के लिए काफी होता था और फिर मैं तो उम्र के उस नाज़ुक दौर से गुजर रही थी जहाँ ऐसा होना स्वाभाविक था.तुम्हारा मुस्कुराना जैसे कहीं किसी उपवन में एक साथ हजारों फूल खिलखिला गए हों और बहार मुस्कुरा रही हो.............ये ज़िन्दगी के हसीन पल कोई कैसे भूल सकता है ............ये तो यादों में लहू की तरह पैबस्त हो जाते हैं .
काश ! ज़िन्दगी इन हसीन वादियों में ही गुजर जाती .कभी वक्त की धूप ना इस पर आती मगर वक्त कब माना है उसे तो आना है और हर फूल को कभी ना कभी तो कुम्हलाना है ............ये वक्त की लकीरें कब तुम्हारे चेहरे पर उतर आई और तुमसे तुम्हारी जिंदादिली और मुस्कुराहट सब चुरा ले गयी ...............और तुम भी दाल रोटी की जुगाड़ में अपने जीवन को होम करते गए ..........हर ख़ुशी की आहुति देते गए और मैं साए की तरह तुम्हारे अस्तित्व पर पड़ते इन सायों की राजदार बनती गयी .
मैं तुम्हें तुमसे ज्यादा जानती हूँ ..........तुम्हारी आँखों में छुपे खामोश तूफ़ान को महसूसती हूँ और उसे अपने वजूद में समेटना चाहती हूँ मगर तुम उसमे किसी को आने ही नहीं देते .........ये कैसी तुम्हारी ख़ामोशी की दीवार है जिसके पार तुम ना तो खुद देखना चाहते हो और ना मुझे आने की इजाज़त देना चाहते हो ..........जो तुम लफ़्ज़ों में बयां नहीं कर पाते उन सभी अहसासों को मैं जी लेती हूँ ............बस यही चाह है कि तुम एक बार मौन के सागर से बाहर तो निकलो , अपने अहसासों को बांटो तो सही ..........अपनी चाहत को एक बार बताओ तो सही चाहे मुझे पता है सब मगर एक बार तुम्हारे मूँह से सुनना चाहती हूँ शायद इसलिए ताकि तब तुम्हारे अन्दर बैठे तुम बाहर आ सको ..........मौन को शब्द मिल सकें और सफ़र कुछ आसान हो सके .
जब ये शब्द राकेश ने पढ़े तो फूट- फूट कर रो पड़ा और डायरी के पन्ने में छुपे दर्द को महसूस करने लगा ..............आज सुरभि की डायरी के ये पन्ने उसे अन्दर तक भिगो गए ............कितनी अच्छी तरह सुरभि उसे जानती थी .........हर पल कैसे उसकी सुख दुःख की भागी बनी रही और उसे हर पल जीवन से लड़ते देखती रही ............आज जब उम्र की आखिरी दहलीज पर वो खड़ा था और ज़िन्दगी का हर फ़र्ज़ पूरा कर चुका था तब भी उसे लग रहा था जैसे आज उसने अपना सब कुछ लुटा दिया हो ...........आज वो फिर सुरभि के साथ उन ही पलों को जीना चाहता था ...........जो वो चाहती थी ...........उस मुस्कराहट को फिर पाना चाहता था जिसकी सुरभि दीवानी थी और कुछ पल का साथ चाहता था सिर्फ सुरभि के लिए , सुरभि के साथ मगर वक्त के क्रूर हाथों ने वो सुख भी छीन लिया था और वो अकेला उसकी यादों और डायरी के पन्नों में कभी खुद को तो कभी सुरभि को ढूँढ रहा था अपनी बूढी , बेबस ,लाचार आँखों से ..........
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शनिवार, 23 अक्टूबर 2010
सोमवार, 11 अक्टूबर 2010
परसों आने का वादा करके ................
परसों आने का
वादा करके
मोहे भूल गए
साँवरिया
बातों का भुलावा
दे गए मोहन
करके कितनी
चिरोरियाँ
मोहे भूल गए
साँवरिया
छवि दिखला के
अपना बनाकर
भुलावा दे गए
प्रीतम
दिखा के अपनी
सुरतिया
मोहे भूल गए
साँवरिया
प्रेम का दीप
जलाकर
विरह वेदना को
बढाकर
हाथ छोड़ गए
मोहनिया
मोहे भूल गए
साँवरिया
बरसों बीते
श्याम बिन रीते
ना जानी साँझ
और दुपहरिया
मोहे भूल गए
साँवरिया
वादा करके
मोहे भूल गए
साँवरिया
बातों का भुलावा
दे गए मोहन
करके कितनी
चिरोरियाँ
मोहे भूल गए
साँवरिया
छवि दिखला के
अपना बनाकर
भुलावा दे गए
प्रीतम
दिखा के अपनी
सुरतिया
मोहे भूल गए
साँवरिया
प्रेम का दीप
जलाकर
विरह वेदना को
बढाकर
हाथ छोड़ गए
मोहनिया
मोहे भूल गए
साँवरिया
बरसों बीते
श्याम बिन रीते
ना जानी साँझ
और दुपहरिया
मोहे भूल गए
साँवरिया
शुक्रवार, 1 अक्टूबर 2010
पिया रूठ गए
सखी री
पिया रूठ गए
मो से सांवरिया
रूठ गए
मोहे अकेला
छोड़ गए
विरह अगन का
दावानल जला गए
अब का से करूँ
शिकायत
का से कहूँ मैं
जिया की बात
कोऊ ना समझे
पीर
सखी री
प्रेम के सुलगते
सागर की
हर उठती -गिरती
लहरें
प्रेम अगन
बढाती हैं
कैसे बंधे
अब धीर
सखी री
वो यशोदा
का लाला
धोखा दे गया
भरे जोवन में
योगन बनाय गया
सखी का से कहूं
अब जिया की पीर
चैन मेरा
ले गया
भरे बाज़ार
धोखा दे गया
अब कैसे धरूँ
मैं धीर
सखी री
पिया रूठ गए
मो से सांवरिया
रूठ गए
पिया रूठ गए
मो से सांवरिया
रूठ गए
मोहे अकेला
छोड़ गए
विरह अगन का
दावानल जला गए
अब का से करूँ
शिकायत
का से कहूँ मैं
जिया की बात
कोऊ ना समझे
पीर
सखी री
प्रेम के सुलगते
सागर की
हर उठती -गिरती
लहरें
प्रेम अगन
बढाती हैं
कैसे बंधे
अब धीर
सखी री
वो यशोदा
का लाला
धोखा दे गया
भरे जोवन में
योगन बनाय गया
सखी का से कहूं
अब जिया की पीर
चैन मेरा
ले गया
भरे बाज़ार
धोखा दे गया
अब कैसे धरूँ
मैं धीर
सखी री
पिया रूठ गए
मो से सांवरिया
रूठ गए