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शनिवार, 14 मई 2011

कैसे धार्मिक हैं हम ?

 दोस्तों ,
 ब्लोगर की खराबी के कारण ये पोस्ट डिलीट हो गयी और अब इसे दोबारा पोस्ट कर रही हूँ .........कृपया अपने विचारों से दोबारा अवगत कराएं .......ये पोस्ट १३ मई  को ब्लोग्स इन मीडिया में भी छपा है जिसका लिंक साथ में लगा रही हूँ .
http://blogsinmedia.com/2011/05/%E0%A4%95%E0%A5%88%E0%A4%B8%E0%A5%87-%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%95-%E0%A4%B9%E0%A5%88%E0%A4%82-%E0%A4%B9%E0%A4%AE-%E0%A4%A1%E0%A5%87%E0%A4%B2%E0%A5%80-%E0%A4%A8/




हमने धार्मिकता सिर्फ ओढ़ी हुई है मगर अपनाई नहीं है . अगर अपनाई होती तो आज ये हालत ना होती ...........आज आप देखिये हमारे देवी - देवता और बड़े- बड़े साधू संतों की तस्वीरें और मूर्तियाँ कैसे जमीन में धूल चाट रही होती हैं , या पैरों के नीचे आ रही होती हैं ..........जिस दिन मिलेंगी तो बहुत करीने से सहेजेंगे हम सब और यदि ना मिले तो लेने की भूख .......हर हाल में लेकर ही रहते हैं आखिर मुफ्त का माल होता है .......और घर लाकर उसे कुछ दिन दीवार की शोभा बना देते हैं या मंदिर में बिठा देते हैं ..........उसके बाद जब वो पुरानी हो जाती हैं तो हम क्या करते हैं ?


हम सभी उन्हें उठाते हैं और किसी पीपल पर या चौराहे पर रख देते हैं या नदी में प्रवाहित कर देते हैं . मगर कभी सोचा उसके बाद उनका क्या हुआ ? हमने तो अपना काम करके इतिश्री कर ली मगर उसके बाद उन प्रतिमाओं और तस्वीरों का क्या हश्र होता है कोई जानना नहीं चाहता............

आज के वक्त में अगर नदी में प्रवाहित करते हैं तो वो प्रदूषित हो जाती है तो इससे बचने के लिए लोग उन्हें पीपल पर या चौराहे पर रखने लगे मगर कभी नहीं जानना चाहा कि अगले दिन उनके साथ क्या हुआ ?

वैसे पता सबको होता है मगर ये सोचकर कि हमने तो अपना काम कर दिया अब जो चाहे सो हो करके खुद को तसल्ली दे देते हैं जबकि अगले दिन उन तस्वीरों और प्रतिमाओं को जमादार सफाई करते हुए अपने साथ कूड़े में समेट कर ले जाता है , यहाँ तक देखा गया है कि उनके ऊपर ही कूड़ा उठा रहा होता है ......देखकर ही दिल दुखता है और आँखें शर्म से झुक जाती हैं और यदि उस जमादार को कहो कि ये क्या कर रहा है तो उसका तो सीधा सा जवाब होता है कि क्या करूँ जी मेरा तो काम ही कूड़ा उठाना है ...............तो ये होता है हमारे देवी देवताओं और संतों की प्रतिमाओं का हश्र?

क्या हमारा धर्म हमें यही सिखाता है ? या हम सब इतने नासमझ हैं वैसे तो धर्म के नाम पर एक दूसरे को मारने काटने को तैयार हो जाते हैं, और यदि कोई दूसरा हमारे देवी देवताओं के चित्रों का दुरूपयोग करे तो भी हम उसे नहीं छोड़ते और उसे माफ़ी मांगने पर मजबूर कर देते हैं इसका ताज़ा उदहारण तो अभी बिकिनी पर हामारे देवी देवताओं कि तसवीरें हैं ............चलो वो तो विदेशी ठहरे उन्हें किया और हमने आपत्ति उठाई तो उन्होंने माफ़ी मांग ली मगर क्या हम खुद ऐसा ही नहीं कर रहे ...........जब भी कहीं धार्मिक आयोजन होते हैं उसमे हर जगह न जाने कितने देवी देवताओं की तसवीरें छपी होती हैं और जिस दिन आयोजन समाप्त होता है तो वो ही तसवीरें पैरों के नीचे कुचली जा रही होती हैं ...........क्या तब हमारी गैरत मर जाती है ? हमें तब शर्म क्यूँ नहीं आती है ? तब क्यूँ नहीं सोचते कि जो बात हम गैर से मनवा सकते हैं वो अपने ही लोगों में जन जाग्रति लाकर क्यूँ नहीं मनवा सकते ? मगर कभी ये नहीं सोचते कि क्या ऐसा होने से रोकना हमारा धर्म नहीं?

क्यूँ सोचें भाई ? इसके लिए दुनिया पड़ी है और किसके पास वक्त है इतना ? लेकिन क्या हमारी अन्तरात्मा हमें नहीं धिक्कारती . इससे तो अच्छा है कि हम कम से कम तस्वीरें रखें जितनी हम संभाल सकें और यदि ख़राब हो जाये या मन से उतर जायें तो अपने घर में कामवाली बाई को दे दें क्यूंकि वो लोग तो ऐसी तसवीरें खरीद नहीं पातीं तो अपने घरों में लगा लेती हैं और उसे भी पूछकर दिया जाये की लगाएगी तो ले जा वर्ना नहीं या फिर उसे किसी उद्यान में ,या अपने ही बगीचे में या अपने गमलों में या किसी खेत खलिहान में मिटटी में दबा दें कम से कम ना तो प्रदुषण होगा और ना ही अपमान और धार्मिकता भी बनी रहेगी ...........हम लोग हवन करते हैं तो सारी हवन की राख़ आखिर में नदी में प्रवाहित करने की परंपरा है और हम उसका पालन करते हैं ये सोचकर कि ऐसा नहीं किया तो कुछ गलत हो जायेगा मगर ये नहीं सोचा कि इससे प्रदुषण बढेगा .......अब यदि इसी को हम बागों में , खेतों में मिटटी में दबा दें तो वहाँ ना तो धर्म और ना ही मर्यादा का उल्लंघन होगा और उसके परमाणु से आस- पास का वातावरण भी शुद्ध होगा.............अगर हम सब इन छोटी - छोटी चीजों पर ध्यान दें तो ये हमारे और हमारे धर्म और भविष्य सबके लिए हितकर होगा .

ये हम सबका कर्तव्य है कि हम सब मिलकर अपने धर्म की रक्षा करें और उसे पांव तले ना रौंदें. ये सब मैंने आँखों देखा ही कहा है ज्यादातर मंदिरों आदि में भी ऐसा हो रहा है .........इसलिए हम सबको इस तरफ ध्यान देना चाहिए और अपने कर्त्तव्य का निर्वाह करना चाहिए तभी हम सही मायने में हिन्दू या धर्मनिष्ठ कहलाने के अधिकारी हैं .

24 टिप्‍पणियां:

  1. हमें पहले अपने धर्म की रक्षा तो करनी ही चाहिये

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  2. जो सच है वही कहा है ...पर कोई नहीं मानेगा इस बात को
    पढ़ा और भूल गए ......पर आपका लेख सच से परिपूर्ण है वंदन

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  3. ji sahi kaha ye mushkil sabko hi aayi hai



    bahut acchi prastut hai aapki..badhayi sweekar kare

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  4. बात तो पते की कही है आपने । अखबार में छपा संपादित रूप पसंद आया।

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  5. वंदना जी हमको जागृत करता सुन्दर लेख.. आभार इस लेख के लिए..

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  6. कर्मकाण्ड ही हमें धार्मिक नहीं बनाता है।

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  7. बात तो कुछ ठीक ही लगी...सुंदर आलेख...

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  8. काश हम दूसरों को देखने के वजाय अपने को पहचानने का प्रयत्न करें !
    शुभकामनायें !

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  9. बहुत ही अच्छा सुझाव दिया है लेकिन कोई मानेगा नहीं लकीर के फकीर है अभी किसी ग्रंथ का हवाला देकर या कहीं दूसरी नाटक बाजी करके यह ही सिध्द करने का प्रयास करेगे कि हम सही कर रहे है। वर्तमान में पानी पीने को नहीं मिल रहा और ये उसे ही प्रदूषित करने पर तुले है। हमलोग इतने धर्मान्ध हो गये है कि अन्तरआत्मा की आवाज ही नहीं सुनते अच्छे सुझाव का विरोध करने तैयार रहते है।

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  10. बिल्कुल सही विषय और ये सत्य है एसा ही होता है जब तक इस्तेमाल कर रहें हैं तब तक ठीक और जब घर की सफाई का ख्याल आया तो उसे भी साफ़ कर दिया न जाने कैसी श्रद्धा और कैसा विश्वास होता है कुछ पल तक संभाला और फिर खत्म | सोचनीय विषय सुन्दर और सार्थक लेख |

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  11. क्या हमारे फ़ेके जाने से मूर्ती या भगवान का अपमान हो जायेगा भाई मान अपमान हमारे मन का भेद है परमेश्वर तो निराकार है हमने अपनी सुविधा से इशव्र के रूफ गढ़े हैं हां यह भी है की किसी को इश्वर मानने के बाद उसका अपमान नही सहा जाता पर यह भी याद होना चाहिया कि श्याम सुंदर मान अपमान से परे है धर्म निजी पालन की चीज है दूसरे से पालन करवाने जायेंगे तो हद तालीबानियो के आस पास ही बनेगी

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  12. क्या हमारे फ़ेके जाने से मूर्ती या भगवान का अपमान हो जायेगा भाई मान अपमान हमारे मन का भेद है परमेश्वर तो निराकार है हमने अपनी सुविधा से इशव्र के रूफ गढ़े हैं हां यह भी है की किसी को इश्वर मानने के बाद उसका अपमान नही सहा जाता पर यह भी याद होना चाहिया कि श्याम सुंदर मान अपमान से परे है धर्म निजी पालन की चीज है दूसरे से पालन करवाने जायेंगे तो हद तालीबानियो के आस पास ही बनेगी

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  13. संस्कारों व् सरोकारों से दूर हो चले हैं हम लोग.

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  14. जागरूक करता बेहतरीन आलेख।

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  15. सौ प्रतिशत सहमत हूं वंदनाजी आपकी बात से ।
    बहुत ही सार्थक आलेख है ।

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  16. सौ प्रतिशत सहमत हूं वंदनाजी आपकी बात से ।
    बहुत ही सार्थक आलेख है ।

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  17. आपके आलेख में बताई गई स्थिति अपने आप बदल जाएगी जब हम वाकई धर्म (सद्गुणों) को अपने भीतर धारण करेंगे. अच्छा आलेख.

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  18. बहुत बढ़िया लगा ! सुन्दर प्रस्तुती!

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आप सब के सहयोग और मार्गदर्शन की चाहत है।