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गुरुवार, 3 जनवरी 2013

है ना अचरज ...........



मेरे पास
कुरान की आयतें नहीं
जो बांच सकूँ
गीता का ज्ञान नहीं
जो बाँट सकूँ
शबरी के बेर नहीं
जो खिला सकूँ
मीरा का प्रेम नहीं
जो रिझा सकूँ
राधा सा समर्पण नहीं
जो अपना बना सकूँ
फिर भी तुम अपना बना लेते हो
है ना अचरज ...........मोहन !

10 टिप्‍पणियां:

  1. हमारे लिए अचरज और मोहन के लिए स्वाभाविक।

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  2. हमारे लिए अचरज और मोहन के लिए स्वाभाविक।

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  3. न जाने बात क्या तुझमें ऐ कान्हा।

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  4. मोहन को केवल प्रेम चाहिए ,जहाँ है ,वह वहीँ पहुच जाता है ,उसको अपना लेता है..

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  5. भावमय प्यारी सी वन्दना है आपकी.
    फिर क्यूँ न मोहन आपको अपना बना लेंगे.

    नववर्ष शुभ और मंगलमय हो.हार्दिक शुभकामनाएँ,वन्दना जी.

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  6. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (06-01-2013) के चर्चा मंच-1116 (जनवरी की ठण्ड) पर भी होगी!
    --
    कभी-कभी मैं सोचता हूँ कि चर्चा में स्थान पाने वाले ब्लॉगर्स को मैं सूचना क्यों भेजता हूँ कि उनकी प्रविष्टि की चर्चा चर्चा मंच पर है। लेकिन तभी अन्तर्मन से आवाज आती है कि मैं जो कुछ कर रहा हूँ वह सही कर रहा हूँ। क्योंकि इसका एक कारण तो यह है कि इससे लिंक सत्यापित हो जाते हैं और दूसरा कारण यह है कि किसी पत्रिका या साइट पर यदि किसी का लिंक लिया जाता है उसको सूचित करना व्यवस्थापक का कर्तव्य होता है।
    सादर...!
    नववर्ष की मंगलकामनाओं के साथ-
    सूचनार्थ!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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