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सोमवार, 7 जनवरी 2013

मेरी अँखियाँ हैं नीर भरी



मेरी अँखियाँ हैं नीर भरी
बिहारी जी अब क्या और अर्पण करूँ
मेरी अँखियाँ ......................

सुना है तुम हो दया के सागर
फिर क्यों रीती मेरी गागर
मेरी तो आस है तुम्ही से बंधी
बिहारी जी अब क्या और अर्पण करूँ
मेरी अँखियाँ .......................

दरस को अँखियाँ तरस गयी हैं
बिन बदरा के बरस रही हैं
और कैसे मैं तुम्हें प्रसन्न करूँ
बिहारी जी अब क्या और अर्पण करूँ
मेरी अँखियाँ.....................

सुना है तुम हो श्याम सलोना
मेरे मन में क्यूँ ना बनाया घरौंदा
अब कैसे मैं धीर धरूँ
बिहारी जी अब क्या और अर्पण करूँ
मेरी अँखियाँ ....................

जन्म जन्म की मैं हूँ प्यासी
तेरे चरनन की मैं हूँ दासी
मेरी बारी ही क्यों देर करी
बिहारी जी अब क्या और अर्पण करूँ
मेरी अँखियाँ हैं नीर भरी.............

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छा लेखन कृष्ण ही सब हैँ केवल यही जानने योग्य हैँ बाकी सब र्निरथक हैँ ।

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  2. मेरी अखियाँ है नीर भरी------
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति
    धन्यवाद.

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  3. बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी ...बेह्तरीन अभिव्यक्ति ...!!शुभकामनायें.

    तन दिया है मन दिया है और जीवन दे दिया
    प्रभु आपको इस तुच्छ का है लाखों लाखों शुक्रिया

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  4. बहुत सुन्दर भाव बढ़िया अभिव्यक्ति

    नई पोस्ट ; "अहंकार "

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  5. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,बेह्तरीन अभिव्यक्ति

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  6. Virah ke geet sach mein pyare lagte hain.....Krishna toh servo pari hain, achchi kavyatmak rachna ke liye badhayi - Surinder Ratti Mumbai

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