उसमे और खुद में ना
कोई भेद नज़र आये
बस तब साक्षी भाव से
दृष्टा बन जाओ
और देखो उसकी लीला
हाथ पकडता है या छोडता
पार उतारता है या डुबोता
कर दिया अब सर्वस्व समर्पण
फिर कैसा डर ………
योगक्षेम वहाम्यहम तुमने ही तो कहा ना ………
तो अब तुम जानो और तुम्हारा काम
ना मेरी जीत इसमे ना हार
जो है प्रभु तुम्हारा ही तो है
जीव हूँ तो क्या
घाटे का सौदा कैसे कर सकता हूँ
आखिर तुम्हारा ही तो अंश हूँ
अब देखें क्या होता है
घट - घट वासी
कब घट को समाहित करता है
जहाँ ना घट हो ना तट हो
बस एक आनन्द का स्वर हो
बस उसी का इंतज़ार है
जहाँ दूरियाँ मिट जायें
इक दूजे मे समा जायें
भेद दृष्टि समता मे बदल जाये
वो वो ना रहे
मै मै ना रहूँ
कोई आकार ना हो
बस एक ब्रह्माकार हो
आनन्दनाद हो
सब अन्तस का विलास हो
जब शब्द निशब्द जो जाये
अखंड समाधि लग जाये
आनन्द ही आनन्द समा जाये
ज्योति ज्योतिपुंज मे समा जाये
बस वो तेजोमय रूप बन जाये
ये धारा ऐसी मुड जाये
जो खुद राधा बन जाये
तो कैसे न कृष्ण मिल जाये
वो भी उतना खोजता है
जितना जीव भटकता है
वो भी उतना तरसता है
ब्रह्म भी जीव मिलन को तडपता है
जब आह चरम को छू जाये
वो भी मिलन को व्याकुल हो जाये
तो कैसे धीरज धर पाये
खुद दौडा दौडा चला आये
यूँ मिलन को पूर्णत्व मिल जाये ………
देखें क्या होता है ? कब वो भी मिलन को तरसता है कब हमारे भाव उसे
विचलित करते हैं………बस उस क्षण का इंतज़ार है।
मिलन की उस क्षण का इन्तेजार सब प्राणी को है ; बहुत उम्दा प्रस्तुति .
जवाब देंहटाएंNew post कृष्ण तुम मोडर्न बन जाओ !
छोड़ दिया जब खुद को निराधार वह बन जाता है आधार
जवाब देंहटाएंब्रह्म के साथ आत्मा को आत्मसात कर लेना ही समर्पण है,समर्पण से ही इस मिलन का पूर्णत्व प्राप्त किया जा सकता है। सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंवचन दिया तो रक्षा कर लो..
जवाब देंहटाएंदेश के 64वें गणतन्त्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!
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आपकी पोस्ट के लिंक की चर्चा कल रविवार (27-01-2013) के चर्चा मंच-1137 (सोन चिरैया अब कहाँ है…?) पर भी होगी!
सूचनार्थ... सादर!
सब कुछ जब ईश्वर पर ही छोड़ दिया तो अब चिंता की बात ही नहीं ... भक्ति में डूबी सुंदर रचना
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