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सोमवार, 29 अप्रैल 2013

सम्भोग से समाधि तक



संभोग 
एक शब्द 
या एक स्थिति 
या कोई मंतव्य 
विचारणीय  है .........

सम + भोग 
समान भोग हो जहाँ 
अर्थात 
बराबरी के स्तर पर उपयोग करना 
अर्थात दो का होना 
और फिर 
समान स्तर पर समाहित होना 
समान रूप से मिलन होना 
भाव की समानीकृत अवस्था का होना
वो ही तो सम्भोग का सही अर्थ हुआ 
फिर चाहे सृष्टि हो 
वस्तु हो , मानव हो या दृष्टि हो 
जहाँ भी दो का मिलन 
वो ही सम्भोग की अवस्था हुयी 

समाधि 
सम + धी (बुद्धि )
समान हो जाये जहाँ बुद्धि 
बुद्धि में कोई भेद न रहे 
कोई दोष दृष्टि न हो 
निर्विकारता का भाव जहाँ स्थित हो 
बुद्धि शून्य में स्थित हो जाये
आस पास की घटित घटनाओं से उन्मुख हो जाये
अपना- पराया
मेरा -तेरा ,राग- द्वेष 
अहंता ,ममता का 
जहाँ निर्लेप हो 
एक चित्त 
एक मन 
एक बुद्धि का जहाँ 
स्तर समान हो 
वो ही तो है समाधि की अवस्था 



सम्भोग से समाधि कहना 
कितना आसान है 
जिसे सबने जाना सिर्फ 
स्त्री पुरुष 
या प्रकृति और पुरुष के सन्दर्भ  में ही 
उससे इतर 
न देखना चाहा न जानना 
गहन अर्थों की दीवारों को 
भेदने के लिए जरूरी नहीं 
शस्त्रों का ही प्रयोग किया जाए 
कभी कभी कुछ शास्त्राध्ययन 
भी जरूरी हो जाता है 
कभी कभी कुछ अपने अन्दर 
झांकना भी जरूरी हो जाता है 
क्योंकि किवाड़ हमेशा अन्दर की ओर  ही खुलते हैं 
बशर्ते खोलने का प्रयास किया जाए 

जब जीव का परमात्मा से मिलन हो जाये 
या जब अपनी खोज संपूर्ण हो जाए 
जहाँ मैं का लोप हो जाए 
जब आत्मरति से परमात्म रति की और मुड जाए 
या कहिये 
जीव रुपी बीज को 
उचित खाद पानी रुपी 
परमात्म तत्व मिल जाए 
और दोनों का मिलन हो जाए 
वो ही तो सम्भोग है 
वो ही तो मिलन है 
और फिर उस मिलन से 
जो सुगन्धित पुष्प खिले 
और अपनी महक से 
वातावरण को सुवासित कर जाए 
या कहिये 
जब सम्भोग अर्थात 
मिलन हो जाये 
तब मैं और तू का ना भान रहे 
एक अनिर्वचनीय सुख में तल्लीन हो जाए 
आत्म तत्व को भी भूल जाए 
बस आनंद के सागर में सराबोर हो जाए 
वो ही तो समाधि की स्थिति है 
जीव और ब्रह्म का सम्भोग से समाधि तक का 
तात्विक अर्थ तो 
यही है 
यही है 
यही है 

काया के माया रुपी वस्त्र को हटाना 
आत्मा का आत्मा से मिलन 
एकीकृत होकर 
काया को विस्मृत करने की प्रक्रिया 
और अपनी दृष्टि का विलास ,विस्तार ही तो 
वास्तविक सम्भोग से समाधि तक की अवस्था है 
मगर आम जन तो 
अर्थ का अनर्थ करता है 
बस स्त्री और पुरुष 
या प्रकृति  और पुरुष की दृष्टि से ही 
सम्भोग और समाधि को देखता है 
जबकि दृष्टि के बदलते 
बदलती सृष्टि ही 
सम्भोग से समाधि  की अवस्था है 

ब्रह्म और जीव का परस्पर मिलन 
और आनंद के महासागर में 
स्वयं का लोप कर देना ही 
सम्भोग से समाधि  की अवस्था है 
गर देह के गणित से ऊपर उठ सको 
तो करना प्रयास 
सम्भोग से समाधि की अवस्था तक पहुंचने का 
तन के साथ मन का मोक्ष 
यही है 
यही है 
यही है 

जब धर्म जाति  , मैं , स्त्री पुरुष 
या आत्म तत्व का भान  मिट जाएगा 
सिर्फ आनंद ही आनंद रह जायेगा 
वो ही सम्भोग से समाधि की अवस्था हुयी 

जीव रुपी यमुना का 
ब्रह्म रुपी गंगा के साथ 
सम्भोग उर्फ़ संगम होने पर 
सरस्वती में लय  हो जाना ही 
आनंद या समाधि  है 
और यही 
जीव , ब्रह्म और आनंद की 
त्रिवेणी का संगम ही तो 
शीतलता है 
मुक्ति है 
मोक्ष है 


सम्भोग से समाधि तक के 
अर्थ बहुत गहन हैं 
सूक्ष्म हैं 
मगर हम मानव 
न उन अर्थों को समझ पाते हैं 
और सम्भोग को सिर्फ 
वासनात्मक दृष्टि से ही देखते हैं 
जबकि सम्भोग तो 
वो उच्च स्तरीय अवस्था है 
जहाँ न वासना का प्रवेश हो सकता है 
गर कभी खंगालोगे ग्रंथों को 
सुनोगे ऋषियों मुनियों की वाणी को 
करोगे तर्क वितर्क 
तभी तो जानोगे इन लफ़्ज़ों के वास्तविक अर्थ 
यूं ही गुरुकुल या पाठशालाएं नहीं हुआ करतीं 
गहन प्रश्नो को बूझने  के लिए 
सूत्र लगाये जाते हैं जैसे 
वैसे ही गहन अर्थों को समझने के लिए 
जीवन की पाठशाला में अध्यात्मिक प्रवेश जरूरी होता है 
तभी तो सूत्र का सही प्रतिपादन होता है 
और मुक्ति का द्वार खुलता है 
यूँ ही नहीं सम्भोग से समाधि तक कहना आसान होता है 

29 टिप्‍पणियां:

  1. आपने सम्भोग से समाधि तक को बहुत सुन्दर गुढ़ तरीके से समझाया है !!

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  2. बहुत सुंदर सूक्ष्म विश्लेषण...शाब्दिक अर्थ से परे अलौकिक व्याख्या!!

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  3. गूढ़ अर्थों को समझने के लिए अपने अन्दर झाँकना और अध्यात्मिक होना जरुरी है
    बहुत बढ़िया
    साभार !

    जवाब देंहटाएं
  4. गहन विश्लेषण मात्र दो शब्दों का !!!!!!!!!

    जवाब देंहटाएं
  5. गहन विश्लेषण मात्र दो शब्दों का !!!!!!!!!

    जवाब देंहटाएं
  6. आध्यात्म दर्शन को सहेजे सुंदर रचना

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत सुन्दर गहन विश्लेषण !
    डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
    latest postजीवन संध्या
    latest post परम्परा

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  8. विचारणीय

    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

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  9. संभोग से समाधि तक का विस्तृत गूढ विश्लेषण.

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  10. वंदना ,
    बहुत गूढ़ बात कह दी . ओशो ने भी यही कहा है . तुमने शब्दों को बहुत संयमित रूप से कविता में पिरो कर अध्यात्म का पुट देकर , कविता को नयी ऊंचाईयों पर पहुंचा दिया है .
    कविता , कई स्तर पर विषय को ले जाती है और गहरे विश्लेषण में ज़िन्दगी को अलग दृष्टिकोण देती है .
    बहुत सुन्दर.
    बधाई .

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  11. सम्भोग को आजकल उसी अर्थ मे लिया जाने लगा है जिस अर्थ मे बच्चे कहते है कि "मुझे बाथरूम लगी है"
    वैसे भी हिन्दी मे उसे अश्लील मान लिया जाता है जिसे अंग्रेजी मे श्लील कहा जाता है. आपने जिस हिम्मत के साथ अर्थो को भाव सहित प्रस्तुत किया है सराहनीय है.
    बधाई स्वीकारिये

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  12. जीवन में कुछ शब्दों के अर्थ हम अपने वैचारिक स्तर के अनुसार निर्धारित कर लेते हैं लेकिन उसके गहन विश्लेषण कर निकलने वाले अर्थ से सर्वथा अनभिज्ञ होते हैं . बहुत सुन्दर विश्लेषण . आभार !

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  13. बड़ा ही गहन शास्त्र सम्मत विवेचन किया है , इस विवेचन को पढ़ने के लिए भी सूक्ष्म दृष्टि चाहिए

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  14. स्थूल अर्थ लिया जाए,तब भी हर्ज़ नहीं। जैसे हम चौराहे पर खड़े हों और किसी सड़क पर बोर्ड दिखेः"मुंबई की ओर" और हमें मुंबई जाना हो,तो सहज ही वह सड़क लेनी चाहिए। इसी तरह,संभोग से समाधि का अर्थ है,संभोग पर ही मत अटको,समाधि की ओर बढ़ो,अब बढ़ना चाहे जैसे हो!

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  15. जीव रुपी यमुना का
    ब्रह्म रुपी गंगा के साथ
    सम्भोग उर्फ़ संगम होने पर
    सरस्वती में लय हो जाना ही
    आनंद या समाधि है में तो यही पर अटक गया हु
    जबकि इसी लेख में प्रकृति और पुरुष दोनों का जिक्र तो है जीवन में कुछ शब्दों के अर्थ हम अपने वैचारिक स्तर के अनुसार निर्धारित कर लेते हैं लेकिन उसके गहन विश्लेषण कर निकलने वाले अर्थ से सर्वथा अनभिज्ञ होते हैं जेसे यहाँ प्रकृत में खोकर गंगा यमुना सरस्वती रूपी सम - लेंगिक योग [+]पुरुष रूपी समुन्द्र में समाना नही चाहता पुरुष + प्रकृति के बिना ब्रह्म [मुक्ति - मोक्ष केसे सम्भव होगा ?

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  16. जब धर्म जाति , मैं , स्त्री पुरुष
    या आत्म तत्व का भान मिट जाएगा
    सिर्फ आनंद ही आनंद रह जायेगा [ऐसा आप मानते हैं ]
    वो ही सम्भोग से समाधि की अवस्था हुयी
    धर्म के हते ही मोक्ष असम्भव क्यों की धर्म का अर्थ ही धारण करना है ,अब जाती मनुष्य जाती हती तो कुता - बिली का खेल शुरू मोक्ष दूर निकल गया ?
    में ब्रह्म ही दूर हो गया में ही ब्रह्म हु स्त्री - पुरुष मोक्ष का द्वार कहलाता है इसे मोक्ष का अधिकारी कहा गया है द्वार के अंदर खुलते ही पुरुष के सामने नारी ,नारी के सामने पुरुष दोनों का मिल्न तुलसी दास समाधि बराबर की बुधि निद्रा निकली आनन्द की मोक्ष दायनी समाधि परन्तु दोनों का योग [+]दुखदायी सृष्टि हो गयी निंद्रा की आवस्था सही मोक्ष का आभास करवाने लगती है ऐसा सभी के साथ होता है और प्रत्यक्ष ज्ञान यही कहता है

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  17. वंदना जी , सम्भोग से समाधि ---""काया के माया रुपी वस्त्र को हटाना आत्मा का आत्मा से मिलन
    एकीकृत होकर काया को विस्मृत करने की प्रक्रिया
    और अपनी दृष्टि का विलास ,विस्तार ही तो
    वास्तविक सम्भोग से समाधि तक की अवस्था है ""बिलकुल सही ढंग से आपने परिभाषित किया हैं। । YOU ARE REALLY GREAT !!!!!

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  18. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, किंतु वास्तविकता यह है कि सभी ने इन शब्दों को संकुचित करके देखा और समझा है। यही कारण है कि लोग तो ओशो को भी स्तरीय ही मानते रहे हैं।

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आप सब के सहयोग और मार्गदर्शन की चाहत है।