जो नहीं अपना बनाना
जो नहीं मिलने आना
जो नहीं दरस दिखाना
फिर नहीं हमारा तुम्हारा
निभाव मोहन !
यूं ठगे जाने का शौक
यहाँ भी तारी नहीं
मन के बीहड़ों में जाऊं
या कपडे रंगाऊं
कहो तो मोहन
कौन सा जोग धरूँ
जो तुम्हारे मन भाऊँ
गर नहीं है बताना
नहीं रास रचाना
फिर नहीं हमारा तुम्हारा
निभाव मोहन !
जो एक कदम तुम बढाओ
तो दूजा मैं भी धराऊँ
जो तुम नैन मिलाओ
तो मैं भी मतवाली बन जाऊं
जो तुम प्रेम का प्रतिउत्तर प्रेम से दो
तो मैं भी प्रेममयी बन जाऊं
गर नहीं है ऐसा कोई इरादा
बस झूठा ही है सारा बहकाना
और अधर में है लटकाना
फिर नहीं हमारा तुम्हारा
निभाव मोहन !
भावपूर्ण रचना।
जवाब देंहटाएंभावप्रणव प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंसाझा करने के लिए आभार...!
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शुभ रात्रि ....!
सम्मोहित करती रचना।
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट निराली रहती है .
जवाब देंहटाएंबधाई वन्दना जी !
उम्दा!!
जवाब देंहटाएंआलोकिक प्रेम में रची बसी ... लाजवाव भावमय रचना ..
जवाब देंहटाएंओहो ...आपने तो मोहन को भी धमकी दे डाली :):) सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंप्रेम के एक अनूठे प्रकार से सरोबार रचना
जवाब देंहटाएंso sweet .
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